कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की कहानी

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हम बात कर रहें हैं कश्मीर की जी हां हमारा खुद का कश्मीर, वह कश्मीर जिसे हमने खो दिया था और उसे फिर से हासिल करने के लिए संघर्ष किया, कश्मीर हिन्दुस्तान का वह हिस्सा है जहां पर कश्मीरी पंडित रहते थे. लेकिन 1989 से 1995 के बीच कत्लेआम का एक ऐसा दौर चला की पंडितों को कश्मीर से जाने के लिए मजबूर होना पड़ा. कश्मीर घाटी के निवासी हिन्दुओं को उनके ऊपर हुए अत्याचार एवम् नरसंहार के पश्चात राजनीतिक लाभ लेने के लिए नेताओ द्वारा जातिवाद को बढ़ावा दिया गया, सदियों से कश्मीर में रह रहे कश्मीरी हिन्दू पंडितों को 1990 में मुसलमानों द्वारा आयोजित आतंकवाद के कारण से घाटी छोड़नी पड़ी या उन्हें जबरन निकाल दिया गया. पुन: कश्मीर काश्मीरी पंडितों का संगठन है.

19 जनवरी 1990 का वो दिन जब कश्मीर के पंडितों को अपना घर छोड़ने का फरमान जारी हुआ था. कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तो जंग 1947 से ही जारी है. ऐसी तमाम कहानियां हैं जो कश्मीरी मुसलमानों और कश्मीरी पंडितों के प्यार की, लेकिन 1980 के बाद माहौल पूरी तरह से बदल गया. सरकार ने इस आग में एक बहुत बड़ा पलीता लगाया. 1986 में गुलाम मोहम्मद शाह ने अपने बहनोई फारुख अब्दुल्ला से सत्ता छीन ली और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बन गये. खुद को सही सावित करने के लिए एक खतरनाक निर्णय लिया.

उस वक्ता ऐलान हुआ कि जम्मू में एक पुराने मंदिर को गिराकर भव्य शाह मस्जिद बनवाई जाएगी. जिसका लोगों ने विरोध किया, कि ये नहीं हो सकता ना ही होगा. इसी के जवाब देही में कट्टरपंथियों ने नारा दे दिया कि इस्लाम खतरे में है. इसके बाद कश्मीरी पंडितों पर धावा बोल दिया गया. साउथ कश्मीर और सोपोर में सबसे ज्यादा हमले हुए, जिसमें सबसे ज्यादा जोर इस बात पर दिया गया. प्रॉपर्टी लूटना, हत्यायें करना और रेप करना इत्यादी.

इस नरसंहार में लगभग 6000 कश्मीरी पंडितों को मारा गया. 7 लाख 50,000 पंडितों को जबरन ही अपने घर अपनी जमीन को छोड़ने पर मजबूर किया गया. 1500 मंदिरों नष्ट कर दिए गए. 600 कश्मीरी पंडितों के गांवों को इस्लामी नाम दे दिया गया. इस नरसंहार को भारत की तथा-कथित धर्मनिरपेक्ष सरकार मूकदर्शक बनकर देखती रही. आज भी नरसंहार करने और करवाने वाले खुलेआम घुम रहे हैं.

कश्मीर में हिंदुओं पर कहर टूटने का सिलसिला 1989 जिहाद के लिए गठित मुसलमानों ने शुरू किया था. कश्मीरी हिंदू पंडित की दुकानें, कारखाने, मंदिर यहॉ तक की घर भी जला दिए गए हिंदुओं के दरवाजों पर धमकी भरे पोस्टरों को लगाया गया और उन्हें तुरंत कश्मीर छोड़ने के लिए कहा गया. कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन जायदाद छोड़कर जाने के लिए मजबूर हो गए. 30,000 से अधिक हिंदू महिला और पुरुषों की हुई थी हत्या – घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई.

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19 जनवरी 1990 की घटना कश्मीर की इतिहास का सबसे दुखद अध्याय है. कश्मीरी पंडित इस दुनिया की सबसे सहनशील समुदाय है इतने बड़े विस्थापन और अत्याचार के बाद एक भी कश्मीरी पंडित ने ना तो हथियार उठाये और ना ही कोई हिंसक आंदोलन किया. ऐसा उदाहरण विश्व के इतिहास में दूसरा नही है.