India@75Years: जानें कनॉट प्लेस के लिए काला स्याह क्यों था 10 अगस्त 1942 का वो दिन…

53
India@75Years: जानें कनॉट प्लेस के लिए काला स्याह क्यों था 10 अगस्त 1942 का वो दिन…

India@75Years: जानें कनॉट प्लेस के लिए काला स्याह क्यों था 10 अगस्त 1942 का वो दिन…

1942 का समय जब न खबरिया चैनल थे और न ही सोशल मीडिया। 8 अगस्त,1942 को बम्बई में जब महात्मा गांधी ने अंग्रेजी हुकूमत से भारत छोड़ो का आह्वान किया, तब इस खबर को दिल्ली पहुंचने में 2 दिन लग गए और दिल्ली ये खबर पहुंचने के बाद कनॉट प्लेस ने देखा अपने इतिहास का काला दिन।

 

कनॉट प्लेस (फाइल फोटो)
अगस्त क्रांति के 80 साल, सीपी और अरुणा आसफ अली
कनॉट प्लेस के लिए 10 अगस्त, 1942 का दिन काला स्याह था। उस दिन की यादें अब भी इधर चल रहे कुछ शोरूमों से जुड़ी हैं। उस रोज कनॉट प्लेस में भारी आगजनी हुई थी। जिसने भी उस दिन के भयानक मंजर को देखा था, उसे फिर वह कभी भुला नहीं सका। उस दिन कनॉट प्लेस में अंग्रेजों के स्वामित्व वाले शोरूमों को देश की आजादी के मतवालों ने आग के हवाले कर दिया था। दरअसल 8 अगस्त,1942 को बम्बई (अब मुंबई) में महात्मा गांधी ने अंग्रेजी हुकूमत से भारत छोड़ो का आह्वान किया था। भारत को जल्द ही आज़ादी दिलाने के लिए गांधी जी द्वारा अंग्रेज शासन के विरुद्ध यह एक बड़ा नागरिक अवज्ञा आन्दोलन था। इसे भारत छोड़ो आन्दोलन का नाम दिया गया। 8 अगस्त 1942 को बंबई के गोवालिया टैंक मैदान पर कांग्रेस ने प्रस्ताव पारित किया था, जिसे ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव कहा गया। 9 अगस्त, 1942 को गोवालिया टैंक मैदान में अरुणा आसफ अली कांग्रेस का झंडा फहराती हैं। वे आगे चलकर दिल्ली की पहली मेयर भी बनीं। यह 1958 की बात है।

क्यों बरपा चांदनी चौक से सीपी में हंगामा
गांधी जी के भारत छोड़ो के आह्वान और कांग्रेस के शिखर नेताओं की गिरफ्तारी से संबंधित खबरें 10 अगस्त, 1942 को दिल्ली पहुंचती हैं। चूंकि उन दिनों आजकल की तरह से खबरिया चैनल या सोशल मीडिया तो था नहीं, इसलिए खबरों की रफ्तार धीमे हुआ करता करती थीं। 10 अगस्त,1942 को सुबह से सभी उम्र के दिल्ली वाले कनॉट प्लेस में इकट्ठा होने शुरू हो गए। इधर अंग्रेजों से भारत से निकल जाने जाने संबंधी नारे लग रहे थे। ‘गांधी जी जिंदाबाद’ के भी नारे लग रहे थे। सारा वातावरण बेहद तनावपूर्ण था। उस दिन चांदनी चौक में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष हकीम खलील-उर-रहमान ने कांग्रेस का झंडा फहराया था। दिल्ली के असरदार नेता मीर मुश्ताक अहमद ने ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन की सार्थकता पर एक जोशीला भाषण दिया था। नई सड़क के पास जुलूस के सामने गुरखा बटालियन का एक जत्था पहुंच गया। पुलिस ने लाठियां बरसाईं। मीर साहब भी पुलिस एक्शन में घायल हो गए थे। वे घायल होने पर भी दिन के समय कनॉट प्लेस पहुंच गए थे।

navbharat times -
वो गवाह था कनॉट प्लेस में हुई आगजनी का
भारत छोड़ो आंदोलन के असर को कनॉट प्लेस की सेंट्रल न्यूज एजेंसी (सीएनए) के मालिक आर.पी. पुरी साहब ने अपनी आंखों से देखा था। वे 1942 में कनॉट प्लेस के बरामदों में बैठकर अखबार और मैग्जीन बेचा करते थे। वे बताते थे कि कनॉट प्लेस में एकत्र भीड़ ने अचानक से इधर गोरों के शोरूमों को फूंकना शुरू कर दिया। उन दिनों कनॉट प्लेस में गोरों और आयरिश मूल के लोगों के अनेक शोरूम हुआ करते थे। तब कनॉट प्लेस में ज्यादातर अंग्रेज ही शॉपिंग के लिए आया करते थे। कनॉट प्लेस का सारा मिजाज किसी ब्रिटेन के शहर जैसा ही था। इधर भारतीय बहुत कम आते थे। यहां का वातावरण समावेशी नहीं था। रीगल सिनेमा हॉल में अंग्रेजी के नाटक खेले जाते थे। जाहिर है कि गोरे ही उन नाटकों को देखने के लिए भी पहुंचते थे।

Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म… पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप

लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें

Web Title : Hindi News from Navbharat Times, TIL Network

दिल्ली की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Delhi News

Source link