पुण्यतिथि : पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में भारत को मिली थी नयी दिशा

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भारत की कुछ नामचीन हस्तियों में से एक नाम लालबहादुर शास्त्री जी का भी हैं. आज शास्त्री जी 52वीं पुण्यतिथि है. इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. डेढ़ साल (1964- 1966) तक भारत के प्रधानमंत्री पद पर रहने वाले  शास्त्री जी का भारत को आत्मनिर्भर बनाने में बहुत बड़ा योगदान है. भारत को ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देने वाली हस्ती कोई और नहीं बल्कि लालबहादुर शास्त्री ही हैं.

दूरदर्शी थे पूर्व प्रधानमंत्री

शास्त्री जी का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 2 अक्टूबर, 1904 को शारदा प्रसाद और रामदुलारी देवी के घर हुआ था. अगर देखा जाए तो शास्त्रीजी का कार्यकाल बहुत कठिन रहा था आजादी के बाद भारत को बहुत से ह्मलों का सामना करना पड़ा था जिसमें से एक हमला 1964 में पकिस्तान ने भारत पर किया था. लालबहादुर शास्त्री जी ने इस आकास्मिक हमले को बड़े संयम के साथ सुल्झाने की कोशिश की थी. उन्होंने आनन्-फानन में एक बैठक बुलाकर ज़िम्मेदार अधिकारियों से बात चीत की थी. शाह्स्त्री जी की यही कार्यप्रणाली भारतवासियों को अगले आक्रमण से पहले ही सतर्क कर देती थी.

शास्त्री जी हमेशा कहते थे हम अपने देश के लिए आज़ादी चाहते हैं, पर दूसरों का शोषण कर के नहीं, ना ही दूसरे देशों को नीचा दिखा कर. मैं अपने देश की आज़ादी ऐसे चाहता हूँ कि अन्य देश मेरे आज़ाद देश से कुछ सीख सकें.

नाम से जुड़ा है रहस्य

काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलने के बाद  शास्त्री जी के नाम के पीछे लगने वाला शब्द ‘श्रीवास्तव’ हटा दिया गया और शास्त्री लगा दिया गया. तब से लेकर आजतक उन्हें लाल बहादुर शास्त्री के ही नाम से जाना जाता है .

शास्त्री जी की ऐतिहासिक अपील  

एक बार शास्त्री जी ने देश के लोगों से एक शाम का उपवास रखने की अपील की थी.  उनकी अपील का असर ऐसा हुआ कि उस समय न केवल घरों में, बल्कि होटलों में भी चूल्हे जलने बंद हो गए .

1952 में शास्त्री जी  रेल मंत्री बने और उन्होंने यह पद 1956 में छोड़ दिया था. जब 1956 में महबूबनगर रेल हादसे में 112 लोगों की मौत हुई थी. इस पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया. जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने स्वीकार नहीं किया था.

मौत के बाद नही हुआ पोस्टमार्टम

जब अचानक ११ जन्वारी को शास्त्री जी की मौत हुई थी. तब  मौततोतवपो - के बाद उनके शव का पोस्टमार्टम नहीं कराया जाना, एक  साजिश की ओर ही इशारा करता है. उनका पार्थिव शरीर जब देश लाया गया तो काफी लोगों ने देखा था कि चेहरा, सीना और पीठ से लेकर कई अंगों पर नीले और उजले निशान थे.

भारत के “लाल” को मिला था भारत रत्न

शास्त्रीजी को १९६४ में उनके मरने के बाद भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. जवाहरलाल नेहरु के बाद शास्त्रीजी ने ही प्रधान्मंत्री बनकर भारत को एक नयी दिशा दी थी .सही शब्दों में बोला जाए तो वो देश के हीरो थे. ह्मेशा से ही शांतिपूर्ण  विकास में विश्वास रखते थे.