चुनाव में नोटा के बटन का महत्व और सुधार की जरूरत

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नोटा
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भारत एक बहुत बड़ा देश है, जिसमें लगभग हर समय कहीं ना कहीं चुनावी माहौल रहता ही है. लोकतंत्र में देश के शासकों का चुनाव जनता द्वारा किया जाता है. इसलिए लोकतंत्र में चुनाव किसी त्योहार से कम नहीं होते हैं. चुनाव आयोग के पास चुनाव को निष्पक्ष तौर पर करवाने की जिम्मेदारी होती है. चुनाव आयोग द्वारा चुनावों में समय की मांग को देखते हुए सुधार किया जाता रहा है. इसी तरह का एक सुधार नोटा के बटन को शामिल कर किया गया.

नोटा

नोटा के बटन का अर्थ होता है कि मान लो चुनाव में उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन किसी मतदाता को लगता है कि इन उम्मीदवारों में से उसकों कोई भी उम्मीदवार ठीक नहीं लगता है, तो वह मतदाता नोटा के बटन को दबा सकता है. जिससे आपका वोट तो पड़ता हैं, लेकिन यह वोट चारों उम्मीदवारों में से किसी को नहीं मिलता. इसका साधारण शब्दों में अर्थ होता है कि आपको कोई उम्मीदवार पसंद नहीं हैं.

नोटा

चुनाव आयोग द्वारा मतदाता को नोटा का विकल्प देना एक बहुत ही अच्छा और सकारात्मक कदम है. लेकिन इसका एक पहलू यह भी है कि नोटा के वोट सिर्फ मतदाता के द्वारा सभी उम्मीदवारों को नकारने का विकल्प देता है. चुनाव पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ता. यदि आधे से ज्यादा वोट भी नोटा को जाते हैं, तो भी ज्यादा वोट प्रतिशत वाला उम्मीदवार जीत जाता है.

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वैसे तो चुनाव आयोग समय समय पर चुनावों में मतदाता के अधिकारों के लिए नए नए सकारात्मक प्रयोग करता है. नोटा का बटन भी उसी का एक हिस्सा है. लेकिन यदि इसमें सुधार की बात करें, तो यदि सभी उम्मीदवारों से ज्यादा वोट नोटा पर मिले, तो वहां फिर से चुनाव कराने के बारे में चुनाव आयोग को विचार करना चाहिए. जिससे मतदाता के मत का और नोटा का महत्व बढ़ेगा.