Gyanvapi Dispute: असरदार दलीलों से हिंदुओं के पक्ष में आया फैसला, कोर्ट में काम नहीं आए मुस्लिम पक्ष के ये तर्क

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Gyanvapi Dispute: असरदार दलीलों से हिंदुओं के पक्ष में आया फैसला, कोर्ट में काम नहीं आए मुस्लिम पक्ष के ये तर्क

Gyanvapi Dispute: असरदार दलीलों से हिंदुओं के पक्ष में आया फैसला, कोर्ट में काम नहीं आए मुस्लिम पक्ष के ये तर्क

विकास पाठक, वाराणसी : ज्ञानवापी परिसर स्थित शृंगार गौरी केस (Shringar Gauri Case at Gyanvapi Campus) की सुनवाई का रास्‍ता साफ होने में हिंदू पक्ष की दलीलें ज्‍यादा असरदार साबित हुईं। अदालत ने माना कि हिंदू पक्ष द्वारा पूजा का अधिकार मांगने में प्‍लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्‍ट बाधक नहीं है। सुनवाई पूरी होने और साक्ष्‍यों के आधार पर ही यह तय हो सकेगा कि 15 अगस्‍त 1947 से पहले से ज्ञानवापी मस्जिद थी या नहीं। अब मामला लंबा खींचने से ज्ञानवापी परिसर की स्थिति स्‍पष्‍ट होने के साथ ही परिसर हिंदुओं को सौंपने और दावे वाले शिवलिंग के पूजन का अधिकार दिए जाने पर भी अदालत में लंबित मुकदमों की सुनवाई हो सकेगी।

जिला जज अजय कृष्‍ण विश्‍वेश की अदालत में पांच महिला वादियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्‍ता हरिशंकर जैन और विष्‍णु जैन के साथ स्‍थानीय कई अधिवक्‍ताओं की टीम ने पक्ष रखा। उन्‍होंने दलील दी थी कि ज्ञानवापी मस्जिद का पूरा ढांचा मंदिर को तोड़कर बनाया गया है। औरंगजेब आतातायी था और मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाया, लेकिन मस्जिद के पीछे मंदिर की दीवार छोड़ दी। उन्‍होंने ज्ञानवापी मस्जिद के वक्फ संपत्ति के प्रमाणों को भी फर्जी बताया था। जहां तक वक्‍फ ऐक्‍ट का सवाल है तो किसी संपत्ति को लेकर हिंदू और मुस्लिम पक्ष के विवाद में वक्‍फ ट्राइब्यूनल को नहीं बल्कि सिविल कोर्ट को सुनवाई का अधिकार है। मामले को सुनवाई योग्‍य करार देने के लिए तमाम साक्ष्‍य और हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक की कई नजीरें पेश की गईं।

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वहीं, ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमिटी के वकीलों की बहस ज्ञानवापी को औरंगजेब की संपत्ति बताने के साथ आजादी के पहले से ज्ञानवापी के वक्‍फ संपत्ति होने के चलते प्रकरण की सुनवाई का अधिकार न होने पर रही। मुस्लिम पक्ष इस बात पर जोर देता रहा कि प्‍लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट के तहत 1947 के बाद किसी धार्मिक स्‍थल के चरित्र को नहीं बदला जा सकता है। जिला जज के फैसले से हिंदू पक्ष के दावों पर मुहर लगी है।

हिंदू पक्ष के दावे के मुख्‍य बिंदु

  • हिंदू मत के अनुसार जहां देवता की प्राण प्रतिष्‍ठा होती है, उस स्‍थल का स्‍वामित्‍व अनंतकाल तक नहीं बदलता। इस लिहाज से मंदिर की जमीन मस्जिद या वक्‍फ की नहीं हो सकती है।
  • ज्ञानवापी परिसर स्थित शृंगार गौरी मंदिर की 1993 में बैरिकेडिंग किए जाने तक दर्शन-पूजा होने के प्रमाण हैं।
  • शृंगार गौरी की नियमित पूजा करने का अधिकार मांगा है, न कि मस्जिद को मंदिर में बदलने का।
  • काशी विश्‍वनाथ ऐक्‍ट में पूरे परिसर को ही बाबा विश्‍वनाथ के स्‍वामित्‍व का हिस्‍सा माना गया है। ऐसे में ऐक्‍ट के खिलाफ जो भी फैसले हुए या लिए गए हैं, वह सभी शून्‍य हैं।
  • ज्ञानवापी वक्‍फ की संपत्ति नहीं हो सकती, क्‍योंकि वक्‍फ संपत्ति का कोई मालिक होना चाहिए। इस मामले में संपत्ति हस्‍तांतरण का कोई दस्‍तावेज नहीं है।
  • ज्ञानवापी से संबंधित 1937 के दीन मोहम्‍मद केस में भी 15 गवाहों ने स्‍पष्‍ट किया था कि यहां पर पूजा-अर्चना होती थी। ऐसे में वहां मंदिर की मान्‍यता कोई नई बात नहीं है।
  • मंदिर को तोड़े जाने के बाद भी ज्ञानवापी में किन हिस्‍सों में हिंदू मतावलंबी पूजन करते थे, उसके दस्‍तावेज उपलब्‍ध हैं और पुस्‍तकों में भी उल्‍लेख हैं।

मुस्लिम पक्ष की दलील के बिंदु

  • शृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन की मांग संबंधी वाद की प्रकृति जनहित याचिका जैसी है। इसमें पूजन का अधिकार पूरे हिंदू समाज के लिए मांगा गया है इसलिए इसकी सुनवाई स्‍थानीय अदालत में नहीं हो सकती।
  • ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ संपत्ति है। वक्‍फ ऐक्‍ट के तहत इसकी सुनवाई सिविल कोर्ट में नही हो सकती।
  • दीन मोहम्‍मद बनाम भारत सरकार के 1937 के मुकदमे में अदालत द्वारा ज्ञानवापी को मस्जिद माने जाने और उसमें नमाज का अधिकार मुस्लिम पक्ष को दिया गया है।
  • दीन मोहम्‍मद केस में ज्ञानवापी की जो आराजी संख्‍या बताई गई है, वहीं आज भी ज्ञानवापी मस्जिद का हिस्‍सा है।
  • ज्ञानवापी मस्जिद का मालिक मुगल शासक औरंगजेब था। निर्माण के समय उसका ही शासन था। शासक द्वारा दी गई जमीन पर ही ज्ञानवापी मस्जिद बनी हुई है।
  • सैकड़ों साल से ज्ञानवापी मस्जिद में लगातार नमाज होती आ रही है, इसलिए प्‍लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्‍ट लागू होता है। हिंदू पक्ष का यहां कोई अधिकार नहीं बनता।
  • वक्फ कमिश्‍नर की रिपोर्ट पर ज्ञानवापी मस्जिद को वक्‍फ बोर्ड में दर्ज करवाते हुए 1944 में प्रदेश शासन ने गजट किया था।
  • श्रीकाशी विश्‍वनाथ मंदिर परिसर के विस्‍तार के लिए जमीनों की अदला-बदली में भी ज्ञानवापी को मस्जिद के तौर पर ही स्‍वीकार किया गया।

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