क्या है माता तुलसी की कहानी और आखिर क्यों की जाती है उनकी पूजा

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नई दिल्ली: आज हम आपको बताएंगे माँ तुलसी के जीवन से जुड़ी कुछ बातें आखिर कौन है माता तुलसी और क्यों की जाती है उनकी पूजा. माता तुलसी की पूजा हर घर में की जाती है.

माता तुलसी का नाम वृंदाऔर उनका जन्म राक्षस कुल में हुआ था

बता दें कि माता तुलसी का नाम वृंदा था. उनका जन्म राक्षस कुल में हुआ था. राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी वृंदा भगवान श्री विष्णु जी की परम भक्त थी और सचे मन से उनकी पूजा भी किया करती थी. उनका विवाह राश्रस कुल में दानव राजा जलंधर के साथ हुआ था. वह काफी पतिव्रता स्त्री थी. एक बार जब देवताओं और दानवों के बीच युद्ध हुआ. उस दौरान जाते वक्त वृंदा ने अपने पति जलंधर से कहा कि स्वामी आप तो युद्ध पर जा रहें है जब तक आप जीत हासिल कर वापस नहीं आ जाते हो तब तक मैं आपके लिए पूजा करती रहूंगी और अपना संकल्प नहीं छोडूंगी.

वहीं जलंधर तो युद्ध में चले गए और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा करने में जुट गई. ये ही नहीं वृंदा के व्रत का प्रभाव इतना अधिक था कि देवता जलंधर से जीतने में विफल हो रहे थे. जब  देवता जीत हासिल करने में असफल हो रहें थे तो उस दौरान वह भगवान विष्णु जी की शरण में जा पहुंचे. सभी ने भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हुए कहा कि किसी भी तरह वह देवताओं को युद्ध जीताने में मदद करें.

भगवान विष्णु जी ने वृंदा का संकल्प तोड़ने के लिए उनके पति जलंधर का रूप धारण

ऐसी स्थिति में भगवान विष्णु बड़े ही दुविधा में आ गए. वे सोच रहे थे कि वृंदा को कैसे रोक जाए, क्योंकि वह उनकी परम भक्त थी. काफी सोचने और समझने के बाद भगवान विष्णु जी ने वृंदा के साथ छल करने का निर्णय तक ले लिया. उन्होंने वृंदा का संकल्प तोड़ने के लिए उनके पति जलंधर का रूप धारण कर लिया था. जलंधर के वेश में विष्णु जी वृंदा के महल में जा पहुंचे. जैसे ही वृंदा ने अपने पति जलंधर की छवि देखी तो उनके चरण छुने के उद्देश्य से पूजा से उठ पडी. जिससे वृंदा का संकल्प टूट गया. जैसे ही उनका वृत संकल्प टूटा, देवताओं ने दानव जलंधर का सिर धड से अलग कर करके उन्हें मार दिया.

जब वृंदा को भगवान विष्णु जी के छल का आभास हुआ तो पहले तो वो जलंधर का कटा हुआ सिर लेकर खूब रोई और सती होने के पहले उन्होंने भगवान विष्णु जी को श्राप दे दिया. उन्होंने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दे दिया. ये ही नहीं विष्णु जी पत्थर बन भी गए. लेकिन इस बात से तमाम देवी-देवता और लक्ष्मी जी रोने लगे. सभी ने मिलकर वृंदा से खूब मिन्नते की कि वह अपने श्राप से भगवान विष्णु को वंचित कर दें. आखिरकार वृंदा ने विष्णु जी को वंचित करने की बात स्वीकारी, और भगवान विष्णु अपने पुनः अवतार में वापस आ गए.

छल का प्रायश्चित करते हुए विष्णु जी ने खिले हुए पौधे को तुलसी का नाम दिया

जब विष्णु जी ने देखा की वृंदा जिस स्थान पर सती हुई उस जगह एक पौधा खिला हुआ है. अपनी परम भक्त से छल का प्रायश्चित करते हुए विष्णु जी ने खिले हुए पौधे को तुलसी का नाम दिया और ये फैसला किया कि आज से इनका नाम तुलसी है और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा और तुलसी जी की पूजा के बगौर मैं कोई भी भोग स्वीकार नहीं करूंगा.

कार्तिक मास में तुलसी जी के साथ शालिग्राम जी का विवाह किया जाता है

यही वजह है कि तब से सभी लोग तुलसी जी की पूजा करने लगे. बता दें कि कार्तिक मास में तुलसी जी के साथ शालिग्राम जी का विवाह किया जाता है. और एकादशी वाले दिन इसे तुलसी विवाह पर्व के रूप में मनाया जाता है. चरणामृत के साथ तुलसी को मिलाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. तुलसी के पौधे को काफी पवित्र माना जाता है. तमाम हिंदू आपने घर के आंगन और दरवाजे में तुलसी का पौधा लगाते है. यही मुख्य कारण है कि हम उन्हें माँ तुलसी कहते है.