ERCP के साथ जुड़ा है सियासी फायदा! इस वजह से BJP के इस प्रोजेक्ट को आगे रखते हैं गहलोत, पढ़ें डिटेल्स h3>
जयपुर: राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बार बार पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्ज देने की मांग कर रहे हैं। पिछले दिनों गहलोत ने नीति आयोग की बैठक में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने भी यह मांग उठाई। ईआरसीपी का प्रोजेक्ट पूर्ववर्ती भाजपा शासन में बना था और केन्द्र में भाजपा की सत्ता होते हुए भी इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय परिजयोजना का दर्ज नहीं मिल रहा है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बार- बार पीएम नरेन्द्र मोदी पर वादाखिलाफी का आरोप लगा रहे है। उधर भाजपा के नेताओं का कहना है कि प्रोजेक्ट रिपोर्ट में तकनीकी खामिया हैं। गहलोत सरकार को खामियां दूर करके दोबारा प्रस्ताव भेजना चाहिए। ईआरसीपी को लेकर भाजपा और कांग्रेस के टकराव के पीछे सियासी राजनीति है क्योंकि इस प्रोजेक्ट से 13 जिले जुड़े हैं।
जानिए… ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट के बारे में मुख्य बिन्दु
दक्षिणी राजस्थान में प्रदेश की सबसे बड़ी नदी चंबल बहती है, जिसमें भरपूर मात्रा में पानी आता रहता है। चंबल की सहायक नदियों कुन्नू, पार्वती और कालीसिंध में भी बारिश के मौसम में पानी की आवक ज्यादा होती है। चंबल में पानी के अत्यधिक भराव के कारण बांधों के गेट को खोलकर पानी छोड़ना पड़ता है। इस अतिरिक्त पानी को पूर्वी राजस्थान के उन अभावग्रस्त जिलों में ले जाने के लिए पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना बनाई गई। ताकि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने, ग्रामीण इलाकों में भूजल स्तर बढने और लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा सके।
प्रोजेक्ट 40,000 करोड़ रुपए का
इस परियोजना के तहत प्रदेश के 13 जिले आते हैं जिनमें झालावाड़, कोटा, बूंदी, बारां, सवाई माधोपुर, अजमेर, टोंक, जयपुर, अलवर, दौसा, करोली, भरतपुर और धोलपुर शामिल है। इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय स्तर का दर्जा दिए जाने की मांग इसलिए की जा रही है ताकि इस प्रोजेक्ट में लगने वाली कुल लागत की 90 प्रतिशत राशि केन्द्र सरकार से मिल सके। यह प्रोजेक्ट 40,000 करोड़ रुपए का है।
प्रोजेक्ट बना था भाजपा राज में, पूरा करने की जिद कर रही है कांग्रेस
वर्ष 2017-18 के बजट में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना की घोषणा की थी। इस परियोजना को वर्ष 2017 में केन्द्रीय जल आयोग द्वारा अनुमोदित किया गया था। वसुंधरा राजे ने अपने बजट भाषण में कहा था कि ईआरसीपी को राष्ट्रीय स्तर का दर्जा देने के लिए राज्य सरकार ने केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है। राजस्थान में सरकार बदल गई। अब मुख्यमंत्री इस प्रोजेक्ट को पूरा करने की मांग करते हुए केन्द्र सरकार पर बार बार सियासी हमला कर रहे हैं।
गहलोत के मुताबिक खुद नरेन्द्र मोदी ने अजमेर और जोधपुर की चुनावी सभाओं में ईआरसीपी को राष्ट्रीय स्तर का दर्जा देने का वादा किया। अब वे अपना वादा पूरा नहीं कर रहे हैं। दरअसल इस प्रोजेक्ट के साथ बड़ा सियासी फायदा जुड़ा है जिसे बीजेपी और कांग्रेस भुनाना चाहती है।
ईआरसीपी से जुड़े 13 जिलों के सियासी समीकरण को समझिए
पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को राष्ट्रीय स्तर का दर्जा मिलने पर इस प्रोजेक्ट से जुड़े 13 जिलों की तस्वीर बदल जाएगी। इस प्रोजेक्ट के नाम पर दोनों ही दल सियासी फायदा उठाना चाहते हैं। इसी वजह से दोनों ही दलों में ईआरसीपी को लेकर टकराव की स्थिति बनी हुई है। ईआरसीपी के तहत आने वाले 13 जिलों में 100 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से वर्तमान में कांग्रेस के 50, बीजेपी के पास 22, आरएलडी के 1 और 7 सीटों पर निर्दलीय विधायक जीते हुए हैं। जिस राज में इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय स्तर का दर्जा मिलेगा तो श्रेय उसी पार्टी को जाएगा।
100 विधानसभा सीटों के लिए कांग्रेस को बड़ा मुद्दा
इस श्रेय लेने की होड़ में ईआरसीपी प्रोजेक्ट बीजेपी और कांग्रेस के बीच फुटबॉल बन गया है। अगर गहलोत सरकार के रहते इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय स्तर का दर्ज मिलता है तो इस क्षेत्र में आने वाली 100 विधानसभा सीटों के लिए कांग्रेस को बड़ा मुद्दा मिल जाएगा। बीजेपी नहीं चाहती कि जब तक केन्द्र में उनकी सत्ता है तब तक कांग्रेस को कोई राजनैतिक लाभ नहीं मिले। इधर गहलोत ने राज्य के बजट से ईआरसीपी का कार्य शुरू कर दिया है।
इन 13 जिलों के 17 विधायक गहलोत मंत्रीमंडल में शामिल
अशोक गहलोत मंत्री मंडल में कुल 30 मंत्री हैं। इन में 17 मंत्री ईआरसीपी वाले 13 जिलों से हैं। 17 में से भी 12 तो केबिनेट मंत्री हैं जिनमें शांति धारीवाल (कोटा नोर्थ), परसादी लाल मीणा (लालसोट, दौसा), लालचंद कटारिया (झोटवाड़ा, जयपुर), प्रमोद जैन भाया (अंता, बारां), प्रताप सिंह खाचरियावास (सिविल लाइन, जयपुर), महेश जोशी (हवामहल, जयपुर), रमेश मीणा (सपोटरा, करोली), विश्वेन्द्र सिंह (डीग कुम्हेर, भरतपुर), ममता भूपेश (सिकराय, दौसा), भजनलाल जाटव (वैर, भरतपुर), टीकाराम जूली (अलवर ग्रामीण) और शकुंतला रावत (बानसूर, अलवर) शामिल हैं। अशोक चांदना (हिंडोली, बूंदी), राजेन्द्र यादव (कोटपूतली, जयपुर), सुभाष गर्ग (भरतपुर), मुरारीलाल मीणा (दौसा) और जाहिदा खान (कासम, भरतपुर) भी गहलोत मंत्री मंडल में राज्यमंत्री हैं।
(रिपोर्ट – रामस्वरूप लामरोड़, जयपुर)
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जानिए… ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट के बारे में मुख्य बिन्दु
दक्षिणी राजस्थान में प्रदेश की सबसे बड़ी नदी चंबल बहती है, जिसमें भरपूर मात्रा में पानी आता रहता है। चंबल की सहायक नदियों कुन्नू, पार्वती और कालीसिंध में भी बारिश के मौसम में पानी की आवक ज्यादा होती है। चंबल में पानी के अत्यधिक भराव के कारण बांधों के गेट को खोलकर पानी छोड़ना पड़ता है। इस अतिरिक्त पानी को पूर्वी राजस्थान के उन अभावग्रस्त जिलों में ले जाने के लिए पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना बनाई गई। ताकि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने, ग्रामीण इलाकों में भूजल स्तर बढने और लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा सके।
प्रोजेक्ट 40,000 करोड़ रुपए का
इस परियोजना के तहत प्रदेश के 13 जिले आते हैं जिनमें झालावाड़, कोटा, बूंदी, बारां, सवाई माधोपुर, अजमेर, टोंक, जयपुर, अलवर, दौसा, करोली, भरतपुर और धोलपुर शामिल है। इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय स्तर का दर्जा दिए जाने की मांग इसलिए की जा रही है ताकि इस प्रोजेक्ट में लगने वाली कुल लागत की 90 प्रतिशत राशि केन्द्र सरकार से मिल सके। यह प्रोजेक्ट 40,000 करोड़ रुपए का है।
प्रोजेक्ट बना था भाजपा राज में, पूरा करने की जिद कर रही है कांग्रेस
वर्ष 2017-18 के बजट में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना की घोषणा की थी। इस परियोजना को वर्ष 2017 में केन्द्रीय जल आयोग द्वारा अनुमोदित किया गया था। वसुंधरा राजे ने अपने बजट भाषण में कहा था कि ईआरसीपी को राष्ट्रीय स्तर का दर्जा देने के लिए राज्य सरकार ने केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है। राजस्थान में सरकार बदल गई। अब मुख्यमंत्री इस प्रोजेक्ट को पूरा करने की मांग करते हुए केन्द्र सरकार पर बार बार सियासी हमला कर रहे हैं।
गहलोत के मुताबिक खुद नरेन्द्र मोदी ने अजमेर और जोधपुर की चुनावी सभाओं में ईआरसीपी को राष्ट्रीय स्तर का दर्जा देने का वादा किया। अब वे अपना वादा पूरा नहीं कर रहे हैं। दरअसल इस प्रोजेक्ट के साथ बड़ा सियासी फायदा जुड़ा है जिसे बीजेपी और कांग्रेस भुनाना चाहती है।
ईआरसीपी से जुड़े 13 जिलों के सियासी समीकरण को समझिए
पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को राष्ट्रीय स्तर का दर्जा मिलने पर इस प्रोजेक्ट से जुड़े 13 जिलों की तस्वीर बदल जाएगी। इस प्रोजेक्ट के नाम पर दोनों ही दल सियासी फायदा उठाना चाहते हैं। इसी वजह से दोनों ही दलों में ईआरसीपी को लेकर टकराव की स्थिति बनी हुई है। ईआरसीपी के तहत आने वाले 13 जिलों में 100 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से वर्तमान में कांग्रेस के 50, बीजेपी के पास 22, आरएलडी के 1 और 7 सीटों पर निर्दलीय विधायक जीते हुए हैं। जिस राज में इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय स्तर का दर्जा मिलेगा तो श्रेय उसी पार्टी को जाएगा।
100 विधानसभा सीटों के लिए कांग्रेस को बड़ा मुद्दा
इस श्रेय लेने की होड़ में ईआरसीपी प्रोजेक्ट बीजेपी और कांग्रेस के बीच फुटबॉल बन गया है। अगर गहलोत सरकार के रहते इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय स्तर का दर्ज मिलता है तो इस क्षेत्र में आने वाली 100 विधानसभा सीटों के लिए कांग्रेस को बड़ा मुद्दा मिल जाएगा। बीजेपी नहीं चाहती कि जब तक केन्द्र में उनकी सत्ता है तब तक कांग्रेस को कोई राजनैतिक लाभ नहीं मिले। इधर गहलोत ने राज्य के बजट से ईआरसीपी का कार्य शुरू कर दिया है।
इन 13 जिलों के 17 विधायक गहलोत मंत्रीमंडल में शामिल
अशोक गहलोत मंत्री मंडल में कुल 30 मंत्री हैं। इन में 17 मंत्री ईआरसीपी वाले 13 जिलों से हैं। 17 में से भी 12 तो केबिनेट मंत्री हैं जिनमें शांति धारीवाल (कोटा नोर्थ), परसादी लाल मीणा (लालसोट, दौसा), लालचंद कटारिया (झोटवाड़ा, जयपुर), प्रमोद जैन भाया (अंता, बारां), प्रताप सिंह खाचरियावास (सिविल लाइन, जयपुर), महेश जोशी (हवामहल, जयपुर), रमेश मीणा (सपोटरा, करोली), विश्वेन्द्र सिंह (डीग कुम्हेर, भरतपुर), ममता भूपेश (सिकराय, दौसा), भजनलाल जाटव (वैर, भरतपुर), टीकाराम जूली (अलवर ग्रामीण) और शकुंतला रावत (बानसूर, अलवर) शामिल हैं। अशोक चांदना (हिंडोली, बूंदी), राजेन्द्र यादव (कोटपूतली, जयपुर), सुभाष गर्ग (भरतपुर), मुरारीलाल मीणा (दौसा) और जाहिदा खान (कासम, भरतपुर) भी गहलोत मंत्री मंडल में राज्यमंत्री हैं।
(रिपोर्ट – रामस्वरूप लामरोड़, जयपुर)
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