राम ”नीति” का अंत

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अटल-आडवानी-जोशी यानि कि भाजपा के 3 आधार स्तम्भ. ये भाजपा के शुरूआती दौर की बात है जब सन चौरासी के चुनाव में नई भाजपा को मात्र 2 सीटें मिली थी, इसके बाद राममंदिर को लेकर विवाद, बाबरी विध्वंस जैसी घटनाएं होती हैं और भाजपा एक राजनितिक दल के रूप में उभर कर सामने आती है. इस नई भाजपा के जो आधार स्तम्भ थे, वो यही तीन लोग थे. 89-90 में आडवाणी जी का सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा जो कि बाबरी मस्जिद विवाद की पृष्ठभूमि थी. उसका सारा कार्यभार आडवानी जी ने निभाया था. अब उस समय की फायरब्रांड उमा भारती आदि भी उसी रथयात्रा और विवाद की ही देन है. लेकिन अब इन सारे चेहरों की विदाई लगभग हो चुकी है.

Advani -

2019 के लोकसभा चुनाव की अगर बात की जाय तो आडवानी जी का टिकट गांधीनगर से पहले ही कट चुका है, हाल ही में मुरली मनोहर जोशी जो की कानपुर से सांसद हैं इस बार टिकट नही दिया गया. अटल बिहारी वाजपेयी गुजर चुके हैं, तो कुल मिला-जुलाकर भाजपा का एक युग लगभग समाप्ति की ओर है या समाप्त हो चुका है, अब राममंदिर से जुड़े हुए चेहरे संसद में नही होंगे. इस तरह से अगर भाजपा के आंतरिक बदलाव की बात की जाय तो बेहद बड़े स्तर पर सब कुछ बदल चुका है.

मोदी-शाह ने पूरे संगठन की संरचना ही बदल दी है, अब भाजपा की राजनीति पूरी तरह से इन्ही दो चेहरों से होकर गुजरती है, नए चेहरे, नयी नैतिकता, नया लिबास, नयी ब्रांडिंग लगभग सब-कुछ भाजपा में बदला जा चुका. भाजपा की राजनीति अब पूरी तरह से बदल चुकी है.

Modi mask -

भाजपा की राजनीति अब राममंदिर से अलग दुसरे मुद्दों पर जिनमे बातें नरेंद्र मोदी की होंगी या विकास की मालूम नही. अब ये देखना दिलचस्प होगा की जिस तरह से अटल-आडवानी ने भाजपा को एक मकाम पर पहुचाया था, मोदी-शाह भाजपा को किन उंचाइयो तक पहुचाते हैं.