Eknath Shinde: ढाई साल से वर्षा बंगला हमारे लिए बंद था…शिवसेना MLA की खुली चिट्ठी से शिंदे का उद्धव को चैलेंज h3>
मुंबई: एक तरफ जहां उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) अपनी पार्टी और सरकार को बचाने के प्रयास में जुटे हैं। वहीं दूसरी तरफ बागी गुट के विधायक संजय शिरसाट (Sanjay Shirsat) ने मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी है। इस पत्र में उन्होंने कई सारे सवाल उठाए हैं। उन्होंने खुलेआम यह लिखा है कि हमारी समस्या को सिर्फ एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) ही सुनते थे। पहली बार वर्षा बंगले पर लोगों की भीड़ देख कर खुशी हुई। बीते ढाई साल से हमें एंट्री तक नहीं मिलती थी। हमें इस बंगले में घुसने के लिए आपके करीबी लोगों से मिन्नतें करनी पड़ती थी। उन्होंने कहा कि हमें राज्यसभा चुनाव (Rajyasabha Election) से भी दूर रखा गया। हमारे साथ अपमानजनक व्यवहार किया गया।
अगर हमें कोई दिक्कत थी और हम सीएम से मिलना चाहते थे। तो हमें वर्षा बंगले (Varsha Bungalow) पर बुलाकर, कई घंटों तक सड़क पर खड़ा करवाया जाता था। हमारे फोन का जवाब तक नहीं दिया जाता था। इस अपमान को कई विधायकों ने सहन किया है। हमने भी आपके आसपास के लोगों को यह बताने की कोशिश कई बार की। लेकिन शायद यह बातें आप तक कभी पहुंची ही नहीं होंगी। उन्होंने कहा कि जब हमारा अपमान हो रहा था तब हमारी तकलीफ को सिर्फ एकनाथ शिंदे सुनते थे। अब हम सब न्याय के लिए एकजुट हो हुए हैं। हिंदुत्व, अयोध्या और राम मंदिर शिवसेना के मुद्दे हैं।
विधायकों की नाराजगी क्यों?
एकनाथ शिंदे गुट के विधायक में जो चिट्ठी ट्वीट की है। उसमें इस बात का जिक्र है कि बीते 18 साल में उन्हें उद्धव ठाकरे से मिलने और अपनी बात कहने का मौका नहीं मिला। उनकी शिकायत यह भी है कि आदित्य ठाकरे के साथ उन्हें अयोध्या जाने से क्यों रोका गया? शिकायत इस बात की भी है कि राज्यसभा चुनाव में उन पर अविश्वास क्यों जताया गया? इसके अलावा वर्षा बंगले पर सिर्फ एनसीपी और कांग्रेस के विधायकों को ही आने-जाने की अनुमति क्यों थी।
क्षेत्र के लोगों को जवाब देना मुश्किल था
शिरसाट ने उद्धव ठाकरे पर हमला बोलते हुए अपनी चिट्ठी में कई सवाल उठाये हैं। उन्होंने कहा कि जब हमारे चुनाव क्षेत्र में लोग पूछते थे कि मुख्यमंत्री तो आपके हैं फिर भी एनसीपी और कांग्रेस के विधायकों को इतना महत्व कैसे मिल रहा है। लोग हमसे यह भी पूछते थे कि मुख्यमंत्री तो आपके हैं बावजूद इसके वह आपसे मिलते क्यों नहीं? एमएलए होने के बावजूद दूसरे दलों के विधायकों का काम पूरा कैसे हो जाता है? जनता के इन सवालों का जवाब देना हम जैसे विधायकों के लिए काफी मुश्किल भरा होता था।
शिरसाट ने कहा कि बालासाहेब ठाकरे के जमाने में उनके दरवाजे हमेशा खुले रहते थे। कल जो कुछ आपने कहा वह सिर्फ भावना है। जब हमने आपको कुछ कहना चाहा तो आपने कुछ सुना ही नहीं। इसलिए हमने यह चिट्ठी लिखने का फैसला किया।
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अगर हमें कोई दिक्कत थी और हम सीएम से मिलना चाहते थे। तो हमें वर्षा बंगले (Varsha Bungalow) पर बुलाकर, कई घंटों तक सड़क पर खड़ा करवाया जाता था। हमारे फोन का जवाब तक नहीं दिया जाता था। इस अपमान को कई विधायकों ने सहन किया है। हमने भी आपके आसपास के लोगों को यह बताने की कोशिश कई बार की। लेकिन शायद यह बातें आप तक कभी पहुंची ही नहीं होंगी। उन्होंने कहा कि जब हमारा अपमान हो रहा था तब हमारी तकलीफ को सिर्फ एकनाथ शिंदे सुनते थे। अब हम सब न्याय के लिए एकजुट हो हुए हैं। हिंदुत्व, अयोध्या और राम मंदिर शिवसेना के मुद्दे हैं।
विधायकों की नाराजगी क्यों?
एकनाथ शिंदे गुट के विधायक में जो चिट्ठी ट्वीट की है। उसमें इस बात का जिक्र है कि बीते 18 साल में उन्हें उद्धव ठाकरे से मिलने और अपनी बात कहने का मौका नहीं मिला। उनकी शिकायत यह भी है कि आदित्य ठाकरे के साथ उन्हें अयोध्या जाने से क्यों रोका गया? शिकायत इस बात की भी है कि राज्यसभा चुनाव में उन पर अविश्वास क्यों जताया गया? इसके अलावा वर्षा बंगले पर सिर्फ एनसीपी और कांग्रेस के विधायकों को ही आने-जाने की अनुमति क्यों थी।
क्षेत्र के लोगों को जवाब देना मुश्किल था
शिरसाट ने उद्धव ठाकरे पर हमला बोलते हुए अपनी चिट्ठी में कई सवाल उठाये हैं। उन्होंने कहा कि जब हमारे चुनाव क्षेत्र में लोग पूछते थे कि मुख्यमंत्री तो आपके हैं फिर भी एनसीपी और कांग्रेस के विधायकों को इतना महत्व कैसे मिल रहा है। लोग हमसे यह भी पूछते थे कि मुख्यमंत्री तो आपके हैं बावजूद इसके वह आपसे मिलते क्यों नहीं? एमएलए होने के बावजूद दूसरे दलों के विधायकों का काम पूरा कैसे हो जाता है? जनता के इन सवालों का जवाब देना हम जैसे विधायकों के लिए काफी मुश्किल भरा होता था।
शिरसाट ने कहा कि बालासाहेब ठाकरे के जमाने में उनके दरवाजे हमेशा खुले रहते थे। कल जो कुछ आपने कहा वह सिर्फ भावना है। जब हमने आपको कुछ कहना चाहा तो आपने कुछ सुना ही नहीं। इसलिए हमने यह चिट्ठी लिखने का फैसला किया।
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