देसी वैज्ञानिक ने खोजा कोरोना वायरस का ‘परदादा’, जानें कैसे हुई पहचान

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देसी वैज्ञानिक ने खोजा कोरोना वायरस का ‘परदादा’, जानें कैसे हुई पहचान

देसी वैज्ञानिक ने खोजा कोरोना वायरस का ‘परदादा’, जानें कैसे हुई पहचान

हाइलाइट्स:

  • अक्टूबर 2019 के पहले या आसपास थी SARS के पूर्वज की मौजूदगी
  • 24 दिसंबर 2019 के बाद नए स्ट्रेन को जानने के बार में सब लोग उत्सुक
  • WHO ने जनवरी में कहा था – पेशेंट जीरो को शायद कभी ना खोज पाएं

नई दिल्ली
कोविड-19 संक्रमण के पीछे की वजह SARS-Cov-2 वायरस है। इसकी उत्पत्ति का पता लगाने को लेकर उतना प्रयास नहीं किया गया होता यदि पेशेंट जीरो अब तक मिल गया होता। पेशेंट जीरो एक मेडिकल शब्द है जिसका मतलब उस रोगी से है जिसमें सबसे पहले महामारी का पता चलता है। इस साल जनवरी में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि हम “कभी नहीं खोज पाएंगे कि पेशेंट जीरो कौन था।

लेकिन वायरस के पूर्वज के पता लगाने का एक तरीका था। मूल रूप से दिल्ली के रहने वाले मॉलीक्यूलर महामारी विज्ञानी ने डेटा के साथ SARS-Cov-2 के पूर्वज वायरस के इतिहास का पता लगाया है। इसके अनुसार प्रोगिनेटर या पूर्वज जीनोम, कम से कम अक्टूबर 2019 से आसपास था और मार्च 2020 तक जीवित रहा। यह पूर्वज वायरस कोरोना वायरस के जीनोम में पाया गया जो कि एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण फैलाता था।

इंस्टीट्यूट फॉर जीनोमिक्स एंड इवोल्यूशनरी मेडिसिन, टेम्पल यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर डॉ सुधीर कुमार ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि 24 दिसंबर 2019 के बाद (जब पहला मामला सामने आया था) सभी नए स्ट्रेन के बारे में जानने को उत्सुक थे। उन्होंने कहा कि हम भी जानना चाहते थे कि कौन सा स्ट्रेन पहले आया। उन्होंने कहा कि हम आपको यह कोरोना वायरस के पूर्वज वायरस की मौजूदगी का समय बता सकते हैं। यह अक्टूबर 2019 से पहले या उसके आसपास था।

पहले मामले से दो महीने पहले, रेफरेंस जीनोम सिक्वेंस को लेकर भविष्यवाणी की गई थी, जिसका अब उपयोग किया जा रहा है। लेकिन पूर्वज वायरस खत्म नहीं हुआ था। कुमार ने कहा कि “हमने पाया कि वायरस से निकला उसका अंश संक्रमण फैलाने के बाद भी मौजूद था। यह जनवरी 2020 में चीन में और मार्च 2020 में अमेरिका में मौजूद था।

डॉ. सुधीर कुमार के अनुसार पूर्वज वायरस को फैलने के लिए म्यूटेशन की जरूरत नहीं थी। “यह अपने आप फैलने के लिए तैयार था। SARSCoV-2 इसका पड़पोता है, जो इससे तीन म्यूटेशन बाद का है। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए, कुमार और उनकी टीम ने म्यूटेशन ऑर्डर एनालिसिस प्रोसेस को अपनाया। इस प्रोस का यूज अक्सर ट्यूमर में म्यूटेशन की स्टडी करने के लिए किया जाता था। इस स्टडी की फाइडिंग ऑक्सफोर्ड एकेडमिक जर्नल ‘मॉलिक्यूलर बायोलॉजी एंड इवोल्यूशन’ में पब्लिश हुई थी।

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