‘ट्रिपल तलाक’ और ‘निजता’ पर जल्द आएगा फैसला!

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‘ट्रिपल तलाक’ और ‘निजता’ पर जल्द आएगा फैसला!
‘ट्रिपल तलाक’ और ‘निजता’ पर जल्द आएगा फैसला!

ट्रिपल तलाक और निजता का मुद्दें पर न्याय की मांग सोलहवीं लोकसभा चुनाव के बाद से की जाने लगी है। यह मुद्दा पूरे देश की छवि का मुद्दा बन चुका है। इन दोनों मुद्दे को लेकर कई सारे सारे सवाल खड़े होते है, जिसमें एक सवाल महिलाओं की आजादी से भी जुड़ा हुआ है। आखिर क्यों तीन तलाक के नाम पर उनकी जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया जाता है। अब, इन दोनों मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा। जी हाँ, सुप्रीम कोर्ट इसी हफ्ते दो अहम फैसले सुनाएगा। कोर्ट यह निर्धारित करेगा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है कि नहीं।

खबर के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट इस हफ्ते दो बड़े फैसलें ले सकता है, जिसमें निजता और ट्रिपल तलाक का मुद्दा शामिल है। आपको बता दें कि कोर्ट यह तय करेगा कि निजता का अधिकार मैलिक अधिकार है या नहीं, इसके साथ ही मुस्लिमों में प्रचलित एक बार में तीन तलाक की वैधानिकता पर भी फैसला आएगा। साथ ही आपको याद दिला दें कि इन दोनों मुद्दों पर नौ और पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठों ने सुनवाई करके अपना फैसला सुरक्षित रखा हुआ है। दोनों पीठों की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने की थी। जस्टिस खेहर 27 अगस्त को रियाटर हो रहे हैं, ऐसे में दोनों फैसलें 27 अगस्त से पहले आने की उम्मीद है। नियम के अनुसार, जो पीठ सुनवाई करती है, वही फैसला देती है। इसीलिए प्रत्येक न्यायाधीश रिटायर होने से पहले उन सभी मामलों में फैसला दे देता है, जिनकी सुनवाई उसने की होती है।

जानियें, निजता के अधिकार पर बवाल क्यों है?

आपको बता दें कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है कि नहीं ये मुद्दा ‘आधार’ योजना को चुनौती देने के मामले में उठा। याचिकाकर्ताओं की दलील है कि आधार के लिए बायोमैट्रिक डाटा और सूचनाएं एकत्र करने से उनके निजता के अधिकार का हनन होता है। बहस के दौरान सरकार ने निजता को मौलिक अधिकार घोषित करने का विरोध किया। मुख्य अधिकार मौलिक अधिकार है तो उसका हिस्सा भी मौलिक अधिकार ही माना जाएगा। निजता को स्वतंत्रता और जीवन के अधिकार से अलग करके नहीं देखा जा सकता।

ट्रिपल तलाक
ट्रिपल तलाक का मुद्दा महिलाओं की आजादी को छिनने का मामला है। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक की वैधानिकता पर छह दिन सुनवाई चली। बीते 18 मई को फैसला सुरक्षित हुआ। शुरुआत में कोर्ट ने स्वयं संज्ञान लिया। हालांकि बाद में तीन तलाक पीड़ित महिलाओं ने भी याचिकाएं डालीं और इसे असंवैधानिक घोषित करने की मांग की।

जानियें, तीन तलाक पर क्या दलीलें पेश की गई है


याचिकाकर्ताओं की दलील

-ये महिलाओं के साथ भेदभाव है।
– महिलाओं को तलाक लेने के लिए कोर्ट जाना पड़ता है, जबकि पुरुषों को मनमाना हक है।
– कुरान में इसका जिक्र नहीं है।
– ये गैर- कानूनी होने के साथ ही असंवैधानिक है।
मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की दलील
-ये अवांछित है, लेकिन वैध
– ये पर्सनल ला का हिस्सा है कोर्ट दखल नहीं दे सकता
– 1400 साल से चल रही प्रथा है ये आस्था का विषय है।
– पर्सनल ला को मौलिक अधिकारों की कसौटी पर नहीं देखा जा सकता है।
सरकार की दलील
– ये महिलाओं से गरिमा से जीवनजीने के हक का हनन है।
– ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है, इसलिए इसे धार्मिक
-आजादी के तहत सहारा नहीं मिल सकता।
– पाकिस्तान समेत 22 मुस्लिम देश इसे खत्म कर चुके हैं।

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट का इस मामलें पर क्या फैसला आएगा, यह तो खैर वक्त ही बताएगा, लेकिन इस सच्चाई से नाकारा नहीं जा सकता है कि तीन तलाक महिलाओं की आजादी और उनके अधिकार का हनन करता है।