Crude Oil: जानिए क्यों भारत को रूस से खरीदते रहना चाहिए तेल, अमेरिका की आलोचना को अनसुना करना ही होगा बेहतर

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Crude Oil: जानिए क्यों भारत को रूस से खरीदते रहना चाहिए तेल, अमेरिका की आलोचना को अनसुना करना ही होगा बेहतर

Crude Oil: जानिए क्यों भारत को रूस से खरीदते रहना चाहिए तेल, अमेरिका की आलोचना को अनसुना करना ही होगा बेहतर

नई दिल्ली: हाल ही में भारत को रूस से सस्ते तेल का ऑफर मिला था। भारत ने भी उस ऑफर को स्वीकार किया है और रूस से तेल खरीदने की तैयारी है। भारत के इस फैसले की पश्चिमी देश आलोचना कर रहे हैं। अमेरिका की कॉमर्स सेक्रेटरी Gina Raimondo ने कहा कि भारत का ये फैसला निराश करने वाला है। उन्होंने कहा कि यह वक्त आजादी, लोकतंत्र और संप्रभुता के लिए अमेरिका समेत तमाम देशों के साथ खड़े होने का है और यूक्रेन का समर्थन करने का है। उन्होंने कहा कि ऐसे वक्त में रूस के राष्ट्रपति पुतिन को पैसे मुहैया कराकर युद्ध को और बढ़ाने का काम करना सही नहीं है। वहीं ऑस्ट्रेलिया ने भी रूस से तेल खरीदने के भारत के फैसले की आलोचना की है।

भारत को इन देशों की आलोचना को अनसुना कर देना चाहिए। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे अमीर देश बड़े तेल निर्यातक देश भी हैं। जब से अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंध लगाए हैं, अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बढ़ गई हैं, जिसका सीधा फायदा अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों को हो रहा है। वहीं भारत एक मिडिल इनकम वाला देश है, जो आज भी 70 फीसदी तक ऊर्जा के लिए आयात पर निर्भर है। पिछले दिनों में गैस की कीमतें तो दोगुनी तक हो गई हैं। मार्च में कंज्यूमर प्राइस इंफ्लेशन 6.07 फीसदी हो गया है, जबकि रिजर्व बैंक ने इसे अधिकतम 6 फीसदी रखने की ठान रखी थी।

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इस वक्त तो भारत को अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से कहना चाहिए कि वह भी तेल 30 फीसदी डिस्काउंट पर दें, जो रूस दे रहा है तो भारत रूस से तेल नहीं खरीदेगा। जो प्रतिबंध अमेरिका ने लगाए हैं, उससे तेल महंगा हुआ है तो फिर उसका सारा असर गरीब देशों पर ही पड़ रहा है, जिसमें यूरोपीय देश कोई मदद नहीं कर रहे हैं। वैसे तो हर देश को अपनी पंसद के संघ को चुनने का हक है, लेकिन जब नाटो ने यूक्रेन में घुसने की कोशिश की तो सुरक्षा के डर से रूस ने हमला किया। अगर उस वक्त ही यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की कहते कि वह न्यूट्रल रहेंगे, तो शायद ये युद्ध कभी होता ही नहीं। इस युद्ध का बीज तो अप्रैल 2008 में हुई बुखारेस्ट समिट में ही पड़ गया था, जब अमेरिका ने सोचा था कि नाटो को यूक्रेन और जॉर्जिया तक बढ़ाया जाएगा। देखा जाए तो ये कहना गलत नहीं होगा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए अमेरिका ही जिम्मेदार है।

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