क्‍या पेड़ों से भी दुनिया में फैल सकता है कोरोना वायरस? वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

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क्‍या पेड़ों से भी दुनिया में फैल सकता है कोरोना वायरस? वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

क्‍या पेड़ों से भी दुनिया में फैल सकता है कोरोना वायरस? वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

हाइलाइट्स:

  • वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि कोरोना जैसे सैकड़ों वायरस पेड़ों के परागकण से फैल सकते हैं
  • उन्‍होंने कहा कि परागकणों से कोरोना वायरस के प्रसार का खतरा भीड़ भरे इलाकों में ज्‍यादा है
  • साइप्रस के निकोसिया यूनिवर्सिटी के शोध में यह चौका देने वाली जानकारी सामने आई है

निकोसिया
कोरोना वायरस के कहर से जूझ रही दुनिया के लिए एक बुरी खबर है। एक ताजा शोध में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि कोरोना जैसे सैकड़ों वायरस पेड़ों के परागकण से भी फैल सकते हैं। परागकणों से कोरोना वायरस के प्रसार का खतरा भीड़ भरे इलाकों में ज्‍यादा है। साइप्रस के निकोसिया यूनिवर्सिटी के शोध में यह चौका देने वाली जानकारी सामने आई है।

शोधकर्ताओं ने कंप्‍यूटर पर विलो के पेड़ का मॉडल बनाया जो बड़ी मात्रा में परागकण छोड़ता है और बताया कि इसके कण किस तरह से आसपास फैल जाते हैं। हालांकि राहत की बात यह है कि ये परागकण बहुत तेजी से भीड़ से दूर चले जाते हैं। इस शोध के आधार पर शोधकर्ताओं ने कहा कि कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए 6 फुट की सोशल डिस्‍टेंसिंग हमेशा पर्याप्‍त नहीं रहेगी।
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व्‍यापक मॉडल के आधार पर कंप्‍यूटर चित्र बनाया

शोधकर्ताओं ने इसकी जगह पर सुझाव दिया कि ज‍िन जगहों पर हवा में परागकण का स्‍तर ज्‍यादा है, वहां उसे कम करने के उपाय किए जाने चाहिए। उन्‍होंने कहा कि एक दिन में एक पेड़ औसतन प्रति क्‍यूबिक फुट पर 40 परागकण से ज्‍यादा हवा में छोड़ सकता है। यही नहीं प्रत्‍येक कण के अंदर हजारों वायरल पार्टिकल हो सकते हैं। इस शोध को भौतिकविद तालिब दबोउक और इंजीनियर दिमित्रियस ड्रीकाकिस ने अंजाम दिया है।

इन विशेषज्ञों ने ज्‍यादा कोरोना संक्रमण वाले इलाकों और अमेरिका के एलर्जी मैप के बीच संबंध से प्रभावित है। इन शोधकर्ताओं ने एक व्‍यापक मॉडल के आधार पर एक कंप्‍यूटर चित्र बनाया जिसमें बताया कि किस तरह से परागकण हवा के जरिए विलो के पेड़ से फैलता है। दिमित्रियस ड्रीकाकिस ने कहा कि उन्‍हें उम्‍मीद है कि इस शोध से लोगों का पेड़ों के ऊपर ज्‍यादा ध्‍यान जाएगा। उनका यह शोध जर्नल Physics of Fluids में प्रकाशित हुआ है।

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