BSF जवानों के अकाउंट्स में बीएसएफ से बर्खास्त कॉन्स्टेबल ही लगा रहा था सेंध
डीसीपी IFSO प्रशांत गौतम ने बताया कि ऑफ़लाइन अनुरोधों में आने वाली कठिनाई को देखते हुए कोविड के दौरान स्व-घोषणा/प्रमाणीकरण के माध्यम से एनपीएस के तहत PRAN में रखी राशि के 25% आंशिक निकासी के लिए विशेष ऑनलाइन ओटीपी आधारित तंत्र का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी। यूनिट के निकासी और वितरण अधिकारी (डीडीओ) के माध्यम से फिजिकली वेरीफिकेशन से बचने के लिए कोविड के दौरान ग्राहक द्वारा वास्तविक निकासी सुनिश्चित करने के लिए ग्राहक के मोबाइल नंबर और उसके PRAN से जुड़े ईमेल पर ओटीपी भेजकर दोहरा प्रमाणीकरण किया जाता था। हर प्रान, सब्सक्राइबर के अन्य विवरणों के अलावा उसके मोबाइल नंबर, ईमेल आईडी और बैंक खाता संख्या से जुड़ा होता है। ग्राहक के विशिष्ट और सत्यापित अनुरोध पर ही डीडीओ के माध्यम से एनएसडीएल द्वारा बनाए गए डेटा बेस में ग्राहकों के विवरण को बदला जा सकता है। जब भी, ग्राहक के किसी विवरण में कोई परिवर्तन होता है, तो ग्राहक के खाते से लिंक मोबाइल और ईमेल आईडी पर अलर्ट संदेश भेजा जाता है।
आरोपी बीएसएफ की 122वीं बटालियन में कॉन्स्टेबल के पद पर तैनात था। मई 2019 में मलाडा, पश्चिम बंगाल में उसे सेवाओं से बर्खास्त कर दिया गया था। इसी अवधि के दौरान उसे 122वीं बटालियन के डीडीओ का लॉगिन क्रेडेंशियल मिला था। यूनिट की लेखा शाखा में जाकर उसने 122वीं बीएन बीएसएफ के डीडीओ के चोरी हुए क्रेडेंशियल्स के माध्यम से एनपीएस पोर्टल तक अनाधिकृत पहुंच प्राप्त की। साथ ही एनपीएस पोर्टल की सभी विशेषताओं और कार्यों को समझा। उसने सुरक्षा प्रश्नों में बदलाव के माध्यम से डीडीओ के खाते में पहुंच प्राप्त करने में एनपीएस ऑनलाइन प्रणाली की भेद्यता के बारे में सीखा और बीएसएफ के 5 और डीडीओ खातों में अनधिकृत पहुंच प्राप्त करने के लिए इसका फायदा उठाया।
इन अकाउंट्स को किया टारगेट
संबंधित बटालियन के सभी कर्मियों के प्रान के डेटा बेस तक पहुंच के साथ प्रान ग्राहकों के विवरण बदलने के विशेषाधिकार के साथ, आरोपी घनश्याम ने उन ग्राहकों को निशाना बनाया, जिनके खाते में ईमेल आईडी और मोबाइल नंबर उनके प्रान से नहीं जुड़े थे, वर्ना उन्हें अलर्ट मिल जाता। आरोपी ने टारगेट किए गए प्रान में अपना मोबाइल नंबर, ईमेल आईडी और बैंक अकाउंट नंबर भर दिया था।
यूपी पुलिस का कॉन्स्टेबल बनकर रह रहा था
IFSO को बीएसएफ के संबंधित विभाग से इस फ्रॉड के बारे में शिकायत मिली थी। जिस पर इंस्पेक्टर राजीव मलिक की निगरानी में एसआई अजीत सिंह यादव व हेड कॉन्स्टेबल सुनील की टीम को लगाया गया था। टीम ने अलग-अलग सोर्स से जानकारी जुटाई, सारी कड़ी प्रयागराज के नैनी इलाके में जाकर रुक रही थीं। एसीपी जयप्रकाश के सुपरविजन में इंस्पेक्टर संदीप सिंह, हेड कॉन्स्टेबल अभय सिंह, कॉन्स्टेबल राजपाल सिंह, दिनेश कुमार की टीम ने प्रयागराज में दबिश दी। आरोपी घनश्याम को दबोच लिया गया। वह अपना नाम श्याम सिंह रखकर वहां अपनी प्रेमिका के साथ रह रहा था। उसने वहां खुद को यूपी पुलिस के संचार विभाग में कॉन्स्टेबल बता रखा था। उसकी कार पर पुलिस का स्टीकर भी लगा हुआ था और यूपी पुलिस की टोपी व वर्दी भी थी। जांच में पता चला कि आरोपी कारोबारियों व मनी एक्सचेंजर्स के बैंक अकाउंट्स में एंट्री लेता था। बदले में उन्हें कमीशन देता और कैश ले लेता था। रीवा, मध्य प्रदेश के 2 खातों में प्रान से ठगी गई पूरी राशि के क्रेडिट होने का पता चला है। उसने अपने आधार कार्ड पर सीएमओ प्रयागराज के जाली स्टाम्प का प्रयोग कर आधार के पोर्टल पर नाम परिवर्तन का जाली अनुरोध अपलोड कर अपना नाम बदल लिया था।