BMHRC को फिर से खड़ा करने की कवायद: नौकरी छोड़ चुके डॉक्टरों से पूछा कारण, मांगे सुझाव | Efforts to revive BMHRC Bhopal | Patrika News h3>
चिकित्सकों से मिले जवाब केंद्र सरकार को भेजे जाएंगे: दरअसल सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद मॉनीटङ्क्षरग कमेटी अस्पताल छोड़ चुके चिकित्सकों और अन्य विशेषज्ञों से अस्पताल छोडऩे का कारण पूछ रही हैं। यही नहीं उनसे अस्पताल को पुनर्जीवित करने के सुझाव भी मांगे गए हैं।
चिकित्सकों से मिले सुझावों को केन्द्र सरकार को दिया जाएगा ताकि उन पर अमल कर बीएमएचआरसी को एक बार फिर सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल बनाया जा सके।
10 साल में 45 डॉक्टरों ने छोड़ा
बीएमएचआसी में डॉक्टरों द्वारा अस्पताल छोडऩे का सिलसिला करीब दस साल पहले शुरू हुआ था। गैस पीडि़त संगठनों के आरोप, विभागीय चुनौतियों के चलते 2011-2012 में एक साथ आधा दर्जन डॉक्टरों ंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद अब तक 45 चिकित्सक संस्थान छोड़ चुके हैं।
यह मिले सुझाव
: अस्पताल को स्वायत्त संस्था या व्यवस्थित पीजीआई के रूप में चलाया जाए।
: गैस पीडि़तों की जगह आम मरीजों के लिए भी अस्पताल तैयार हो।
: गैस पीडि़त संगठनों द्वारा डॉक्टरों पर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष दवाब बनाना बंद हो।
: चिकित्सकों की सैलरी स्ट्रक्चर बेहतर हो, एम्स में भी सैलरी ज्यादा।
: डॉक्टरों को नियमों के साथ निजी प्रेक्टिस की छूट मिले।
: संस्था चलाने के लिए अच्छा प्रशासक या एजेंसी हो।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार संस्थान छोड़ चुके चिकित्सकों से उनके अस्पताल छोडऩे का कारण पूछा गया है। जो कारण बताए गए हैं उन्हें केन्द्र सरकार को दे दिए जाएंगे। उसके अनुसार आगे की रणनीति बनेगी।
– पूर्णेंदु शुक्ला, सदस्य मॉनीटरिंग कमेटी
किस विभाग में कितने डॉक्टर-
विभाग : डॉक्टर
कार्डियोलॉजी : 02
सीवीएस : 02
यूरोलॉजी : 01
नेफ्रोलॉजी : 00
पल्मोनरी : 03
ऑप्थो : 03
कैंसर सर्जरी : 00
एनेस्थीशिया : 08
रेडियोडाग्नोसिस : 01
न्यूरो सर्जरी : 02
साइकेट्री : 01
गेस्ट्रोमेडिसिन : 00
गेस्ट्रो सर्जरी : 01
पैथोलॉजी : 02
माइक्रो बायलॉजी : 01
इन हालातों के चलते स्थिति बिगड़ी –
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एक ट्रस्ट का गठन किया गया था, जिसने यूनियन कार्बाइड की परिसंपत्तियों को बेचकर अस्पताल बनाया था। जुलाई 2010 में अस्पताल को ट्रस्ट से लेकर केन्द्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक इनर्जी को सौंप दिया गया। यहीं से गड़बड़ी की शुरुआत हुई। चिकित्सकों के कई भत्ते खत्म हो गए, वेतन भी कम हो गया।
कई अन्य समस्याओं के बाद चिकित्सकों ने अस्पताल छोडऩा शुरू कर दिया। हालांकि इससे अस्पताल प्रबंधन को फर्क नहीं पड़ा और दो साल बाद इसकी जिम्मेदारी आईसीएमएआर को सौंप दी गई। 2015 में अस्पताल केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के उपक्रम डायरेक्टर ऑफ हेल्थ रिसर्च के पास चला गया। वर्तमान में संचालन फिर आईसीएमआर के पास आ गया।
चिकित्सकों से मिले जवाब केंद्र सरकार को भेजे जाएंगे: दरअसल सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद मॉनीटङ्क्षरग कमेटी अस्पताल छोड़ चुके चिकित्सकों और अन्य विशेषज्ञों से अस्पताल छोडऩे का कारण पूछ रही हैं। यही नहीं उनसे अस्पताल को पुनर्जीवित करने के सुझाव भी मांगे गए हैं।
चिकित्सकों से मिले सुझावों को केन्द्र सरकार को दिया जाएगा ताकि उन पर अमल कर बीएमएचआरसी को एक बार फिर सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल बनाया जा सके।
10 साल में 45 डॉक्टरों ने छोड़ा
बीएमएचआसी में डॉक्टरों द्वारा अस्पताल छोडऩे का सिलसिला करीब दस साल पहले शुरू हुआ था। गैस पीडि़त संगठनों के आरोप, विभागीय चुनौतियों के चलते 2011-2012 में एक साथ आधा दर्जन डॉक्टरों ंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद अब तक 45 चिकित्सक संस्थान छोड़ चुके हैं।
यह मिले सुझाव
: अस्पताल को स्वायत्त संस्था या व्यवस्थित पीजीआई के रूप में चलाया जाए।
: गैस पीडि़तों की जगह आम मरीजों के लिए भी अस्पताल तैयार हो।
: गैस पीडि़त संगठनों द्वारा डॉक्टरों पर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष दवाब बनाना बंद हो।
: चिकित्सकों की सैलरी स्ट्रक्चर बेहतर हो, एम्स में भी सैलरी ज्यादा।
: डॉक्टरों को नियमों के साथ निजी प्रेक्टिस की छूट मिले।
: संस्था चलाने के लिए अच्छा प्रशासक या एजेंसी हो।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार संस्थान छोड़ चुके चिकित्सकों से उनके अस्पताल छोडऩे का कारण पूछा गया है। जो कारण बताए गए हैं उन्हें केन्द्र सरकार को दे दिए जाएंगे। उसके अनुसार आगे की रणनीति बनेगी।
– पूर्णेंदु शुक्ला, सदस्य मॉनीटरिंग कमेटी
किस विभाग में कितने डॉक्टर-
विभाग : डॉक्टर
कार्डियोलॉजी : 02
सीवीएस : 02
यूरोलॉजी : 01
नेफ्रोलॉजी : 00
पल्मोनरी : 03
ऑप्थो : 03
कैंसर सर्जरी : 00
एनेस्थीशिया : 08
रेडियोडाग्नोसिस : 01
न्यूरो सर्जरी : 02
साइकेट्री : 01
गेस्ट्रोमेडिसिन : 00
गेस्ट्रो सर्जरी : 01
पैथोलॉजी : 02
माइक्रो बायलॉजी : 01
इन हालातों के चलते स्थिति बिगड़ी –
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एक ट्रस्ट का गठन किया गया था, जिसने यूनियन कार्बाइड की परिसंपत्तियों को बेचकर अस्पताल बनाया था। जुलाई 2010 में अस्पताल को ट्रस्ट से लेकर केन्द्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक इनर्जी को सौंप दिया गया। यहीं से गड़बड़ी की शुरुआत हुई। चिकित्सकों के कई भत्ते खत्म हो गए, वेतन भी कम हो गया।
कई अन्य समस्याओं के बाद चिकित्सकों ने अस्पताल छोडऩा शुरू कर दिया। हालांकि इससे अस्पताल प्रबंधन को फर्क नहीं पड़ा और दो साल बाद इसकी जिम्मेदारी आईसीएमएआर को सौंप दी गई। 2015 में अस्पताल केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के उपक्रम डायरेक्टर ऑफ हेल्थ रिसर्च के पास चला गया। वर्तमान में संचालन फिर आईसीएमआर के पास आ गया।