अमिताभ बच्चन बोले- इंदु जी की सबसे खास बात उनकी उदारता और सादगीपन था

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अमिताभ बच्चन बोले- इंदु जी की सबसे खास बात उनकी उदारता और सादगीपन था

अमिताभ बच्चन बोले- इंदु जी की सबसे खास बात उनकी उदारता और सादगीपन था

बॉलिवुड के मेगास्टार अमिताभ बच्चन के टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप की चेयरमैन इंदु जैन के साथ लगभग 60 साल से बेहद नजदीकी संबंध थे। इंदु जैन 13 मई को निर्वाण को प्राप्त हुईं। अमिताभ बच्चन ने ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के लिए लिखे एक एक्सक्लूसिव आर्टिकल में इंदु जैन के बारे में अपनी प्यारी यादें साझा की हैं जो एक बेहद शालीन मेजबान और उल्लेखनीय महिला थीं और लोगों का दिल जीत लेती थीं।

वह जिस वातावरण में भी रहती थीं, वहां गजब की शांति और दिव्यता मौजूद रहती थी। इंदु जैन की मौजूदगी में उनकी सज्जनता सभी पर छा जाती थी। उनके चेहरे पर कभी भी नाराजगी या नकारात्मक भाव नहीं आते थे बल्कि हमेशा अपने लिए और आसपास के लोगों के लिए एक संतोषजनक मुस्कुराहट रहती थी।

एक बार मैंने उन्हें और उनकी मदर-इन-लॉ रमाजी को अपने किचन स्टाफ के साथ किचन के पास बैठे देखा और वे शाम के खाने के लिए मटर छील रही थीं… यह एक बेहद प्यारा दृश्य था…

अमिताभ बच्चन

मेरे पिता और साहू जैन एम्पायर के फाउंडर साहू शांति प्रसाद जैन के संबंधों के चलते 1960 के दशक में मैं कुछ समय उनके अलीपुर स्थित कोलकाता के जैन हाउस रहा था। यहां मुझे बेहद सम्मान मिला था और ऐसा लगा था जैसे उनके परिवार का सदस्य हूं। (मैं उस समय काफी छोटा था लेकिन मैंने जो महसूस किया उसे ज्यादा से ज्यादा अभिव्यक्त करने की कोशिश की)

एक बेहद फैला हुआ और बड़ा घर, संयुक्त परिवार, सभी के बीच सौहार्दपूर्ण व्यवहार….

वहां ‘गद्दा’ रूम में शतरंच खेलते हुए या बातचीत करते हुए काफी हंसी-खुशी वक्त गुजरता था…इंदुजी एक बेहद उदार मेजबान थीं और वह अनुकरणीय तरह से देखभाल करती थीं…

डाइनिंग टेबल पर पूरा परिवार एक साथ बैठता था…इंदुजी सभी का ख्याल रखती थीं और खुद बैठने से पहले सभी को खाना परोसती थीं…
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एक बार मैंने उन्हें और उनकी मदर-इन-लॉ रमाजी को अपने किचन स्टाफ के साथ किचन के पास बैठे देखा और वे शाम के खाने के लिए मटर छील रही थीं… यह एक बेहद प्यारा दृश्य था…

मुझे उनके परोपकारी कामों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी जो वह समाज और खासतौर पर महिलाओं के लिए कर रही थीं, मगर मैंने उन्हें कई बार घर पर महिलाओं को आमंत्रित करते हुए देखा था जहां उनके बीच काफी सजीव चर्चाएं होती थीं; शायद महिला सशक्तिकरण के उनके अग्रगामी विचारों के ऊपर जिसे वह आगे बढ़ाना चाहती थीं।
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एक खास दिन, मुझे अच्छी तरह याद है कि उन्होंने बहुत सारी महिलाओं को मुख्य ड्रॉइंग रूम में आमंत्रित किया था और वहां कुछ मजेदार गेम्स की शुरूआत हुई। सभी मेहमान कपड़ों और व्यवहार से समाज के आम लोगों के रूप में नजर आ रहे थे।

सभी आते थे और भाग लेते थे- हर कोई अपने चुने हुए विषय के साथ न्याय करता था। मुझे भी आमंत्रित किया गया। मैं विक्टोरिया मेमोरियल के सामने खड़े होने वाले ‘पुचका वाला’ के रूप में आया…उसी की तरह कपड़े पहने हुए और अवधी बोलता हुआ।
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वक्त गुजरता गया और मेरे कोलकाता छोड़ने के बाद मिलना-जुलना कम हो गया लेकिन जब भी मैं उनसे मिलता या उनसे अपने बारे में सुनता, हमेशा उनके प्रति एक सम्मान और गर्व के भाव महसूस करता।

मेरे लिए उनकी सबसे खास बात उनकी उदारता और सादगीपन था। उनके कद जैसी किसी महिला के लिए यह गुण बेहद प्यारा था जो आज के समय में समझना बेहद मुश्किल है।
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