Agra Smart City कहने को, सांस लेने के लिए इन्हेलर का सहारा लेना पड़ रहा

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Agra Smart City कहने को, सांस लेने के लिए इन्हेलर का सहारा लेना पड़ रहा

Agra Smart City कहने को, सांस लेने के लिए इन्हेलर का सहारा लेना पड़ रहा


सुनील साकेत, आगरा: यूपी के आगरा को स्मार्ट सिटी बनाया जा रहा है। इसके लिए 900 करोड़ अब तक खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन शहर की कालोनियों और बस्तियों के हालात देखेंगे तो आप पांच मिनट भी ठहर नहीं पाएंगे। बदबू और गंदगी के ढेर के बीच बस्तियों और कालोनियों में रहने वाले लोगों को रोजाना इन्हीं समस्याओं के बीच जीवन गुजारना पड़ रहा है। हालात इतने भयावह है कि सांस लेने के लिए लोगों को इन्हेलर का इस्तेमाल तक करना पड़ता है।

हम बात कर रहे हैं आगरा के जगदीशपुरा वार्ड संख्या 3 की। यहां एक बस्ती है, जिसे प्यारेलाल वैद्य जी के गली के नाम से जाना जाता है। बस्ती में करीब 2 हजार लोगों से अधिक आबादी है। मुख्य मार्ग से गली के भीतर जैसे ही आप प्रवेश करेंगे तो बजबजाती नालियां और उबड़-खाबड़ खड़ंजा दिखाई देखा। इससे आगे तो और भी भयावह समस्या दिखाई देगी। गली के आखिरी में बच्चू सिंह का मकान है। इस मकान के पास कूड़े का अंबार लगा है। नालियों में मच्छर पनप रहे हैं। बदबू और सड़ांध से सांस लेना भी दूभर है। स्थानीय निवासी अरविंद कुमार निगम का कहना है कि कई वर्षों से कूड़े का ढेर लगा है। सफाई करने वाले कभी नहीं आते हैं। नगर निगम से कभी फॉगिंग तक नहीं हुई है। नालियों में सिल्ट जमीं रहती है। आलम यह है सफाई कर्मचारी कभी झाड़ू तक नहीं लगाते हैं।

रोजाना जलता है कूड़ा

आगरा ताज ट्रिपेजियम जोन (टीटीजेड) में आता है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार कूड़े में आग लगाने पर दंड का प्रावधान है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के तहत 50 हजार तक का जुर्माना लगाया जाता है। इसके बावजूद भी रोजाना यहां कूड़ा जलाया जाता है। स्थानीय निवासी किशोरी देवी का कहना है कि क्षेत्र में नारकीय हालात बने हुए हैं। सुबह आंख खुलती है तो कूड़े का धुआं नाक के रास्ते शरीर में जाता है। धुएं से कई लोग बीमार पड़ गए हैं।

डेढ़ साल पहले हुआ था टेंडर

स्थानीय निवासी रामजीलाल का कहना है कि कक्ष संख्या-3 में गली, नाली और इंटरलॉकिंग के लिए डेढ़ साल पहले नगर निगम ने टेंडर जारी किया था। कंस्ट्रक्शन कंपनी के ठेकेदार ने मिट्टी डलवाकर निर्माण कार्य कराना भी शुरू किया। निर्माण से पहले निर्माण की शिला पट्टिका लगा दी गई, लेकिन निर्माण कार्य नहीं किया गया। उन्हें आशंका है कि इस नगर निगम अधिकारी और स्थानीय पार्षद महेश संवेदी ने कागजों में निर्माण करा दिया। इस बारे में स्थानीय पार्षद के मोबाइल नंबर पर संपर्क किया गया, लेकिन उनका नंबर स्विच ऑफ आ रहा था।

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