शरद यादव से डर गए हैं नीतीश जी?

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26 जुलाई, को शुरू हुआ बिहार का सियासी ड्रामा तो थम गया, लेकिन उसका असर अब भी व्यापक स्तर पर जारी है, जो कि दोनों ओर बदस्तूर देखा जा सकता है। दोनों ओर से हमारा मतलब राजद और जदयू से कतई नहीं है बल्कि जेडीयू के दो खेमें, शरद और नीतीश कुमार से है। शरद यादव ने जनता दल यूनाइटेड पर ये कहते हुए दावा ठोक दिया है कि पार्टी का असर पूरे देश में है, जिनमें से बिहार इकाई को छोड़कर देश के सभी 14 इकाइयों का समर्थन हमारे खेमें को है। ऐसे में नीतीश कुमार को बिहार इकाई को लेकर अपनी पार्टी अलग बना लेनी चाहिए।

इससे पहले नीतीश कुमार ने गत शुक्रवार, को प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की थी और कहा था कि शरद यादव अपने बारे में फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं। उसके बाद शरद के बिहार दौरे के बाद पार्टी ने उन्हें राज्यसभा पद से हटा दिया था। अब सोमवार, को पार्टी ने अपने 21 नेताओं को पार्टी से निष्कासित कर दिया है, जिनमें से कुछ पूर्व मंत्री भी रह चुके हैं।

 

शरद यादव को विपक्ष का पूर्ण समर्थन, शरद का ये कहना कि पार्टी के अंदर एक धड़े का समर्थन मुझे है और फिर शरद यादव का बिहार दौरा। उसके बाद नीतीश कुमार का प्रधानमंत्री से मिलना और आज जदयू से 21 नेताओं की विदाई, इन वाक्यों से ये साबित हो जाता है कि नीतीश कुमार प्रार्टी के अंदर मच रही खलबली को ठीक से संभाल नहीं पा रहे हैं।

प्रधानमंत्री से मिलने का ये कारण भी हो सकता है कि जिस तरह से पिछले दिनों मुलायम के लाख चाहने पर भी सपा के ऊपर अखिलेश ने कब्जा कर लिया फिर, इलेक्शन कमिशन ने ताजा तरीन मामले में गुजरात राज्यसभा चुनाव पर जिस तरह का फैसला लिया है। उससे नीतीश कुमार डरे हुए हों कि कहीं जदयू हमारे हाथ से निकल ना जाए और पार्टी पर अपने हक को लेकर दिल्ली का समर्थन हर हाल में चाहते हों। इन सभी घटनाओं से एक बात सो साफ है कि नीतीश कुमार के इस फैसले के बाद शरद यादव ना केवल मजबूत बनकर उभरे हैं बल्कि देश और प्रदेश में उनका राजनीतिक पद बढ़ भी गया है। यही नहीं नीतीश कुमार के सामने उन्होंने बड़ी चुनौती भी खड़ी कर दी है।