संस्कृत विवि की 50 हजार की पुस्तकें बिकी

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संस्कृत विवि की 50 हजार की पुस्तकें बिकी

संस्कृत विवि की 50 हजार की पुस्तकें बिकी

दरभंगा में तीन दिवसीय चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव ने प्रकाशन विभाग के लिए 50 हजार पुस्तकों की बिक्री की। महोत्सव में मिथिला और मैथिली की संस्कृति पर विमर्श हुआ। उद्घाटन और समापन सत्र को छोड़कर, कई…

Newswrap हिन्दुस्तान, दरभंगाMon, 21 Oct 2024 03:21 PM
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दरभंगा। तीन दिवसीय चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रकाशन विभाग के लिए काफी लाभप्रद रहा। महोत्सव के दौरान प्रकाशन विभाग की लगभग 50 हजार की पुस्तकों की बिक्री हुई। वहीं, संस्कृत भारती सहित अन्य प्रकाशनों की पुस्तकों की भी अच्छी बिक्री देखने को मिली। संस्कृत विवि के प्रकाशन प्रभारी प्रो. दिलीप कुमार झा ने बताया कि महोत्सव में प्रकाशन विभाग का स्टॉल लोगों को आकर्षित करने में सफल रहा। स्टॉल पर संस्कृत विवि से प्रकाशित सौ से अधिक पुस्तकों को रखा गया था। स्टॉल पर सबसे अधिक मांग डॉ. राम प्रकाश शर्मा रचित ‘मिथिला का इतिहास के प्रति रही। इसके अलावा डॉ. दिलीप कुमार झा व डॉ. दयानाथ झा द्वारा संपादित सचित्रावली (सचित्र विद्वत परिचय), डॉ. विद्येश्वर झा रचित गरुड़ पुराण, डॉ. शशिनाथ झा रचित मिथिला महात्म्य, डॉ. रामचंद्र झा संपादित दुर्गा अर्चन पद्धति, विश्वविद्यालय पंचांग आदि की खूब बिक्री हुई। सभी पुस्तकों पर प्रकाशन विभाग की ओर से 30 प्रतिशत की छूट भी दी गई थी। इसके अलावा संस्कृत भारती के स्टॉल पर भी 20 हजार से अधिक की पुस्तकें बिकी। महोत्सव के सह संयोजक राजेश झा ने बताया कि मिथिला की सांस्कृतिक राजधानी दरभंगा में संपन्न तीन दिवसीय चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव ने संस्कृति व साहित्य पर केंद्रित विमर्श को लेकर लंबी लकीर खींचने में कामयाबी हासिल की। महोत्सव में उद्घाटन एवं समापन सत्र को छोड़कर कुल आधा दर्जन सत्रों के अंतर्गत दर्जन भर विषयों पर विमर्श किया गया।

विमर्श के केंद्र में रही मिथिला-मैथिली

चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव में मिथिला और मैथिली की उपलब्धियों के साथ ही इसके लिए अपेक्षित हित-साधना पर व्यापक चिंतन हुआ। साहित्य और पत्रकारिता में भारतीय चिंतन तथा लोक साहित्य-कला-संस्कृति में एकात्मबोध विषयक विमर्श के केंद्र में मिथिला-मैथिली रही। विचार के लिए अलग से एक विषय ही रखा गया था मिथिला की ऐतिहासिक ज्ञान-परंपरा। आचार्य सुरेंद्र झा सुमन व आरसी प्रसाद सिंह सरीखे साहित्यकारों के नाम पर पुरस्कार ने भी मिथिला-मैथिली के महत्व को रेखांकित किया। विमर्श के लिए बने मंडप को मिथिला की विदुषियों भारती, गार्गी और भामती का नाम दिया गया था। मिथिलाक्षर के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए भी महोत्सव में आह्वान किया गया। महोत्सव ने स्थानीय युवाओं को आचार्य सुरेंद्र झा सुमन चित्र विधि में लगाए 65 चित्रों के माध्यम से मिथिला के गौरवशाली अतीत का दर्शन कराया और पर्यटन केंद्रों की मानसिक सैर करने का अवसर दिया।

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