त्रयंबकेश्वर में चादर चढ़ाने की परंपरा क्या है, औरंगजेब ने तोड़ा शिवलिंग फिर जीर्णोद्धार की कहानी, जानिए सबकुछ h3>
मुंबई: महाराष्ट्र के नासिक जिले में मौजूद भगवान शंकर के बारह ज्योतिर्लिंगों में एक त्रयंबकेश्वर मंदिर में दूसरे समुदाय के कुछ लोगों द्वारा बीते शनिवार की शाम घुसकर चादर चढाने का प्रयास किया गया। इस मामले की वजह से त्रयंबकेश्वर मंदिर चर्चा के केंद्र में है। फ़िलहाल गृहमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मामले में एसआईटी जांच के आदेश दिए हैं। जो कि एडीजी स्तर के अधिकारी की निगरानी में होगी। मंदिर प्रशासन का दावा है कि चादर चढाने के प्रयास को पुजारियों और सुरक्षा रक्षकों ने विफल कर दिया था। इस दौरान दोनों पक्षों के बीच वहां काफी विवाद भी हुआ। भले ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने इस मामले में कड़ी आपत्ति जाहिर की है लेकिन यह कोई पहला मामला नहीं है। इस तरह की घटना इसके पहले पिछले साल भी हुई थी। जब इस मंदिर में दूसरे समुदाय के लोगों ने घुसने की कोशिश की थी।
वहीं दूसरे समुदाय के लोगों का कहना है कि उन्होंने कभी शिवलिंग पर जाकर चादर चढाने का प्रयास नहीं किया बल्कि दशकों से चली आ रही परंपरा के तहत दूर से चादर दिखाने की कोशिश की थी। आइए आपको बताते हैं कि आखिर वह कौन सी परंपरा है। इसके अलावा त्रयंबकेश्वर मंदिर को किसने तोड़ा और किसने बनवाया?
दूर से चादर दिखाने वाली प्रथा कौन सी है?
नासिक जिले में हर साल दूसरे धर्म के संतों के सम्मान में पुण्यतिथि के दौरान एक जुलूस का आयोजन होता है। एक निजी चैनल से बातचीत में जुलूस के आयोजक मतिन सैय्यद ने कहा कि वह सालों से जुलूस वाले दिन भगवान शिव को चादर दिखाते आ रहे हैं। वह कभी मंदिर के अंदर नहीं जाते हैं। उन्होंने यह दावा भी किया कि जिन चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है। उन्होंने शिवलिंग पर चादर चढ़ाने की कोशिश नहीं की थी। वह केवल चादर को मंदिर की सीढ़ियों तक ले गए। वहीं त्रयंबकेश्वर नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष अवेज़ कोकनी की माने तो पीढ़ी दर पीढ़ी हर साल मंदिर की सीढ़ियों से धुआं दिखाने की प्रथा का पालन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हिंदू समुदाय ने दशकों से चली आ रही प्रथा का कभी भी विरोध नहीं किया। जबकि इस मुद्दे पर मंदिर के ट्रस्टी पंकज भूतड़ा का कहना है कि वह हर चीज का रिकॉर्ड रखते हैं और उनके मंदिर के रिकॉर्ड में इस तरह की प्रथा का कोई जिक्र नहीं है।
औरंगजेब ने त्र्यंबकेश्वर मंदिर पर किया था हमला
मुगल साम्राज्य के छठे शासक औरंगजेब ने सन 1690 में नासिक के त्रयंबकेश्वर मंदिर के अंदर मौजूद शिवलिंग को तुड़वा दिया था। मंदिर को नुकसान पंहुचाने के अलावा मंदिर के ऊपर मस्जिद का गुंबद भी बना दिया था। इतना ही नहीं औरंगजेब ने नासिक का नाम भी बदल दिया था लेकिन 1751 में मराठों का फिर से नासिक पर कब्जा हो गया। उसके बाद इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया। इस घटना का जिक्र इतिहासकार जदुनाथ सरकार की किताब हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब में है।
कब हुआ त्र्यंबकेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार ?
औरंगजेब के हमले के बाद इस मंदिर के जीर्णोद्धार का श्रेय पेशवाओं को दिया जाता है। तीसरे पेशवा के तौर पर जाने जानेवाले बालाजी (श्रीमंत नानासाहेब पेशवा) ने इसे 1755 से 1786 के बीच बनवाया था। हालांकि, पौराणिक मान्यतों के अनुसार यह भी कहा जाता है कि सोने और कीमती रत्नों से बने लिंग के ऊपर मुकुट महाभारत के पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था। यह भी कहा जाता है सत्रहवी शताब्दी में जब इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा था। उस समय इस काम में 16 लाख रुपये खर्च हुए थे। इसके अलावा त्र्यंबक इलाके को गौतम ऋषि की तपोभूमि के तौर पर भी जाना जाता है।
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वहीं दूसरे समुदाय के लोगों का कहना है कि उन्होंने कभी शिवलिंग पर जाकर चादर चढाने का प्रयास नहीं किया बल्कि दशकों से चली आ रही परंपरा के तहत दूर से चादर दिखाने की कोशिश की थी। आइए आपको बताते हैं कि आखिर वह कौन सी परंपरा है। इसके अलावा त्रयंबकेश्वर मंदिर को किसने तोड़ा और किसने बनवाया?
दूर से चादर दिखाने वाली प्रथा कौन सी है?
नासिक जिले में हर साल दूसरे धर्म के संतों के सम्मान में पुण्यतिथि के दौरान एक जुलूस का आयोजन होता है। एक निजी चैनल से बातचीत में जुलूस के आयोजक मतिन सैय्यद ने कहा कि वह सालों से जुलूस वाले दिन भगवान शिव को चादर दिखाते आ रहे हैं। वह कभी मंदिर के अंदर नहीं जाते हैं। उन्होंने यह दावा भी किया कि जिन चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है। उन्होंने शिवलिंग पर चादर चढ़ाने की कोशिश नहीं की थी। वह केवल चादर को मंदिर की सीढ़ियों तक ले गए। वहीं त्रयंबकेश्वर नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष अवेज़ कोकनी की माने तो पीढ़ी दर पीढ़ी हर साल मंदिर की सीढ़ियों से धुआं दिखाने की प्रथा का पालन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हिंदू समुदाय ने दशकों से चली आ रही प्रथा का कभी भी विरोध नहीं किया। जबकि इस मुद्दे पर मंदिर के ट्रस्टी पंकज भूतड़ा का कहना है कि वह हर चीज का रिकॉर्ड रखते हैं और उनके मंदिर के रिकॉर्ड में इस तरह की प्रथा का कोई जिक्र नहीं है।
औरंगजेब ने त्र्यंबकेश्वर मंदिर पर किया था हमला
मुगल साम्राज्य के छठे शासक औरंगजेब ने सन 1690 में नासिक के त्रयंबकेश्वर मंदिर के अंदर मौजूद शिवलिंग को तुड़वा दिया था। मंदिर को नुकसान पंहुचाने के अलावा मंदिर के ऊपर मस्जिद का गुंबद भी बना दिया था। इतना ही नहीं औरंगजेब ने नासिक का नाम भी बदल दिया था लेकिन 1751 में मराठों का फिर से नासिक पर कब्जा हो गया। उसके बाद इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया। इस घटना का जिक्र इतिहासकार जदुनाथ सरकार की किताब हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब में है।
कब हुआ त्र्यंबकेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार ?
औरंगजेब के हमले के बाद इस मंदिर के जीर्णोद्धार का श्रेय पेशवाओं को दिया जाता है। तीसरे पेशवा के तौर पर जाने जानेवाले बालाजी (श्रीमंत नानासाहेब पेशवा) ने इसे 1755 से 1786 के बीच बनवाया था। हालांकि, पौराणिक मान्यतों के अनुसार यह भी कहा जाता है कि सोने और कीमती रत्नों से बने लिंग के ऊपर मुकुट महाभारत के पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था। यह भी कहा जाता है सत्रहवी शताब्दी में जब इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा था। उस समय इस काम में 16 लाख रुपये खर्च हुए थे। इसके अलावा त्र्यंबक इलाके को गौतम ऋषि की तपोभूमि के तौर पर भी जाना जाता है।
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