Barood Ki Holi: पिचकारी की जगह यहां चली 3000 बंदूकें, देखें उदयपुर में कैसे खेली गई बारूद की होली?

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Barood Ki Holi: पिचकारी की जगह यहां चली 3000 बंदूकें, देखें उदयपुर में कैसे खेली गई बारूद की होली?

Barood Ki Holi: पिचकारी की जगह यहां चली 3000 बंदूकें, देखें उदयपुर में कैसे खेली गई बारूद की होली?


उदयपुर: राजस्थान केउदयपुर जिले के मेनार गांव में 400 सालों से चली आ रही रही परम्परा आज भी कायम है। इसके तहत हजारों युवा एक साथ बारूद की होली मनाते हैं। इसमें युवा क्षत्रिय योद्धा की तरह तैयार होकर इसमें शामिल होते हैं। शाम को शुरू होने वाली बारूद की होली देर रात तक चलती है। बारूद की होली का नजारा देखने से लगता है कि आज भी युवा इस परम्परा को लेकर खासा उत्साहित है। इस त्यौहार पर गांव में करीब 3 हजार बंदूकें एक के बाद एक चलती हैं। और तोप से दनादन 50 गोले भी दागे जाते हैं। धमाकों की आवाज इतनी तेज होती है कि 5 किलोमीटर दूर तक सुनाई देती रही है। खास बात यह है कि इसको देखने के लिए पूरे उदयपुर जिले से ही नहीं देश-विदेश से भी लोग यहां पहुंचते है। इसके अलावा यहां के युवा जो कि विदेशों में रहते है वे भी इस त्यौहार में शामिल होने के लिए अपने गांव पहुंच जाते हैं। और उमंग के साथ इस बारूद की होली में शामिल होने के बाद आंनद लेते हैं।

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क्यों मनाई जाती है बारूद की होली?

करीब 400 साल पहले मेनारिया ब्राह्मण समाज के लोगों ने मुगलों से हुए युद्ध में विजय प्राप्त कर उन्हें गांव से खदेड़ दिया था। युद्ध में जीत के बाद मेनार को मेवाड़ के महाराणा की ओर से 17वें उमराव की उपाधि दी गई थी। इसके अलावा महाराणा की और से ग्रामीणों के सम्मान में एक जाजम दी थी। जो कि आज भी गांव के लोगों के पास मौजूद है। और इस बारूद की होली के प्रारम्भ में सभी के इकठ्ठे होने पर उसी जाजम का उपयोग किया जाता है। हालांकि कोरोना के चलते गत वर्ष यह आयोजन नहीं हो पाया था। लेकिन इस बार युवाओं ने दोगुने जोश से बारूद की होली आयोजन किया। खास बात यह है कि अन्य राज्यों में काम करने वाले लोग भले ही दीपावली पर अपने गांव ना पहुंचे लेकिन जमरा बीज के पर्व पर साल में एक बार जरूर आते हैं।

एक महीने से तैयारिया शुरू हो जाती है मेनार गांव में

बारूद की होली को देखने के लिए दूर-दराज से लोग यहां पर पहुंचते हैं। इसलिए ग्रामीण एक महीने पहले से ही तैयारी में जुट जाते हैं। इस बार जमरा बीज के दिन क्षत्रिय योद्धा की तरह सजे धजे 3000 से युवकों ने ढोल नगाड़ों की थाप पर एक हाथ में खांडा और दूसरे हाथ में तलवार लेकर नृत्य किया। नृत्य करने की परम्परा कई दशकों से चली आ रही है। वहीं तोप से गोले दागने के साथ ही बंदूकों से एक के बाद एक सैकड़ों हवाई फायर भी किए गए। पटाखों की गर्जना के बीच तलवारों की कंकण से यहां के माहौल को युद्ध जैसा बना देती है।
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सिंगापुर, दुबई और आस्ट्रेलिया से युवा पहुंचते हैं बारूद की होली में शामिल होने

मेनार और आसपास के गांव के हजारों युवा सिंगापुर, दुबई, आस्ट्रलिया सहित अलग-अलग देशों में रहकर काम करते हैं। लेकिन बारूद की होली के लिए युवा साल में एक बार अपने गांव आते हैं। और इसमें शामिल होते हैं। कई युवा ऐसे भी हैं जो कि अपनी कमाई का दस प्रतिशत हिस्सा इस त्यौहार पर खर्च कर अपनी परम्परा को जीवित रखने का काम करते हैं। युवाओं की मानें तो वह हर साल इसलिए बारूद की होली में शामिल होते हैं ताकि उनके बच्चे भी इसके बारे में जान सके और अपनी परम्परा को कायम रख सकें। युवाओं का मानना है कि अपनी संस्कृति और विरासत को बचाने के लिए सभी को इस दिशा में काम करना चाहिए।
रिपोर्ट — भगवान प्रजापत
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