​मैं तब 7वीं में पढ़ता था, महिला रिश्‍तेदार ने मेरा यौन शोषण किया था – पीयूष मिश्रा का खुलासा ​

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​मैं तब 7वीं में पढ़ता था, महिला रिश्‍तेदार ने मेरा यौन शोषण किया था – पीयूष मिश्रा का खुलासा ​

​मैं तब 7वीं में पढ़ता था, महिला रिश्‍तेदार ने मेरा यौन शोषण किया था – पीयूष मिश्रा का खुलासा ​

बेबाक, बिंदास और बेफिक्र पीयूष मिश्रा ने अपनी जिंदगी को लेकर ऐसा खुलासा किया है, जिसे जानकर आपको भी झटका लगेगा। एक्‍टर ने अपनी आत्‍मकथा ‘तुम्‍हारी औकात क्‍या है पीयूष मिश्रा’ में बचपन में हुए एक ऐसे दर्दनाक अनुभव का जिक्र किया है, जिसकी कचोट आज भी उनके दिमाग में कहीं न कहीं सिमटी हुई है। पीयूष मिश्रा ने बताया है कि एक दूर की महिला रिश्‍तेदार ने बचपन में उनका यौन उत्‍पीड़न किया था। तब पीयूष मिश्रा 7वीं क्‍लास में पढ़ते थे। यह बात करीब 50 साल पुरानी है। पीयूष मिश्रा कहते हैं कि उस घटना ने उन्‍हें झकझोर कर रख दिया था। यह कुछ ऐसा था कि लंबे वक्‍त तक उन्‍हें सेक्‍स से डर लगता था।

अपने साथ हुए इस वाकये के बारे में पीयूष मिश्रा ने न्‍यूज एजेंसी पीटीआई से भी बात की है। वह कहते हैं, ‘करीब 50 साल पुरानी बात है। मैं 7वीं में पढ़ता था। गर्मियों का द‍िन था। मैंने किताब में सिर्फ सच लिखा है, लेकिन लोगों के नाम बदले हैं, क्‍योंकि मैं किसी से बदला नहीं लेना चाहता। मैं उस घटना से बहुत बुरी तरह स्तब्ध हो गया था। जो भी हुआ मैं उससे हैरान रह गया।’

‘लंबे वक्‍त और कई पाटर्नर के बाद दूर हुआ डर’

पीयूष मिश्रा आगे कहते हैं, ‘सेक्स इतनी स्वस्थ चीज है कि इसके साथ जब भी आपका पहली बार सामना हो रहा है, तो यह अच्छा होना चाहिए, नहीं तो यह आपको जीवनभर के लिए डरा देता है। आपको जीवन भर के लिए परेशान कर देता है। उस सेक्‍सुअल असॉल्‍ट (यौन हमले) ने मुझे जीवनभर के लिए उलझाकर कर रख दिया। एक लंबा वक्‍त लगा और कई साथ‍ियों के बाद मैं उस डर और जटिलता से बाहर आ पाया।’

पीयूष मिश्रा

‘मैं क‍िसी को चोट नहीं पहुंचाना चाहता’

पीयूष मिश्रा की आत्‍मकथा ग्वालियर की तंग गलियों से शुरू होती है, जहां उनका बचपन बीता। फिर दिल्ली के कल्‍चरल हब मंडी हाउस के दिन और फिर मुंबई तक की उनकी यात्रा, एक्‍टर ने किताब में अपनी पूरी जिंदगी को समेटने की कोश‍िश की है। वह कहते हैं, ‘मैंने किताब में घटनाएं तो सच रखी हैं, लेकिन नाम बदले हैं। मैं कुछ लोगों की पहचान छुपाना चाहता था। उनमें से कुछ महिलाएं हैं और कुछ पुरुष जो अब फिल्म इंडस्‍ट्री में बड़ा नाम बन गए हैं। मैं किसी से बदला नहीं लेना चाहता था। न ही किसी को चोट पहुंचाना चाहता था।’

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किताब में खुद की जगह संतप त्र‍िवेदी को बनाया कैरेक्‍टर

दिलचस्‍प बात यह है कि कितबा में पीयूष मिश्रा ने अपनी पूरी जीवन यात्रा का वर्णन एक किरदार संतप त्रिवेदी या हेमलेट के रूप में किया है। उन्‍हें नेशनल स्‍कूल ऑफ ड्रामा के दिनों में इसी नाम से जाना जाता था। ग्वालियर में एक मिडिल क्‍लास फैमिली में पैदा हुए पीयूष मिश्रा ने बचपन से ही सिंगिंग और म्‍यूजिक में रुचि थी। पेंटिंग्स, मूर्तियों, कविता और फिर रंगमंच की ओर उनका रुख हुआ। हरफनमौला पीयूष मिश्रा की खास‍ियत यह है कि उन्‍होंने इस सभी विधाओं में लोगों का दिल जीता है।

पिता चाहते थे डॉक्‍टर बने पीयूष मिश्रा

पीयूष मिश्रा किताब में लिखते हैं कि उनके पिता ने उन पर मेड‍िकल साइंस में करियर बनाने पर जोर डाला था। वह चाहते थे कि बेटा डॉक्‍टर बने, लेकिन पीयूष मिश्रा ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी और 20 साल की उम्र में एनएसडी में दाख‍िला लेने का फैसला किया। यहीं से थिएटर और एक्‍ट‍िंग की दुनिया में उनका सफर शुरू हुआ। पीयूष बताते हैं कि शुरुआत में वह दिल्ली छोड़कर मुंबई नहीं आना चाहते थे। लेकिन जबकि दोस्तों ने मुंबई में करियर शुरू किया तो आख‍िरकार वह भी सपनों के शहर पहुंच गए।

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‘गैंग्‍स ऑफ वासेपुर’ के सेट पर पीयूष मिश्रा

युवाओं में पॉपुलैरिटी और पीयूष मिश्रा की फिल्‍में

पीयूष मिश्रा ने सिनेमा की दुनिया में विशाल भारद्वाज की ‘मकबूल’ (2004), अनुराग कश्यप की ‘गुलाल’ (2009) और खासकर 2012 में रिलीज ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ से एक एक्‍टर, सिंगर, सॉन्‍ग राइटर, स्‍क्रीनप्‍ले राइटर के तौर पर पहचान बनाई। पीयूष मिश्रा की युवाओं में खास पॉपुलैरिटी है। वह कहते हैं, ‘हो सकता है कि जिस तरह से मैं कुछ कहता हूं, वह मुझे युवाओं से जोड़ता है, या मैं उनके बारे में, उनके मुद्दों के बारे में बात करता हूं… यह भी संभव है कि वे मुझमें किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं, जो भारी शब्दों का इस्तेमाल नहीं करता।’

‘मुझे खुशी है क‍ि मैं टाइपकास्‍ट नहीं हुआ’

पीयूष मिश्रा इस बात से खुश हैं कि उन्हें एक एक्‍टर के तौर पर टाइपकास्ट नहीं किया गया। वह कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि मुझे टाइपकास्ट किया गया है। मैंने हमेशा अलग-अलग भूमिकाएं की हैं, चाहे उनकी लें‍थ भले ही छोटी हो। ‘तमाशा’, ‘रॉकस्टार’, ‘मकबूल’, ‘गुलाल’ और ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में मेरे रोल छोटे थे, लेकिन ये अलग-अलग भूमिकाएं थीं। मुझे रोल मिलने में कोई समस्या नहीं है। मैं बहुत सी चीजों को खारिज करता रहता हूं। मैं उन रोल्‍स को ठुकरा देता हूं, जिनमें मुझे लगता है कि मैं एंजॉय नहीं कर पा रहा हूं।’