अघाड़ी ने बीजेपी के 28 साल पुराने किले में लगाई सेंध, जानिए कसबा सीट से क्यों छिना कब्जा

35
अघाड़ी ने बीजेपी के 28 साल पुराने किले में लगाई सेंध, जानिए कसबा सीट से क्यों छिना कब्जा

अघाड़ी ने बीजेपी के 28 साल पुराने किले में लगाई सेंध, जानिए कसबा सीट से क्यों छिना कब्जा


मुंबई: महाराष्ट्र में गुरुवार को दो विधानसभा सीटों कसबा और चिंचवड के नतीजे सामने आये। जिसमें सत्ता पर काबिज होने के बावजूद बीजेपी अपना 28 साल पुराना किला (कसबा सीट) नहीं बचा पाई। साल 1995 से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा था। इस सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार रविंद्र धंगेकर ने अप्रत्याशित जीत दर्ज की है। अप्रत्याशित इसलिए क्योंकि यह सीट बीजेपी से सालों से जीतती आ रही है। कसबा सीट पर रविंद्र धंगेकर को 73,194 वोट मिले हैं जबकि बीजेपी के हेमंत रासने को 62,224 मत मिले हैं। दोनों सीट पर जीत हासिल करने के लिए शिंदे-फडणवीस गठबंधन काफी मेहनत की थी। बीजेपी विधायक मुक्ता तिलक की मौत की वजह से कसबा सीट पर उपचुनाव हुआ था। वहीं चिंचवड सीट पर बीजेपी के लक्ष्मण जगताप की मौत की वजह से उपचुनाव हुआ। बीती 26 फरवरी को दोनों सीटों पर उपचुनाव के लिए मतदान हुआ था।

दो सीटों पर हुए चुनाव में एक सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार ने बाजी मारी है जबकि एक सीट पर बीजेपी उम्मीदवार को जीत मिली है। चिंचवड सीट पर बीजेपी की जीत तय मानी जा रही थी। आखिर बीजेपी को इस सीट पर हार का सामना क्यों करना पड़ा। आइये समझते हैं।

इन वजहों से कसबा में हारी बीजेपी
इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार सचिन परब ने नवभारत टाइम्स ऑनलाइन से बातचीत में कहा कि इस चुनाव में बीजेपी की हार की एक वजह उनका ओवर कॉन्फिडेन्स भी है। दूसरी वजह यह भी है कि बीजेपी पर कथित तौर पर पैसे मांगने का आरोप भी लगा था। इसके अलावा शिंदे-फडणवीस के खिलाफ पहली बार महाविकास अघाड़ी के तीनों दलों ने इतनी एकजुटता दिखाई। परब ने यह भी बताया कि रविंद्र धंगेकर ओबीसी समाज से आते हैं। साथ ही उनका क्षेत्र में अपना एक राजनीतिक वजूद है। उन्होंने साल 2009 में मनसे के टिकट पर बीजेपी के गिरीश बापट को कड़ी टक्कर दी थी। उस समय बापट ने मात्र सात हजार वोटों से वह चुनाव जीता था। इसके पहले वह कई बार स्थानीय पार्षद रह चुके हैं। साल 2014 में उन्होंने चुनाव लड़ा था लेकिन जीत नहीं मिल पाई थी। साल 2017 पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण धंगेकर को कांग्रेस में लाये थे लेकिन उन्हें 2019 के चुनाव में टिकट नहीं मिल पाया था।

इस मुद्दे पर महाराष्ट्र की राजनीति को बेहद करीब से समझने वाले राजनीतिक विश्लेषक डॉ. सुरेश माने ने नवभारत टाइम्स ऑनलाइन को बताया कि कसबा सीट पर बीजेपी के हारने की चार प्रमुख वजहें हैं। पहली वजह यह है कि बीजेपी ने इस सीट पर ब्राह्मण उम्मीदवार नहीं उतारा था। जिसकी वजह से ब्राह्मण वोट उनसे बिदक गया। यह सीट ब्राम्हण बाहुल्य मानी जाती है। इस सीट पर दिवंगत विधायक मुक्ता तिलक भी ब्राह्मण थीं। दूसरी वजह है कि विधानपरिषद चुनाव में बीजेपी ने बीमार मुक्ता तिलक को वोटिंग के लिए एम्बुलेंस से बुलवाया था। साथ ही इस चुनाव में बीमारी होने के बावजूद गिरीश बापट को चुनाव प्रचार के लिए उतारा गया। बापट का यहां अच्छा वर्चस्व माना जाता है।

इसकी वजह से भी कार्यकर्ताओं में नाराजगी रही होगी। तीसरी वजह यह भी है शिवसेना के पुराने कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी है। पार्टी टूटने के बाद कई शिवसैनिकों ने शिंदे-बीजेपी गठबंधन के खिलाफ वोट किया होगा। चौथी वजह यह भी है कि कसबा विधानसभा क्षेत्र में कई माइनॉरिटी पॉकेट हैं जहां के लोगों ने एकजुट होकर बीजेपी के खिलाफ मतदान किया होगा। जिसके चलते बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा।

राजनीति की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – राजनीति
News