बिहार नगर निकाय चुनावः नहीं आए आवेदक के वकील, आरक्षण पर पटना हाईकोर्ट में सुनवाई कल h3>
बिहार में नगर निकायों में पिछड़ा-अतिपिछड़ा आरक्षण मामले की सुनवाई 22 सितंबर को होगी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मंगलवार को पटना हाईकोर्ट में इसकी सुनवाई हुई। इस दौरान आवेदक के वकील के नहीं रहने से सुनवाई गुरुवार तक के लिए टाल दी गई।
राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से अधिवक्ता संजीव निकेश तथा राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता ललित किशोर कोर्ट में उपस्थित रहे। वहीं, हाईकोर्ट के आग्रह पर कोर्ट को सहयोग करने के लिए सीनियर एडवोकेट अमित श्रीवास्तव मौजूद थे। अब इस मामले पर गुरुवार को सुनवाई होगी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद गुरुवार सुबह मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ से इस मामले पर जल्द सुनवाई करने की गुहार लगाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस मामले पर हाईकोर्ट को 23 सितम्बर तक सुनवाई करने का आदेश दिया है।
गौरतलब है कि नगर निकाय चुनाव में आरक्षण नहीं देने का आरोप लगाते हुए पटना नगर निगम के वार्ड पार्षदों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत पिछड़ा आयोग बनाकर वार्डों में आरक्षण की स्थिति को स्पष्ट करना था, जो अब तक राज्य सरकार नहीं कर पायी । ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत ही नगर निकाय चुनाव होने चाहिए।
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आवेदक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मृगांक मौली ने कोर्ट को बताया था कि कि नगर निकाय चुनाव में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नजरअंदाज किया जा रहा है। उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश तथा महाराष्ट्र से संबंधित फैसले में बैकवर्ड कमेटी बना कर पिछड़ी जाति को नगर निकाय चुनाव में आरक्षण देने के निर्णय लेने के बाद ही चुनाव कराने का आदेश दिया है। राज्य सरकार ने पिछड़ी जाति को आरक्षण दिये बिना ही चुनाव कराने का निर्णय लिया है।
उच्चतम न्यायालय ने तीन जांच के प्रावधान के तहत राज्य को प्रत्येक स्थानीय निकाय में ओबीसी के पिछड़ेपन पर आंकड़े जुटाने का निर्देश दिया था जिसमें विशेष आयोग गठित करने और आयोग की सिफारिशों पर हरेक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने की जरूरत बताई। कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, और ओबीसी के लिए इस तरह के आरक्षण की सीमा में कुल सीटों की संख्या के 50 प्रतिशत को पार नहीं कर पाये।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब तक बिहार सरकार तीन जांच की अर्हता पूरी नहीं करती है तबतक, राज्य के निकाय चुनाव में ओबीसी सीट को सामान्य श्रेणी की सीट ही मानकर बताया जाये। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की अदालत ने इस बात का जिक्र किया कि अगर हाईकोर्ट इस याचिका पर पहले ही सुनवाई कर देता है, तो यह नगर निकाय चुनाव के उम्मीदवारों के लिए सही होगा।
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बिहार में नगर निकायों में पिछड़ा-अतिपिछड़ा आरक्षण मामले की सुनवाई 22 सितंबर को होगी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मंगलवार को पटना हाईकोर्ट में इसकी सुनवाई हुई। इस दौरान आवेदक के वकील के नहीं रहने से सुनवाई गुरुवार तक के लिए टाल दी गई।
राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से अधिवक्ता संजीव निकेश तथा राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता ललित किशोर कोर्ट में उपस्थित रहे। वहीं, हाईकोर्ट के आग्रह पर कोर्ट को सहयोग करने के लिए सीनियर एडवोकेट अमित श्रीवास्तव मौजूद थे। अब इस मामले पर गुरुवार को सुनवाई होगी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद गुरुवार सुबह मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ से इस मामले पर जल्द सुनवाई करने की गुहार लगाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस मामले पर हाईकोर्ट को 23 सितम्बर तक सुनवाई करने का आदेश दिया है।
गौरतलब है कि नगर निकाय चुनाव में आरक्षण नहीं देने का आरोप लगाते हुए पटना नगर निगम के वार्ड पार्षदों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत पिछड़ा आयोग बनाकर वार्डों में आरक्षण की स्थिति को स्पष्ट करना था, जो अब तक राज्य सरकार नहीं कर पायी । ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत ही नगर निकाय चुनाव होने चाहिए।
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आवेदक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मृगांक मौली ने कोर्ट को बताया था कि कि नगर निकाय चुनाव में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नजरअंदाज किया जा रहा है। उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश तथा महाराष्ट्र से संबंधित फैसले में बैकवर्ड कमेटी बना कर पिछड़ी जाति को नगर निकाय चुनाव में आरक्षण देने के निर्णय लेने के बाद ही चुनाव कराने का आदेश दिया है। राज्य सरकार ने पिछड़ी जाति को आरक्षण दिये बिना ही चुनाव कराने का निर्णय लिया है।
उच्चतम न्यायालय ने तीन जांच के प्रावधान के तहत राज्य को प्रत्येक स्थानीय निकाय में ओबीसी के पिछड़ेपन पर आंकड़े जुटाने का निर्देश दिया था जिसमें विशेष आयोग गठित करने और आयोग की सिफारिशों पर हरेक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने की जरूरत बताई। कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, और ओबीसी के लिए इस तरह के आरक्षण की सीमा में कुल सीटों की संख्या के 50 प्रतिशत को पार नहीं कर पाये।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब तक बिहार सरकार तीन जांच की अर्हता पूरी नहीं करती है तबतक, राज्य के निकाय चुनाव में ओबीसी सीट को सामान्य श्रेणी की सीट ही मानकर बताया जाये। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की अदालत ने इस बात का जिक्र किया कि अगर हाईकोर्ट इस याचिका पर पहले ही सुनवाई कर देता है, तो यह नगर निकाय चुनाव के उम्मीदवारों के लिए सही होगा।