नीतीश को रास न आई KCR की सलाह, मोदी के विरोध का पहला दांव ही पड़ गया उलटा… पढ़िए पूरा माजरा h3>
पटना: नीतीश कुमार शुरू से ही राजनीति में लोगों को चौंकाते आए हैं। लेकिन अपनी सियासत के आखिरी पड़ाव (माना जा रहा है कि ये नीतीश का वाकई में आखिरी चुनाव होगा।) में उन्होंने बीजेपी से या यूं कहें कि पीएम नरेंद्र मोदी से सीधे भिड़ने का जो रिस्क लिया है, उसका पहला दांव ही उल्टा पड़ता दिख रहा है। ऐसे समझिए कि तीसरा मोर्चा आज तक पॉलिटिकल मिराज ही साबित होता आया है, जो दिखता तो है लेकिन होता नहीं। ऐसे में नीतीश ने तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव को पटना आने का न्यौता दिया। केसीआर पटना पहुंचे भी। लेकिन वो न हुआ जिसकी नीतीश ने उम्मीद की थी। केसीआर ने जो फॉर्म्यूला नीतीश को सुझाया, उन्हें वो पसंद ही नहीं आया।
पहला दांव ही पड़ा उल्टा
केसीआर जब पटना पहुंचे तो उन्होंने पहला प्रस्ताव यही रखा कि बीजेपी के खिलाफ गैर-कांग्रेसी और गैर-बीजेपी दलों को एक मंच पर लाया जाए। यूं समझिए कि केसीआर ने तीसरे मोर्चे की जबरदस्त पैरवी की। इसके कुछ ही दिन बाद रविवार को जेडीयू से के सी त्यागी ने जो बयान दिया, उसने नीतीश के इरादों को जाहिर कर दिया। लेकिन साथ ही ये भी बता दिया कि कैसे नीतीश का पहला दांव ही उल्टा पड़ गया है। दरअसल केसी त्यागी ने साफ कह दिया कि गैर-कांग्रेस और गैर-लेफ्ट पार्टियों के बगैर बीजेपी को हराने का उद्देश्य अधूरा रह सकता है। यानि कोई भी मोर्चा बगैर कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के बीजेपी को हरा नहीं पाएगा।
अब क्या करेंगे नीतीश?
केसीआर और नीतीश एक साथ 5 दिन भी ढंग से नहीं चल पाए। ऐसे में नीतीश का उत्तर से दक्षिण तक बीजेपी विरोधी पार्टियों को एक करने की मुहिम को शुरू में ही झटका लग गया। इसी बीच नीतीश का सोमवार यानि 5 सितंबर को दिल्ली दौरे पर जाना भी कन्फर्म है। यानि नीतीश को भी समझ में आ गया है कि पटना में बैठकर गोलबंदी करेंगे तो मोदी विरोधी मुहिम का क्या होगा? इसके लिए तो बगैर कांग्रेस से सटे और बिना दिल्ली घूमे कुछ न होगा। इसीलिए नीतीश शायद इसी जुगत में हैं कि किसी तरह से बीजेपी विरोधी पार्टियां दिल्ली दरबार में ही एक मंच पर आ जाएं। मगर ये मसला भी उतना सीधा नहीं जितना दिख रहा है।
कांग्रेस-लेफ्ट को ही एक मंच पर लाना चुनौती
नीतीश को ये बखूबी मालूम है कि पहले तो कांग्रेस और लेफ्ट को ही एक साथ बनाए रखना या फिर उन्हें मंच पर लाना चुनौती है। क्योंकि जिस तरह से नीतीश राज्यों के हिसाब से अपने रिश्ते बदलते हैं, कुछ वैसा ही कांग्रेस और लेफ्ट के साथ भी है। उदाहरण के तौर पर कांग्रेस लेफ्ट की ‘केरल में बैरी और बंगाल में यारी’ तो सबने देखी है। कहने वाले तो ये भी कह रहे हैं कि नीतीश ने अपनी आखिरी पारी में रिस्क ले लिया है मतलब जीते तो जय-जय और हारे तो रिटायरमेंट।
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केसीआर जब पटना पहुंचे तो उन्होंने पहला प्रस्ताव यही रखा कि बीजेपी के खिलाफ गैर-कांग्रेसी और गैर-बीजेपी दलों को एक मंच पर लाया जाए। यूं समझिए कि केसीआर ने तीसरे मोर्चे की जबरदस्त पैरवी की। इसके कुछ ही दिन बाद रविवार को जेडीयू से के सी त्यागी ने जो बयान दिया, उसने नीतीश के इरादों को जाहिर कर दिया। लेकिन साथ ही ये भी बता दिया कि कैसे नीतीश का पहला दांव ही उल्टा पड़ गया है। दरअसल केसी त्यागी ने साफ कह दिया कि गैर-कांग्रेस और गैर-लेफ्ट पार्टियों के बगैर बीजेपी को हराने का उद्देश्य अधूरा रह सकता है। यानि कोई भी मोर्चा बगैर कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के बीजेपी को हरा नहीं पाएगा।
अब क्या करेंगे नीतीश?
केसीआर और नीतीश एक साथ 5 दिन भी ढंग से नहीं चल पाए। ऐसे में नीतीश का उत्तर से दक्षिण तक बीजेपी विरोधी पार्टियों को एक करने की मुहिम को शुरू में ही झटका लग गया। इसी बीच नीतीश का सोमवार यानि 5 सितंबर को दिल्ली दौरे पर जाना भी कन्फर्म है। यानि नीतीश को भी समझ में आ गया है कि पटना में बैठकर गोलबंदी करेंगे तो मोदी विरोधी मुहिम का क्या होगा? इसके लिए तो बगैर कांग्रेस से सटे और बिना दिल्ली घूमे कुछ न होगा। इसीलिए नीतीश शायद इसी जुगत में हैं कि किसी तरह से बीजेपी विरोधी पार्टियां दिल्ली दरबार में ही एक मंच पर आ जाएं। मगर ये मसला भी उतना सीधा नहीं जितना दिख रहा है।
कांग्रेस-लेफ्ट को ही एक मंच पर लाना चुनौती
नीतीश को ये बखूबी मालूम है कि पहले तो कांग्रेस और लेफ्ट को ही एक साथ बनाए रखना या फिर उन्हें मंच पर लाना चुनौती है। क्योंकि जिस तरह से नीतीश राज्यों के हिसाब से अपने रिश्ते बदलते हैं, कुछ वैसा ही कांग्रेस और लेफ्ट के साथ भी है। उदाहरण के तौर पर कांग्रेस लेफ्ट की ‘केरल में बैरी और बंगाल में यारी’ तो सबने देखी है। कहने वाले तो ये भी कह रहे हैं कि नीतीश ने अपनी आखिरी पारी में रिस्क ले लिया है मतलब जीते तो जय-जय और हारे तो रिटायरमेंट।