सतीश पूनियां की BJP प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी बचेगी या नया चेहरा होगा मुखिया? अगले महीने पूरा हो रहा है कार्यकाल h3>
जयपुर: भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां ने 14 सितम्बर 2019 को प्रदेश भाजपा की बागडोर संभाली थी। अब करीब एक महीने बाद 14 सितम्बर 2022 को पूनियां का तीन साल का कार्यकाल पूरा होने जा रहा है। इसी बीच पार्टी में यह अटकलें शुरू हो गई है कि अब नए प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी किसे सौंपी जाएगी? चूंकि जब सतीश पूनियां को पार्टी की बागडोर सौंपी गई थी तब प्रदेश के कई दिग्गज नेता कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़, ओम माथुर अन्य नेताओं के नाम चर्चाओं में थे लेकिन भाजपा आलाकमान ने पूनियां को पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष बनाया। हालांकि पूनियां पहली बार ही विधायक बने हैं लेकिन संघ पृष्ठभूमि के कारण पार्टी ने उन्हें प्रदेशाध्यक्ष का पद दे दिया। अब कार्यकाल पूरा होने पर पार्टी नया अध्यक्ष किसे बनाने जा रही है। इसे लेकर सियासी चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है।
चुनाव सिर पर हैं किसे खुश और किसे नाराज करेगी पार्टी
करीब सवा साल बाद राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष को हटाने और नए प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपे जाने को लेकर सियासी गणित शुरू हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे कह चुकी हैं कि चुनावों के समय जातिगत वोट बैंक खास महत्व रखते हैं। लोग भले ही पार्टी को बड़ा मानते हैं लेकिन अपनी जाति को लेकर हर कोई भावात्मक रूप से जातिगत नेता की ओर झुक जाते हैं। ऐसे में अब अगर भाजपा सतीश पूनियां को पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष के पद से हटाती है तो जाहिर तौर पर पार्टी को जाट समाज की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। किसी भी दूसरी जाति के नेता को प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी मिलती है तो जातिगत राजनीति का मुद्दा एक बार फिर से उठने की प्रबल संभावनाएं हैं। इसी कारण फिलहाल पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच सुगबुगाहट शुरू हो गई है।
विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी नहीं लेगी कोई रिस्क
आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए भाजपा कोई सियासी नुकसान नहीं झेलना चाहती है। इसी वजह से भले ही सतीश पूनियां का कार्यकाल पूरा होने जा रहा हो लेकिन केन्द्रीय स्तर पर प्रदेशाध्यक्ष बदले जाने के कोई संकेत नहीं दिए गए हैं। पार्टी के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह ने मीडिया से बातचीत में इतना कहा कि आगामी विधानसभा चुनावों से पहले संगठन में कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा। इससे साफ समझा जा सकता है कि प्रदेशाध्यक्ष का सपना देखने वाले नेताओं को फिलहाल करीब डेढ साल का इंतजार करना होगा। अरुण सिंह के बयान के बाद जो नेता पिछले कुछ समय से प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी के लिए लॉबिंग कर रहे थे। उन पर भी विराम लग गया है।
प्रदेश भाजपा की गुटबाजी को फिर से हवा नहीं देना चाहता केन्द्रीय नेतृत्व
तीन साल पहले जब सतीश पूनियां को पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली थी तब उनके विरोधी एक्टिव हो गए थे। शपथ ग्रहण समारोह में केन्द्रीय मंत्रियों, सांसदों सहित भाजपा के कई दिग्गत नेता शामिल हुए थे लेकिन वसुंधरा राजे और उनके कट्टर समर्थकों ने समारोह से दूरी बनाई। राजे ने पार्टी के कार्यक्रमों से करीब दो साल तक दूरी बनाए रखी। देवदर्शन यात्रा के बहाने वसुंधरा राजे ने सक्रियता दिखाई को फिर से पूराने नारे गूंजने लगे। केसरिया में हरा हरा, राजस्थान में वसुंधरा के नारे गूंजने लगे। अपने जन्मदिन के मौके पर भी राजे ने बड़ा शक्ति प्रदर्शन किया था। ऐसे में अब विधानसभा चुनावों से पहले प्रदेशाध्यक्ष बदल कर केन्द्रीय नेतृत्व गुटबाजी को हवा देने से बच रहा है। विधानसभा चुनावों तक प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां की कुर्सी के साथ महामंत्री चंद्रशेखर की कुर्सी को भी कोई खतरा नजर नहीं आ रहा है। (रिपोर्ट – रामस्वरूप लामरोड़)
जगदीप धनखड़ जिस स्कूल में पढ़ते थे वहां की प्रिंसिपल को सुनें, कैसे पूरा गांव खुशियां मना रहा है
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चुनाव सिर पर हैं किसे खुश और किसे नाराज करेगी पार्टी
करीब सवा साल बाद राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष को हटाने और नए प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपे जाने को लेकर सियासी गणित शुरू हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे कह चुकी हैं कि चुनावों के समय जातिगत वोट बैंक खास महत्व रखते हैं। लोग भले ही पार्टी को बड़ा मानते हैं लेकिन अपनी जाति को लेकर हर कोई भावात्मक रूप से जातिगत नेता की ओर झुक जाते हैं। ऐसे में अब अगर भाजपा सतीश पूनियां को पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष के पद से हटाती है तो जाहिर तौर पर पार्टी को जाट समाज की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। किसी भी दूसरी जाति के नेता को प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी मिलती है तो जातिगत राजनीति का मुद्दा एक बार फिर से उठने की प्रबल संभावनाएं हैं। इसी कारण फिलहाल पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच सुगबुगाहट शुरू हो गई है।
विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी नहीं लेगी कोई रिस्क
आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए भाजपा कोई सियासी नुकसान नहीं झेलना चाहती है। इसी वजह से भले ही सतीश पूनियां का कार्यकाल पूरा होने जा रहा हो लेकिन केन्द्रीय स्तर पर प्रदेशाध्यक्ष बदले जाने के कोई संकेत नहीं दिए गए हैं। पार्टी के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह ने मीडिया से बातचीत में इतना कहा कि आगामी विधानसभा चुनावों से पहले संगठन में कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा। इससे साफ समझा जा सकता है कि प्रदेशाध्यक्ष का सपना देखने वाले नेताओं को फिलहाल करीब डेढ साल का इंतजार करना होगा। अरुण सिंह के बयान के बाद जो नेता पिछले कुछ समय से प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी के लिए लॉबिंग कर रहे थे। उन पर भी विराम लग गया है।
प्रदेश भाजपा की गुटबाजी को फिर से हवा नहीं देना चाहता केन्द्रीय नेतृत्व
तीन साल पहले जब सतीश पूनियां को पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली थी तब उनके विरोधी एक्टिव हो गए थे। शपथ ग्रहण समारोह में केन्द्रीय मंत्रियों, सांसदों सहित भाजपा के कई दिग्गत नेता शामिल हुए थे लेकिन वसुंधरा राजे और उनके कट्टर समर्थकों ने समारोह से दूरी बनाई। राजे ने पार्टी के कार्यक्रमों से करीब दो साल तक दूरी बनाए रखी। देवदर्शन यात्रा के बहाने वसुंधरा राजे ने सक्रियता दिखाई को फिर से पूराने नारे गूंजने लगे। केसरिया में हरा हरा, राजस्थान में वसुंधरा के नारे गूंजने लगे। अपने जन्मदिन के मौके पर भी राजे ने बड़ा शक्ति प्रदर्शन किया था। ऐसे में अब विधानसभा चुनावों से पहले प्रदेशाध्यक्ष बदल कर केन्द्रीय नेतृत्व गुटबाजी को हवा देने से बच रहा है। विधानसभा चुनावों तक प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां की कुर्सी के साथ महामंत्री चंद्रशेखर की कुर्सी को भी कोई खतरा नजर नहीं आ रहा है। (रिपोर्ट – रामस्वरूप लामरोड़)
जगदीप धनखड़ जिस स्कूल में पढ़ते थे वहां की प्रिंसिपल को सुनें, कैसे पूरा गांव खुशियां मना रहा है