डिम्पल कपाड़िया और राज बब्बर की फिल्म ‘जख्मी औरत’, जिसे देख रेप के आरोपियों की रूह कांप गई थी! h3>
सिनेमा को समाज का आईना कहा जाता है। यह सच भी है कि सिल्वर स्क्रीन पर हम जो देखते हैं, आम तौर पर वह हमारे समाज में कहीं न कहीं हो रहा होता है। इतना ही नहीं, फिल्में सबसे प्रभावी माध्यम भी हैं। इसलिए पर्दे पर हम अपने फेवरेट एक्टर या एक्ट्रेस को जो कुछ करते देखते हैं, कहीं न कहीं असल जिंदगी में उसे कॉपी करने की भी कोशिश करते रहते हैं। यकीनन आपने क्राइम और थ्रिलर फिल्में बहुत देखी होंगी। ऐसी खबरें भी सुनी होंगी कि किसी फिल्म के प्रभावित होकर अपराधियों ने किसी घटना को अंजाम दिया है। लेकिन साल 1988 में एक ऐसी फिल्म रिलीज हुई थी, जिसके बाद रेप के आरोपियों के बीच कोहराम सा मच गया था। इतना कि फिल्म को लेकर विरोध होने लगा। यह फिल्म थी ‘जख्मी औरत’, जिसमें राज बब्बर और डिम्पल कपाड़िया लीड रोल में थे। इस फिल्म को डायरेक्ट किया था अवतार भोगल ने।
Zakhmi Aurat हॉलीवुड की फिल्म ‘आई स्पिट ऑन योर ग्रेव’ पर आधारित थी, जो 1978 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म को उस दौर में सबसे बोल्ड और हिंसक फिल्म बताया गया था। इसकी वजह थी इसकी कहानी। फिल्म में लड़कियों और महिलाओं का एक गैंग दिखाया गया था, जो रेप के आरोपियों से बदला लेता है। इसके लिए बकायदा पुलिस स्टेशन के लिस्ट निकाली जाती है और चुन-चुनकर रेप के आरोपियों को जाल में फंसाकर उन्हें नपुसंक बनाया जाता है। फिल्म में ऐसे हिंसक सीन दिखाए गए थे कि आम इंसान की भी रूह कांप जाए। यह फिल्म ऐसे दौर में बनी थी, जब एक ओर समाज में लगातर रेप की घटनाएं बढ़ रही थीं, वहीं दूसरी ओर रेप के फर्जी आरोपों की भी बाढ़ आ गई थी।
फिल्म में डिम्पल कपाड़िया पुलिस अफसर के रोल में
फिल्म को बताया गया अश्लील, भावनाएं भड़काने वाला
रेप को लेकर देश में कानून तो हैं, लेकिन इसकी सख्ती पर अक्सर सवाल उठते रहते हैं। इसकी एक स्याह सच्चाई यह भी है कि रेप के कई मामले फर्जी निकलते हैं। ये आरोप कई बार किसी लड़ाई में बदला लेने की नीयत से भी लगा दिए जाते हैं और इसको लेकर हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक की सख्त टिप्पणी आ चुकी है। ‘जख्मी औरत’ फिल्म ने रेप के दोषियों के लिए ऐसी सजा चुनी थी, जो पर्दे पर तो जायज लगती है, लेकिन मानवाधिकार और कानूनी तौर पर अपने आप में एक अपराध है। फिल्म को पहले तो अश्लील बताया गया, फिर यह कहा गया कि यदि इससे भावनाएं भड़कती हैं तो यह अपराध का रूप ले लेंगी।
फिल्म ‘जख्मी औरत’ की कहानी
इस फिल्म को लेकर तब इस कदर विवाद हुआ था कि कई प्रमुख अखबारों ने इसे ‘बी-ग्रेड फिल्म’ बताया था। ‘जख्मी औरत’ ने तब बॉक्स ऑफिस पर ठीक-ठाक कमाई की थी। फिल्म की कहानी में किरण दत्त (Dimple Kapadia) एक पुलिस अफसर है, जिनका छह बदमाश गैंगरेप करते हैं। फिल्म में रेप के इस सीन को भी काफी डिटेल में दिखाया गया है। ऐसा इसलिए कि यह दर्शकों को समझा सके कि यह अपराध कितना वीभत्स होता है। इसमें रेप के वक्त जींस और अंडरगारमेंट फाड़ने से लेकर हाथ और पैरों को बांधकर कुकर्म को अंजाम देने की घटना को कोर्टरूम में भी बारीकी से बताया गया है। किरण को कानून पर भरोसा है, इसलिए वह कोर्ट तो पहुंचती है। लेकिन उसे इंसाफ नहीं मिलता। रेप के सभी आरोपी अपने प्रभाव और पैसों के बल पर छूट जाते हैं। किरण इसके बाद अपने बूते रेपिस्ट्स से बदला लेने की ठानती है। वह लड़कियों और महिलाओं का एक ग्रुप बनाती है, जो पहले तो रेपिस्ट्स की लिस्ट बनाती है और फिर बारी बारी सबको जाल में फंसाकर उनके जननांग को काट देती है। उन्हें नपुंसक बना देती है।
‘जख्मी औरत’ का पोस्टर
फिल्ममेकर्स को जारी करना पड़ा बयान
फिल्म के रिलीज होते ही इसके सीन्स को अश्लील बताकर इसका खूब विरोध हुआ। तब फिल्ममेकर्स ने सफाई दी और कहा कि उनकी फिल्म ‘एंटी रेप’ है। बयान में कहा गया कि लोगों को यह भी देखना चाहिए कि उस पीड़ित के साथ कोर्ट में क्या हुआ। क्या उसे इंसाफ मिला? क्या कोर्ट के बाद उसने जो अपराध किए हैं, उसके लिए उस पीड़ित को सजा मिली?
‘जख्मी औरत’ में वकील की भूमिका में अनुपम खेर
‘जख्मी औरत’ में थी दिग्गजों की फौज
इस फिल्म में डिम्पल कपाड़िया और राज बब्बर के अलावा अनुपम खेर, अरुणा ईरानी, सत्येंद्र कपूर, ओम शिवपुरी, पुनीत इस्सर, अवतार गिल जैसे दिग्गज एक्टर्स थे। फिल्म में बप्पी लहिरी का म्यूजिक है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि यह फिल्म 1988 के दौर के लिहाज से दर्शकों के लिए बेहद बोल्ड थी। तब टीवी पर दूरदर्शन एकमात्र ऑप्शन था। हालांकि, फिल्म की कई महिलाओं ने भी खूब तारीफ की थी। यही कारण है कि रिलीज के कई हफ्तों तक यह फिल्म अखबारों और मैगजीन्स में चर्चा में रही।
फिल्ममेकर्स के हिम्मत की होती है तारीफ
जो लोग फिल्म के विरोध में बोल रहे थे, उनमें वो लोग भी थे जिन पर रेप का आरोप लगा था। इनके मामले कोर्ट में चल रहे थे। ये दोषी साबित नहीं हुए थे। ऐसे में आरोपियों और कई वकीलों ने भी तब यह कहा था कि यह फिल्म भावनाओं को भड़का सकता है और यह आरोपियों की जान के लिए खतरा बन सकता है। खैर, यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर एवरेज साबित हुई। ठीक-ठाक कमाई ही कर सकी। लेकिन भारतीय सिनेमा के लिहाज से यह उस दौर की एक ऐसी फिल्म थी, जिसने कुछ ऐसा दिखाने की हिम्मत की, जो सीधे तौर पर समाज में बढ़ रही रेप की घटनाओं से जुड़ी हुई थी।
फिल्म में डिम्पल कपाड़िया पुलिस अफसर के रोल में
फिल्म को बताया गया अश्लील, भावनाएं भड़काने वाला
रेप को लेकर देश में कानून तो हैं, लेकिन इसकी सख्ती पर अक्सर सवाल उठते रहते हैं। इसकी एक स्याह सच्चाई यह भी है कि रेप के कई मामले फर्जी निकलते हैं। ये आरोप कई बार किसी लड़ाई में बदला लेने की नीयत से भी लगा दिए जाते हैं और इसको लेकर हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक की सख्त टिप्पणी आ चुकी है। ‘जख्मी औरत’ फिल्म ने रेप के दोषियों के लिए ऐसी सजा चुनी थी, जो पर्दे पर तो जायज लगती है, लेकिन मानवाधिकार और कानूनी तौर पर अपने आप में एक अपराध है। फिल्म को पहले तो अश्लील बताया गया, फिर यह कहा गया कि यदि इससे भावनाएं भड़कती हैं तो यह अपराध का रूप ले लेंगी।
फिल्म ‘जख्मी औरत’ की कहानी
इस फिल्म को लेकर तब इस कदर विवाद हुआ था कि कई प्रमुख अखबारों ने इसे ‘बी-ग्रेड फिल्म’ बताया था। ‘जख्मी औरत’ ने तब बॉक्स ऑफिस पर ठीक-ठाक कमाई की थी। फिल्म की कहानी में किरण दत्त (Dimple Kapadia) एक पुलिस अफसर है, जिनका छह बदमाश गैंगरेप करते हैं। फिल्म में रेप के इस सीन को भी काफी डिटेल में दिखाया गया है। ऐसा इसलिए कि यह दर्शकों को समझा सके कि यह अपराध कितना वीभत्स होता है। इसमें रेप के वक्त जींस और अंडरगारमेंट फाड़ने से लेकर हाथ और पैरों को बांधकर कुकर्म को अंजाम देने की घटना को कोर्टरूम में भी बारीकी से बताया गया है। किरण को कानून पर भरोसा है, इसलिए वह कोर्ट तो पहुंचती है। लेकिन उसे इंसाफ नहीं मिलता। रेप के सभी आरोपी अपने प्रभाव और पैसों के बल पर छूट जाते हैं। किरण इसके बाद अपने बूते रेपिस्ट्स से बदला लेने की ठानती है। वह लड़कियों और महिलाओं का एक ग्रुप बनाती है, जो पहले तो रेपिस्ट्स की लिस्ट बनाती है और फिर बारी बारी सबको जाल में फंसाकर उनके जननांग को काट देती है। उन्हें नपुंसक बना देती है।
‘जख्मी औरत’ का पोस्टर
फिल्ममेकर्स को जारी करना पड़ा बयान
फिल्म के रिलीज होते ही इसके सीन्स को अश्लील बताकर इसका खूब विरोध हुआ। तब फिल्ममेकर्स ने सफाई दी और कहा कि उनकी फिल्म ‘एंटी रेप’ है। बयान में कहा गया कि लोगों को यह भी देखना चाहिए कि उस पीड़ित के साथ कोर्ट में क्या हुआ। क्या उसे इंसाफ मिला? क्या कोर्ट के बाद उसने जो अपराध किए हैं, उसके लिए उस पीड़ित को सजा मिली?
‘जख्मी औरत’ में वकील की भूमिका में अनुपम खेर
‘जख्मी औरत’ में थी दिग्गजों की फौज
इस फिल्म में डिम्पल कपाड़िया और राज बब्बर के अलावा अनुपम खेर, अरुणा ईरानी, सत्येंद्र कपूर, ओम शिवपुरी, पुनीत इस्सर, अवतार गिल जैसे दिग्गज एक्टर्स थे। फिल्म में बप्पी लहिरी का म्यूजिक है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि यह फिल्म 1988 के दौर के लिहाज से दर्शकों के लिए बेहद बोल्ड थी। तब टीवी पर दूरदर्शन एकमात्र ऑप्शन था। हालांकि, फिल्म की कई महिलाओं ने भी खूब तारीफ की थी। यही कारण है कि रिलीज के कई हफ्तों तक यह फिल्म अखबारों और मैगजीन्स में चर्चा में रही।
फिल्ममेकर्स के हिम्मत की होती है तारीफ
जो लोग फिल्म के विरोध में बोल रहे थे, उनमें वो लोग भी थे जिन पर रेप का आरोप लगा था। इनके मामले कोर्ट में चल रहे थे। ये दोषी साबित नहीं हुए थे। ऐसे में आरोपियों और कई वकीलों ने भी तब यह कहा था कि यह फिल्म भावनाओं को भड़का सकता है और यह आरोपियों की जान के लिए खतरा बन सकता है। खैर, यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर एवरेज साबित हुई। ठीक-ठाक कमाई ही कर सकी। लेकिन भारतीय सिनेमा के लिहाज से यह उस दौर की एक ऐसी फिल्म थी, जिसने कुछ ऐसा दिखाने की हिम्मत की, जो सीधे तौर पर समाज में बढ़ रही रेप की घटनाओं से जुड़ी हुई थी।