समस्या: बनी बनाई सड़कों की बार-बार खुदाई, नतीजा: लोग परेशान-करोड़ों बर्बाद | indore road is a big problem | Patrika News h3>
बर्बादी के उदाहरण
– संस्कृत कॉलेज से मल्हाराश्रम की सड़क: मध्य क्षेत्र के व्यवस्थित क्षेत्रों में से एक रामबाग के रहवासी सड़क की बार-बार खुदाई से परेशान हैं। 12 साल में 11 बार से ज्यादा सड़क खोदी है। खुदाई के बाद सड़क की मरम्मत पर भी महीनों ध्यान नहीं दिया गया।
– मोती तबेला सड़क: हरसिद्धी पुल से मोती तबेला होते हुए कलेक्टर कार्यालय तक की सडक मामूली बारिश में डूब जाती है। यहां स्टार्म वाटर लाइन है, लेकिन उससे पानी की निकासी नहीं होती। पूर्व में जो ड्रेनेज लाइन डाली गई, उसके चेंबर और लाइन ढूंढने में ही सड़क पांच से सात बार खोद दी।
– महालक्ष्मी नगर पानी सप्लाय लाइन: महालक्ष्मी नगर के आर सेक्टर में दो साल पहले पानी की लाइन में लीकेज हुआ। खुदाई में पता चला कि पीएनजी गैस की लाइन पानी की लाइन के बीच से जा रही थी। गैस पाइप लाइन को अंडरग्राउंड डालने के दौरान लाइन फोड़ दी। ये इसलिए हुआ, क्योंकि नगर निगम ने कंपनी को लाइन खुदाई की अनुमति तो दे दी, लेकिन उन्हें ही नहीं पता था कि उनकी लाइनें कहां से गुजर रही हैं।
एक्सपर्ट ने बताया समस्या का हल
(नगर निवेशक और इंदौर का मास्टर प्लान बनाने वाली टीम के सदस्य व नगर एवं ग्राम निवेश विभाग के संयुक्त संचालक रहे डीएल गोयल के मुताबिक)
– मुख्य सड़कों, कॉलोनियों, मोहल्लों आदि की अंडरग्राउंड ड्रेनेज, सीवरेज, पेयजल, टेलीफोन आदि लाइनों का हर विभाग डाटा तैयार करते हुए उनका डिजिटल मैप तैयार करे।
– क्षेत्र के विकास के समय ही भूमिगत लाइनों की मैपिंग अनिवार्य की जाए। तय किया जाए कि जो लाइन डाली जा रही है, वहां भविष्य की योजना क्या है? लाइन डालने के दौरान निशान बनाएं, ताकि कर्मचारियों को भी जानकारी रहे।
– अंदरूनी लाइनों की मैपिंग के साथ समग्र डिजिटल मैप तैयार हो, जो विभागों के पास रहे। इससे जब भी नई लाइन डाली जाए तो दिक्कतों का पता लगाया जा सके।
– ड्रेनेज और पेयजल की लाइनों की क्राॅसिंग की स्थिति स्पष्ट हो तो गंदे पानी की समस्या दूर हो।
– स्मार्ट सिटी कंपनी द्वारा बनाए जा रहे डक जैसी व्यवस्था बाकी क्षेत्र में भी लागू की जाए।
– सभी विभाग संयुक्त प्लान बनाएं, ताकि किसी परेशानी पर मैपिंग से निराकरण किया जा सके।
पहले थी ऐसी व्यवस्था
1918 में इंदौर का पहला मास्टर प्लान इंग्लैंड से बुलाए गए आर्किटेक्ट पेट्री गिडिज ने बनाया था। उन्होंने एजुकेशन हब, कॉलेज कैम्पस, मेडिकल हब, खेल मैदान, ग्रीन बेल्ट, खुले मैदान, तालाबों के लिए जगह तय करने के साथ ही जमीन के अंदर से गुजरने वाली लाइनों की प्लानिंग की थी। बताया गया था कि गंदा पानी कहां तक, किन लाइनों से और कैसे लाया जाएगा। पेयजल लाइनों के ऊपर की ओर फायर पाइंट (पाइप) निकाल दिए जाते थे। सीवरेज लाइन के ऊपरी हिस्से पर खंभा लगा होता था। इसमें ऊपर के हिस्से में रोशनदान होता था तो सीवरेज लाइन की ढलान की ओर इशारा करता तीर का निशान बनाया जाता था।
हर साल 50 करोड़ खर्च
हर साल सड़कों के सुधार पर नगर निगम लगभग 50 करोड़ रुपए खर्च करता है। इसमें 20 करोड़ मुख्य सड़कों के संधारण तो बाकी जोन मद, पार्षद निधि, संधारण मद, सहित अन्य मदों से सड़कों की मरम्मत या दोबारा बनाने के नाम पर खर्च की जाती हैं। ये राशि निगम के बजट का लगभग 1 फीसदी तो इंदौर द्वारा एक साल में दिए जाने वाले टैक्स का लगभग 9 फीसदी है।
बर्बादी के उदाहरण
– संस्कृत कॉलेज से मल्हाराश्रम की सड़क: मध्य क्षेत्र के व्यवस्थित क्षेत्रों में से एक रामबाग के रहवासी सड़क की बार-बार खुदाई से परेशान हैं। 12 साल में 11 बार से ज्यादा सड़क खोदी है। खुदाई के बाद सड़क की मरम्मत पर भी महीनों ध्यान नहीं दिया गया।
– मोती तबेला सड़क: हरसिद्धी पुल से मोती तबेला होते हुए कलेक्टर कार्यालय तक की सडक मामूली बारिश में डूब जाती है। यहां स्टार्म वाटर लाइन है, लेकिन उससे पानी की निकासी नहीं होती। पूर्व में जो ड्रेनेज लाइन डाली गई, उसके चेंबर और लाइन ढूंढने में ही सड़क पांच से सात बार खोद दी।
– महालक्ष्मी नगर पानी सप्लाय लाइन: महालक्ष्मी नगर के आर सेक्टर में दो साल पहले पानी की लाइन में लीकेज हुआ। खुदाई में पता चला कि पीएनजी गैस की लाइन पानी की लाइन के बीच से जा रही थी। गैस पाइप लाइन को अंडरग्राउंड डालने के दौरान लाइन फोड़ दी। ये इसलिए हुआ, क्योंकि नगर निगम ने कंपनी को लाइन खुदाई की अनुमति तो दे दी, लेकिन उन्हें ही नहीं पता था कि उनकी लाइनें कहां से गुजर रही हैं।
एक्सपर्ट ने बताया समस्या का हल
(नगर निवेशक और इंदौर का मास्टर प्लान बनाने वाली टीम के सदस्य व नगर एवं ग्राम निवेश विभाग के संयुक्त संचालक रहे डीएल गोयल के मुताबिक)
– मुख्य सड़कों, कॉलोनियों, मोहल्लों आदि की अंडरग्राउंड ड्रेनेज, सीवरेज, पेयजल, टेलीफोन आदि लाइनों का हर विभाग डाटा तैयार करते हुए उनका डिजिटल मैप तैयार करे।
– क्षेत्र के विकास के समय ही भूमिगत लाइनों की मैपिंग अनिवार्य की जाए। तय किया जाए कि जो लाइन डाली जा रही है, वहां भविष्य की योजना क्या है? लाइन डालने के दौरान निशान बनाएं, ताकि कर्मचारियों को भी जानकारी रहे।
– अंदरूनी लाइनों की मैपिंग के साथ समग्र डिजिटल मैप तैयार हो, जो विभागों के पास रहे। इससे जब भी नई लाइन डाली जाए तो दिक्कतों का पता लगाया जा सके।
– ड्रेनेज और पेयजल की लाइनों की क्राॅसिंग की स्थिति स्पष्ट हो तो गंदे पानी की समस्या दूर हो।
– स्मार्ट सिटी कंपनी द्वारा बनाए जा रहे डक जैसी व्यवस्था बाकी क्षेत्र में भी लागू की जाए।
– सभी विभाग संयुक्त प्लान बनाएं, ताकि किसी परेशानी पर मैपिंग से निराकरण किया जा सके।
पहले थी ऐसी व्यवस्था
1918 में इंदौर का पहला मास्टर प्लान इंग्लैंड से बुलाए गए आर्किटेक्ट पेट्री गिडिज ने बनाया था। उन्होंने एजुकेशन हब, कॉलेज कैम्पस, मेडिकल हब, खेल मैदान, ग्रीन बेल्ट, खुले मैदान, तालाबों के लिए जगह तय करने के साथ ही जमीन के अंदर से गुजरने वाली लाइनों की प्लानिंग की थी। बताया गया था कि गंदा पानी कहां तक, किन लाइनों से और कैसे लाया जाएगा। पेयजल लाइनों के ऊपर की ओर फायर पाइंट (पाइप) निकाल दिए जाते थे। सीवरेज लाइन के ऊपरी हिस्से पर खंभा लगा होता था। इसमें ऊपर के हिस्से में रोशनदान होता था तो सीवरेज लाइन की ढलान की ओर इशारा करता तीर का निशान बनाया जाता था।
हर साल 50 करोड़ खर्च
हर साल सड़कों के सुधार पर नगर निगम लगभग 50 करोड़ रुपए खर्च करता है। इसमें 20 करोड़ मुख्य सड़कों के संधारण तो बाकी जोन मद, पार्षद निधि, संधारण मद, सहित अन्य मदों से सड़कों की मरम्मत या दोबारा बनाने के नाम पर खर्च की जाती हैं। ये राशि निगम के बजट का लगभग 1 फीसदी तो इंदौर द्वारा एक साल में दिए जाने वाले टैक्स का लगभग 9 फीसदी है।