हमारी चुनाव यात्रा : कभी मैदान में पाले में खड़े होते थे प्रत्याशी, जिसके पक्ष में ज्यादा लोग, वही प्रधान | Panchayat voted for the first time in 1967 | Patrika News h3>
चुनाव अधिकारी रेफरी की भूमिका में होते और फिर मतदाताओं को पसंदीदा प्रत्याशी के पाले में जाने के लिए कहा जाता था। सिर की गिनती कर प्रधान के चुनाव परिणाम की घोषणा होती और उन्हें प्रमाण-पत्र दिए जाते। वर्ष 1967 में पहली बार मतदान से पहले तक मैदान में ही चुनाव कराने की व्यवस्था चलती रही।
दरअसल पंचायतीराज व्यवस्था की शुरुआत ब्रिटिश काल में ही हो गई थी। बाद में संशोधन होते गए और व्यवस्था बदलती गई। राजसी दौर में भी पंचायत प्रतिनिधि मनोनीत किए जाते थे। पद्मश्री बाबूलाल दाहिया बताते हैं, उन्होंने विंध्य प्रदेश के पंचायत चुनाव देखे और त्रि-स्तरीय पंचायत राज के भी।
तब चुनाव की जगह मनोनयन होता था। अफसर गांव आते और किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति को प्रधान मनोनीत कर चले जाते। मध्यप्रदेश के गठन के बाद चुनाव प्रक्रिया जनता से कराने की शुरू हुई, पर मतदान की बजाय चुनाव अधिकारी डौंढ़ी पिटवाकर ऐलान कराते हुए नियत तिथि पर मतदाताओं को किसी खेल मैदान में एकत्रित होने की मुनादी कराते थे।
दाहिया बताते हैं, सतना की उनकी अतरवेदिया पंचायत का बड़ा दिलचस्प चुनाव हुआ था। उस समय वे चौथी कक्षा में पढ़ते थे तो चुनावी मजमे को देखने के लिए गए। ब्लॉक से आए अधिकारी ने हाथ उठवाकर पूछा कि कौन चुनाव लड़ेगा।
उस समय के निवर्तमान प्रधान भगवत सिंह और राधेश्याम गौतम ने हाथ खड़े किए। दोनों को गांव के कबड्डी के मैदान में अलग-अलग पाले में खड़ा होने के लिए कहा गया। अधिकतर लोग भगवत सिंह के पाले में खड़े थे, लिहाजा वे ही पंचायत के प्रधान निर्वाचित हुए। वर्ष 1962 के चुनाव में भी ऐसी ही प्रक्रिया अपनाई गई थी।
स्कूल और हैंडपंप होते थे बड़े मुद्दे…
वरिष्ठ पत्रकार सूर्यनाथ सिंह गहरवार बताते हैं, पहले लोग जागरूक नहीं थे। पंचायतीराज व्यवस्था उतनी सशक्त नहीं थी, इसलिए मुद्दे ज्यादा बड़े नहीं होते थे। जिनकी नजर सरपंच पद पर रहती थी, वे अपने खेमे के ज्यादा पंच जितवाने के लिए स्कूल भवन, मुरमीकरण और हैंडपंप का वादा करते थे।
इन राजाओं की अहम भूमिका…
पंचायती राज को लेकर 1886 से 1925 और 1903 से 1923 के बीच माधोराव सिंधिया व तुकोजीराव होल्कर तृतीय ने अहम योगदान दिया।
ब्रिटिश काल :
मध्यप्रांत की राजधानी नागपुर में 1864 में नगरपालिका की स्थापना हुई। अब के मध्यप्रदेश के कई अन्य बड़े शहरों में भी ऐसे ही नगरीय निकाय गठित हुए। पुनुरुत्थान रिपन प्रस्ताव 1882 के तहत स्वशासन 1883 अधिनियम पारित हुआ।
होल्कर स्टेट :
होल्कर स्टेट ने 1920 में पंचायत कानून लागू किया। था। इसका अनुशरण ग्वालियर, देवास, धार और नरसिंहगढ़ रियासतों ने भी किया। मध्यप्रांत व बरार ग्रामीण पंचायत अधिनियम 1920 आया। इससे महाकौशल क्षेत्र में पंचायत राज का शुभारंभ हुआ।
विंध्य प्रदेश-पहले ‘टप्पा’ जैसी संस्थाएं
आजादी के बाद विंध्य प्रदेश राज्य बना, पर इससे पहले ही पंचायतों के रूप में पंचसभा, प्रजामंडल, चौसा, टप्पा जैसी संस्थाएं काम करती थीं। ग्राम पंचायत अधिनियम 1949 में लाया गया, जो 1951 में लागू हुआ। प्रायोगिक तौर पर 611 ग्राम पंचायतें और 61 न्याय पंचायतें गठित हुईं। बाद में पटवारी हलके से ग्राम पंचायत की सीमा तय की गई।
भोपाल :
: भोपाल के नवाब के शाही आदेश से वर्ष 1947 में ग्राम पंचायतों की स्थापना की गई थी। तब 572 पंचायतें बनाई गईं।
: जनप्रतिनिधि सरकार ने भोपाल राज्य पंचायतराज अधिनियम 1952 में पारित किया, जो 1953 में लागू हुआ।
महाकौशल:
: पंचायती राज अधिनियम वर्ष 1946 में अस्तित्व में आया। इसे वर्ष 1947 में लागू किया गया था।
: जबलपुर से अब के छत्तीसगढ़ तक फैले महाकौशल प्रांत में कुल 6116 ग्राम पंचायतें और 802 न्याय पंचायतें गठित की गईं थीं।
सिरोंज:
: वर्ष 1956 के पूर्व यह हिस्सा राजस्थान का भाग था। यहां राजस्थान पंचायत राज अधिनियम को लागू किया गया था।
: इस बीच इस सूबे में कुल 19 ग्राम पंचायतें और तीन तहसील पंचायतें प्रभावशील हुआ करती थीं।
चुनाव अधिकारी रेफरी की भूमिका में होते और फिर मतदाताओं को पसंदीदा प्रत्याशी के पाले में जाने के लिए कहा जाता था। सिर की गिनती कर प्रधान के चुनाव परिणाम की घोषणा होती और उन्हें प्रमाण-पत्र दिए जाते। वर्ष 1967 में पहली बार मतदान से पहले तक मैदान में ही चुनाव कराने की व्यवस्था चलती रही।
दरअसल पंचायतीराज व्यवस्था की शुरुआत ब्रिटिश काल में ही हो गई थी। बाद में संशोधन होते गए और व्यवस्था बदलती गई। राजसी दौर में भी पंचायत प्रतिनिधि मनोनीत किए जाते थे। पद्मश्री बाबूलाल दाहिया बताते हैं, उन्होंने विंध्य प्रदेश के पंचायत चुनाव देखे और त्रि-स्तरीय पंचायत राज के भी।
तब चुनाव की जगह मनोनयन होता था। अफसर गांव आते और किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति को प्रधान मनोनीत कर चले जाते। मध्यप्रदेश के गठन के बाद चुनाव प्रक्रिया जनता से कराने की शुरू हुई, पर मतदान की बजाय चुनाव अधिकारी डौंढ़ी पिटवाकर ऐलान कराते हुए नियत तिथि पर मतदाताओं को किसी खेल मैदान में एकत्रित होने की मुनादी कराते थे।
दाहिया बताते हैं, सतना की उनकी अतरवेदिया पंचायत का बड़ा दिलचस्प चुनाव हुआ था। उस समय वे चौथी कक्षा में पढ़ते थे तो चुनावी मजमे को देखने के लिए गए। ब्लॉक से आए अधिकारी ने हाथ उठवाकर पूछा कि कौन चुनाव लड़ेगा।
उस समय के निवर्तमान प्रधान भगवत सिंह और राधेश्याम गौतम ने हाथ खड़े किए। दोनों को गांव के कबड्डी के मैदान में अलग-अलग पाले में खड़ा होने के लिए कहा गया। अधिकतर लोग भगवत सिंह के पाले में खड़े थे, लिहाजा वे ही पंचायत के प्रधान निर्वाचित हुए। वर्ष 1962 के चुनाव में भी ऐसी ही प्रक्रिया अपनाई गई थी।
स्कूल और हैंडपंप होते थे बड़े मुद्दे…
वरिष्ठ पत्रकार सूर्यनाथ सिंह गहरवार बताते हैं, पहले लोग जागरूक नहीं थे। पंचायतीराज व्यवस्था उतनी सशक्त नहीं थी, इसलिए मुद्दे ज्यादा बड़े नहीं होते थे। जिनकी नजर सरपंच पद पर रहती थी, वे अपने खेमे के ज्यादा पंच जितवाने के लिए स्कूल भवन, मुरमीकरण और हैंडपंप का वादा करते थे।
इन राजाओं की अहम भूमिका…
पंचायती राज को लेकर 1886 से 1925 और 1903 से 1923 के बीच माधोराव सिंधिया व तुकोजीराव होल्कर तृतीय ने अहम योगदान दिया।
ब्रिटिश काल :
मध्यप्रांत की राजधानी नागपुर में 1864 में नगरपालिका की स्थापना हुई। अब के मध्यप्रदेश के कई अन्य बड़े शहरों में भी ऐसे ही नगरीय निकाय गठित हुए। पुनुरुत्थान रिपन प्रस्ताव 1882 के तहत स्वशासन 1883 अधिनियम पारित हुआ।
होल्कर स्टेट :
होल्कर स्टेट ने 1920 में पंचायत कानून लागू किया। था। इसका अनुशरण ग्वालियर, देवास, धार और नरसिंहगढ़ रियासतों ने भी किया। मध्यप्रांत व बरार ग्रामीण पंचायत अधिनियम 1920 आया। इससे महाकौशल क्षेत्र में पंचायत राज का शुभारंभ हुआ।
विंध्य प्रदेश-पहले ‘टप्पा’ जैसी संस्थाएं
आजादी के बाद विंध्य प्रदेश राज्य बना, पर इससे पहले ही पंचायतों के रूप में पंचसभा, प्रजामंडल, चौसा, टप्पा जैसी संस्थाएं काम करती थीं। ग्राम पंचायत अधिनियम 1949 में लाया गया, जो 1951 में लागू हुआ। प्रायोगिक तौर पर 611 ग्राम पंचायतें और 61 न्याय पंचायतें गठित हुईं। बाद में पटवारी हलके से ग्राम पंचायत की सीमा तय की गई।
भोपाल :
: भोपाल के नवाब के शाही आदेश से वर्ष 1947 में ग्राम पंचायतों की स्थापना की गई थी। तब 572 पंचायतें बनाई गईं।
: जनप्रतिनिधि सरकार ने भोपाल राज्य पंचायतराज अधिनियम 1952 में पारित किया, जो 1953 में लागू हुआ।
महाकौशल:
: पंचायती राज अधिनियम वर्ष 1946 में अस्तित्व में आया। इसे वर्ष 1947 में लागू किया गया था।
: जबलपुर से अब के छत्तीसगढ़ तक फैले महाकौशल प्रांत में कुल 6116 ग्राम पंचायतें और 802 न्याय पंचायतें गठित की गईं थीं।
सिरोंज:
: वर्ष 1956 के पूर्व यह हिस्सा राजस्थान का भाग था। यहां राजस्थान पंचायत राज अधिनियम को लागू किया गया था।
: इस बीच इस सूबे में कुल 19 ग्राम पंचायतें और तीन तहसील पंचायतें प्रभावशील हुआ करती थीं।