पंचायत चुनाव लड़ने के लिए क्या क्या डॉक्यूमेंट चाहिए ?

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पंचायत चुनाव लड़ने के लिए क्या क्या डॉक्यूमेंट चाहिए ?
पंचायत चुनाव लड़ने के लिए क्या क्या डॉक्यूमेंट चाहिए ?

पंचायत चुनाव लड़ने के लिए क्या क्या डॉक्यूमेंट चाहिए ? ( What are the documents required to contest Panchayat elections? )

भारत एक लोकतांत्रिक देश है. यहां पर जनता अपना प्रतिनिधि चुनती है. ये चुने हुए प्रतिनिधि सरकार चलाते हैं. इसके साथ ही बेहतर तरीके से विकास कार्य करने के लिए शक्तियों का विकेंद्रीकरण भी किया गया है. सरकार राष्ट्रीय स्तर पर , राज्य स्तर पर तथा धीरे धीरे गांव स्तर तक होती है. गांव के मुखिया का सरपंच कहा जाता है. काफी लोगों के मन में सवाल होता है कि अगर हम पंचायत का चुनाव लड़ते हैं, तो उसके लिए कौन कौन से आवश्यक डॉक्यूमेंट की जरूरत होती है. अगर आपके मन में भी ऐसा ही सवाल है, तो इस पोस्ट में इसी सवाल का जवाब जानते हैं.

पंचायत चुनाव

पंचायत चुनाव लड़ने के लिए डॉक्यूमेंट –

पंचायत के चुनाव लड़ने के लिए हमें कुछ डॉक्यूमेंट की भी जरूरत पड़ती है. इसके लिए हमारे पास आधार कार्ड, अदेय प्रमाण पत्र (एनओसी), जमानत राशि ,सांख्यिकीय सूचना प्रपत्र, जाति प्रमाण ,पत्र मूल निवास प्रमाण पत्र , शौचालय संबंधी शपथ पत्र, पासपोर्ट साइज़ फोटो तथा इसके साथ ही कुछ शैक्षणिक डॉक्यूमेंट की भी जरूरत पड़ सकती है. यह राज्य सरकार पर निर्भर करता है कि वह राज्य के पंचायत चुनाव में कोई शैक्षणिक योग्यता निर्धारित करते हैं या नहीं करते हैं. उदाहरण के तौर पर अगर कोई व्यक्ति हरियाणा में चुनाव लड़ना चाहता है, तो उसके लिए उसके पास शैक्षणिक योग्यता भी होती चाहिएं. हरियाणा में पंचायत चुनाव लड़ने के लिए 8 वीं और 10 वीं कक्षा को भी योग्यता बनाया गया है.

पंचायत चुनाव

इसके साथ ही पंचायत चुनाव में लोगों के मन में सबसे बड़ा सवाल यह भी होता है कि पंचायत चुनाव में लड़ने के लिए व्यक्ति की उम्र कितनी होनी चाहिएं. पंचायत चुनाव लड़ने के लिए व्यक्ति की उम्र कम से कम 21 वर्ष होना अनिवार्य होता है. 21 वर्ष की आयु पूरी ना होने तक अगर आप सभी योग्यताएं पूरी करते हैं, तो भी आप पंचायत चुनाव नहीं लड़ सकते हैं.

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किसी भी गांव के विकास में स्थानीय सरकार का बहुत ही अहम् योगदान होता है. दरअसल, भारत की आजादी से ही पंचायती चुनाव नहीं होते थे. पंचायती चुनाव कराने तथा स्थानीय सरकार बनाने के पीछे का कारण यहीं है कि वहां के स्थानीय निवासी उस क्षेत्र की समस्याओं को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं. उनके पास उनकी समस्याओं का समाधान भी होता है. लेकिन वो शक्तियां नहीं होती थी. इसी बात को ध्यान में रखते हुए स्थानीय स्वशासन की अवधारणा सामने आई.

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