Satna: 85 फीसदी आदिवासी बच्चे हाईस्कूल में हो गये फेल | satna: 85 tribal children failed in high school | Patrika News

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Satna: 85 फीसदी आदिवासी बच्चे हाईस्कूल में हो गये फेल | satna: 85 tribal children failed in high school | Patrika News


Satna: 85 फीसदी आदिवासी बच्चे हाईस्कूल में हो गये फेल | satna: 85 tribal children failed in high school | Patrika News

आदिवासी इलाके में फेल हुआ सरकारी डिजीलेप कोरोना काल में जब विद्यालय बंद कर दिए गये थे ऐसे में विद्यार्थियों की शिक्षा को जारी रखना बड़ी चुनौती था। इस बीच स्कूल शिक्षा विभाग ने डिजिटल एजुकेशन का विकल्प चुना। इसके लिए डिजीलैप जैसे कार्यक्रम शुरू हुए। जिसमें मोबाइल के माध्यम से पढ़ाई का दौर शुरू हुआ। हालांकि कोरोना की परिस्थितियों में यही इकलौता विकल्प था जिसके जरिये विद्यार्थियों को सुरक्षित तरीके से पढ़ाई से जोड़े रखा जा सकता था। लेकिन अब जब नतीजे सामने आए तो यह साबित हो गया कि यह विकल्प शहर में रहने वाले और लोवर मिडिल क्लास तक तो सफल रहा। लेकिन गरीब वर्ग और आदिवासियों तक इस प्रोग्राम की पहुंच नहीं हो सकी।

यह रहा रिजल्ट हाईस्कूल के जिले के परीक्षा परिणामों पर अगर गौर करें तो आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) वर्ग के 84.62 फीसदी बच्चे फेल हो गये। सिर्फ 15.38 फीसदी बच्चे ही पास होने में सफल रहे। ये आंकडे बता रहे हैं कि इन विद्यार्थियों के पास डिजिटल शिक्षा का कोई साधन नहीं था। आदिवासी विकास के लिए चलने वाला आदिम जाति कल्याण विभाग भी इस दिशा में कोई पहल नहीं कर सका। कुल मिलाकर अगर कहें तो कोरोना काल में आदिवासियों के लिए सभी रास्ते बंद हो चुके थे जिसमें शिक्षा की हालत सबसे खराब थी जिसे रिजल्ट ने साबित कर दिया।

2528 में सिर्फ 389 पास हुए जिले में कक्षा दसवीं में दाखिला लेने वाले आदिवासी (एसटी) वर्ग के छात्रों की कुल संख्या 2687 रही है। इसमें भी 159 विद्यार्थी परीक्षा ही नहीं दे सके। सिर्फ 2528 विद्यार्थी परीक्षा में शामिल हुए। इसमें से 1895 विद्यार्थी फेल हो गए। 244 विद्यार्थी पूरक आए। सिर्फ 389 एसटी विद्यार्थी परीक्षा पास करने में सफल रहे। एससी की भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही। इसके सिर्फ 27 फीसदी बच्चे पास होने में सफल रहे।

तो चूक कैसे हुई इस मामले में सेवा निवृत्त संयुक्त संचालक अंजनी त्रिपाठी स्वीकार करते हैं कि एसटी वर्ग का परिणाम चौंकाने वाला है। जो विद्यार्थी 9वीं पास करके 10वीं तक आ गये वे इतनी बड़ी संख्या में कैसे फेल हुए बड़ा सवाल है। संसाधन की कमी एक वजह है लेकिन विभागीय समन्वय में कमी और शिक्षकों की अनदेखी से भी उन्होंने इंकार नहीं किया। कहा, जब आदिवासी छात्रावास बंद हुए तो इनके लिए संबंधित विभाग को वैकल्पिक व्यवस्था देनी थी। जिनके पास स्मार्ट फोन की सुविधा नहीं थी उनके लिये विकल्प तैयार करने थे। लेकिन विभागों ने इन्हें यूं ही छोड़ दिया।

यह रहे प्रमुख कारण

  • डिजिटल शिक्षा के अनुकूल विद्यार्थियों के पास संसाधन न होना
  • संसाधन विहीन छात्रों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था नहीं
  • शिक्षकों में एसटी वर्ग के लिए नवाचार की कमी
  • आदिवासी गांवों में जाकर पढ़ाने वाले शिक्षक भी कम दिखे
  • सुदूर आदिवासी इलाकों में नेटवर्क की समस्या





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