FIR से लेकर रिट तक, कब थाने में करें शिकायत, कब कोर्ट से, जानें हर बारीकियां

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FIR से लेकर रिट तक, कब थाने में करें शिकायत, कब कोर्ट से, जानें हर बारीकियां

FIR से लेकर रिट तक, कब थाने में करें शिकायत, कब कोर्ट से, जानें हर बारीकियां

नई दिल्ली: अगर आपके साथ कुछ गलत हो रहा है तो आप कहां जाएं। किसके शिकायत करें। क्या हर मामले में थाने जाना चाहिए या फिर कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया जा सकता है। इन तमाम मसलों को जानना जरूरी है। आपके जहन में कानून से जुड़े कई सवाल घुमड़ रहे होंगे। तो आइए जानते हैं-

पुलिस से कब करें शिकायत?
एडवोकेट राजीव मलिक बताते हैं कि अगर मामला असंज्ञेय श्रेणी का हो जैसे मामूली मारपीट, आपराधिक मानहानी, धक्कामुक्की आदि तो ऐसे मामले में सीधे केस दर्ज नहीं होता है बल्कि पुलिस के सामने शिकायत करने पर पुलिस नॉन कॉग्नेजेबल रिपोर्ट (Non-Cognizable Report) यानी एनसीआर दर्ज कर सकती है और मामले में जरूरत पड़ने पर मैजिस्ट्रेट को रेफर कर दिया जाता है।

जब मामला संज्ञेय अपराध का हो यानी गंभीर अपराध हो जैसे गैर जमानती अपराध हत्या, रेप, लूट, डकैती, या अन्य गंभीर किश्म के अपराध हों तो वैसे मामले में पुलिस शिकायत पर सीधे एफआईआर दर्ज करती है। सीआरपीसी की धारा-154 (CRPC Section 154) के तहत पुलिस की ड्यूटी है कि वह संज्ञेय अपराध के मामले में केस दर्ज करे।

अगर थाने में केस दर्ज न हो फिर?
एडवोकेट मनीष भदौरिया बताते हैं कि अगर गंभीर व संज्ञेय अपराध में पुलिस केस दर्ज करने से मना करती है तो शिकायती इलाके के एसपी या डीसीपी को शिकायत भेज सकता है। अगर पुलिस के आला अधिकारी को कहने और शिकायत करने पर भी केस दर्ज नहीं किया जाता है तो शिकायती कंप्लेंट की कॉपी के साथ वकील की मदद से संबंधित थाने के इलाका मैजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा-156 (3) (CRPC Section-156(3) में शिकायत कर सकता है और फिर कोर्ट शिकायत से संतुष्ट होने पर केस दर्ज करने का हुक्म देती है।

जीरो एफआईआर क्या है?
सीनियर एडवोकेट केके मेनन बताते हैं कि अगर शिकायती के साथ किया गया अपराध उस थाने की जूरिस्डिक्शन में नहीं हुआ हो, जहां शिकायत लेकर शिकायती पहुंचता है, तो भी पुलिस को शिकायती की शिकायत के आधार पर केस दर्ज करना होगा। मामला अगर संज्ञेय अपराध से जुड़ा हो, तो चाहे अपराध देश के किसी इलाके में क्यों न हुआ हो, किसी भी दूसरे इलाके में केस दर्ज हो सकता है।

पुलिस को अपराध के बारे में सूचना देने में देरी न हो, इसलिए जरूरी है कि उस शिकायत को दर्ज किया जाए। पुलिस न सिर्फ एफआईआर करेगी बल्कि वह शुरुआती जांच भी करेगी ताकि शुरुआती साक्ष्य नष्ट न हों। पुलिस इस तरह की जांच के बाद जांच रिपोर्ट और एफआईआर को संबंधित थाने को रेफर करती है। इस प्रक्रिया में दर्ज एफआईआर जीरो एफआईआर (Zero FIR) कहा जाता है।

कंज्यूमर कोर्ट में कब जाएं?
दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) के वकील फलक मुहम्मद बताते हैं कि जब मामला उपभोक्ता के अधिकार से जुड़ा हुआ हो तो मामले में थाने में या किसी अदालत में नहीं शिकायत होती है बल्कि उसके लिए देश के हर जिले में बनाए गए जिला उपभोक्ता अदालत में शिकायत की जा सकती है। जहां भी आप उपभोक्ता हैं और सेवा में कोताही हुई है या उपभोक्ता अधिकारों का हनन हुआ है तो थाने में नहीं बल्कि ऐसे मामले में शिकायती खुद भी इलाके के कंज्यूमर फोरम (Consumer Forum) में केस दायर कर सकता है यानी लिखित शिकायत कर सकता है। कंज्यूमर कोर्ट उस शिकायत के आधार पर प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर सकता है। शिकायती चाहे तो शिकायत या याचिका के लिए वकील की मदद ले सकता है।

किस मामले में सीधे हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा सकता है?
सीनियर एडवोकेट रमेश गुप्ता बताते हैं कि अगर मामला किसी के मौलिक अधिकार से जुड़ा हुआ हो। चाहे किसी व्यक्ति विशेष का मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) का हनन हो रहा हो या फिर व्यापक जनहित में लोगों के अधिकारों का हनन हो रहा हो तो ऐसे मामले में सीधे इलाके के हाई कोर्ट में अनुच्छेद-226 (Article-226) के तहत रिट दाखिल (Writ File) की जा सकती है या फिर मामला अगर दो राज्यों से जुड़ा हो या देशव्यापी हो तो सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अनुच्छेद-32 (Article-32) के तहत रिट दाखिल की जा सकती है।

किसी के भी मौलिक अधिकारों के हनन के मामले में अनुच्छेद-226 व 32 का सहारा लिया जा सकता है। लेकिन साथ ही अगर मामला जनहित से जुडा़ हो तो इन्हीं दोनों अनुच्छेद के सहारे पीआईएल (Public Interest Ligitation) यानी जनहित याचिका दायर की जाती है। जनहित याचिका या मौलिक अधिकार के हनन के मामले में निचली अदालत में रिट दाखिल नहीं होती है बल्कि सीधे हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की जाती है।

क्या लेटर से भी पीआईएल दाखिल होती है?
अगर मामला जनहित से जुड़ा हुआ हो तो देश का कोई नागरिक उस मामले में लेटर लिखकर हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को मामले से अवगत करा सकता है। हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जब लेटर पहुंचता है तो उसे स्क्रूटनी की जाती है और हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को जब उचित लगे तो वह उसे जनहित याचिका में तब्दील कर सकती है।



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