किस्से मध्य प्रदेश के उस ‘भुलक्कड़’ मुख्यमंत्री के जो अपनी कैबिनेट के मंत्रियों को भी भूल जाता था

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किस्से मध्य प्रदेश के उस ‘भुलक्कड़’ मुख्यमंत्री के जो अपनी कैबिनेट के मंत्रियों को भी भूल जाता था

किस्से मध्य प्रदेश के उस ‘भुलक्कड़’ मुख्यमंत्री के जो अपनी कैबिनेट के मंत्रियों को भी भूल जाता था

भोपालः 31 जनवरी, 1957 को कैलाशनाथ काटजू (Kailash Nath Katju) जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे तो उनका राज्य से जुड़ाव केवल इतना था कि वे 1952 में मंदसौर से लोकसभा के लिए चुने गए थे। उनका जन्म जरूर रतलाम जिले के जावरा में हुआ था, लेकिन वे मूल रूप से कश्मीरी पंडित थे और उनकी कर्मभूमि इलाहाबाद रही थी। काटजू उन गिने-चुने लोगों में शामिल थे जो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भाई कहकर संबोधित करते थे।

काटजू के बारे में प्रसिद्ध है कि उन्हें किसी तरह का लोभ नहीं था। अलग-अलग गुटों के बीच सत्ता संघर्ष के लिए बदनाम कांग्रेस में उनका कोई गुट नहीं था। मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के लिए जब वे 31 जनवरी को बैरागढ़ एयरपोर्ट पर उतरे तो उन्हें रिसीव करने के लिए एक व्यक्ति नहीं था। वे इतने निस्पृह थे कि मुख्यमंत्री बनने के बाद अपना निजी स्टाफ तक नहीं बदला।

मशहूर हैं कई कहानियां
तमाम खासियतों के बावजूद काटजू की एक बड़ी समस्या थी कि वे चीजों को भूल (Forgetfulness of Kailash Nath Katju) जाते थे। ज्यादा उम्र के कारण जिन लोगों के साथ रोजाना उठना-बैठना होता था, उन्हें भी कई बार पहचान नहीं पाते थे। एमपी की राजनीति में इसको लेकर कई किस्से मशहूर हैं।

जो कलेक्टर साथ लेकर आए, उन्हीं से पूछा- आप कौन
मुख्यमंत्री बनने के बाद काटजू एक बार खंडवा के दौरे पर गए। उस समय खंडवा के कलेक्टर रहे सुशील चंद्र वर्मा उन्हें लेकर बुरहानपुर गए। बुरहानपुर रेस्ट हाउस में अधिकारियों के साथ परिचय के दौरान सुशील चंद्र वर्मा मुख्यमंत्री से दूर हटकर खड़े थे। सभी अधिकारियों ने अपना परिचय दे दिया तब काटजू ने वर्मा की ओर देखकर कहा- महाशय, आपने अपने बारे में कुछ नहीं बताया। वर्मा आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने धीरे से कहा कि सर मैं खंडवा का कलेक्टर हूं और आपकी गाड़ी ड्राइव करते हुए आया हूं। काटजू केवल हंसकर रह दिए।

अपने मंत्री को ही नहीं पहचान पाए
ऐसा ही एक किस्सा छतरपुर सर्किट हाउस का है। काटजू छतरपुर गए तो स्थानीय विधायक और मंत्री दशरथ जैन एक प्रतिनिधिमंडल के साथ उनसे मिलने गए। जैन ने सबका परिचय मुख्यमंत्री से कराया। अंत में काटजू ने उनसे ही पूछ लिया- और आप कौन हैं। जैन ने सकुचाते हुए अपना नाम बताया तो काटजू ने कहा कि एक दशरथ जैन तो मेरे कैबिनेट में भी हैं। यह सुनकर वहां मौजूद लोग अवाक रह गए। बड़ी मुश्किल से दशरथ जैन ने कहा कि मैं आपकी कैबिनेट का मंत्री ही हूं। इस पर काटजू ने कहा कि पहले क्यों नहीं बताया। आपको क्या लगता है, मैं जानता नहीं क्या।

मंत्री का बताया गलत परिचय
इसी तरह, नेहरू की कैबिनेट में वित्त मंत्री रहे मोरारजी देसाई एक बार भोपाल आए तो काटजू के साथ उनकी कैबिनेट के सभी सदस्य उनका स्वागत करने रेलवे स्टेशन पहुंचे। इनमें शंभुनाथ शुक्ल भी शामिल थे जो कैबिनेट में वरिष्ठता में तीसरे नंबर पर थे। काटजू ने मोरारजी देसाई से उनका परिचय केशवलाल गुमास्ता के रूप में कराया जो डिप्टी मिनिस्टर थे। शुक्ल उन्हें रोकने की कोशिश करते रहे, लेकिन कोई असर नहीं हुआ।

ऊंचा भी सुनते थे
काटजू की एक और समस्या थी। भूलने की समस्या के साथ वे ऊंचा भी सुनते थे। एक बार छत्तीसगढ़ डिवीजन के डीआईजी ने काटजू को फोन कर एक अल्पसंख्यक संस्था के बाहर जमा हुए उग्र प्रदर्शनकारियों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने स्थिति पर नियंत्रण के लिए मुख्यमंत्री से गोली चलाने की परमिशन मांगी, लेकिन काटजू को कुछ सुनाई नहीं दिया। उन्होंने कलेक्टर से कहा- जोर से। काटजू दरअसल डीआईजी को जोर से बोलने को कह रहे थे, लेकिन उन्हें लगा कि मुख्यमंत्री आंदोलन को जोर से दबाने की बात कह रहे हैं। उन्होंने यही समझकर कार्रवाई भी कर दी। कई दिनों बाद जब डीआईजी को असली बात पता चली तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ।

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