Covishield Doses Gap : क्या कोविशील्ड की दो डोज के बीच गैप घटाने का आ गया है वक्त? सरकार में चल रहा मंथन
हाइलाइट्स:
- ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड पर बदल सकती है नीति
- अब कोविशील्ड की दो डोज के बीच गैप को घटाकर 4 से 8 हफ्ते किया जा सकता है
- सरकार ने 13 मई को गैप बढ़ाकर 12 से 16 हफ्ते कर दिया था
गिरिधर आर बाबू
राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान के सुचारू संचालन के लिए केंद्र सरकार की ओर से गठित कार्यसमूह के प्रमुख डॉ. एनके अरोड़ा ने कहा है कि कोविशील्ड की दो डोज के बीच गैप घटाकर 4 से 8 हफ्ते करने पर विचार किया जा रहा है। शुरुआती दौर में एस्ट्राजेनेका की कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड की दो डोज के बीच का गैप 6 से 8 हफ्त रखा गया था जिस बढ़ाकर 12 से 16 हफ्ते कर दिया गया।
इन दो रिसर्च का हवाला
इस फैसले के पीछे दो रिसर्च रिपोर्ट का हवाला दिया गया। द लैंसेट में छपी एक स्टडी में दावा किया गया था कि तीसरे चरण के ट्रायल में जब कोविशील्ड की दूसरी डोज छह हफ्ते के अंदर दे दी गई तो यह 55.1% प्रभावशाली साबित हुआ, लेकिन जब यह गैप बढ़ाकर 12 हफ्ते या इससे ज्यादा कर दिया गया तो वैक्सीन 81.3% असरदार हो गया। दूसरी स्टडी कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका ने ही की थी जिसमें कहा गया कि मार्च 2021 में यूके के लोगों पर तीसरे चरण का ट्रायल किया गया था। ट्रायल में दो डोज के बीच चार हफ्ते का गैप रखा गया तो कोविड के लक्षण वाले मरीजों में 76% असर देखा गया।
कम उपलब्धता भी थी वजह?
भले ही रिसर्च स्टडी का हवाला दिया गया हो लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि देश में तब कोविशील्ड की पर्याप्त आपूर्ति भी नहीं हो पा रही थी। यही वजह है कि अब तक 60 वर्ष से ऊपर के बजुर्गों का टीकाकरण अभियान महीनों चलने के बाद भी इस एज ग्रुप की 22% से कुछ ज्यादा आबादी को ही वैक्सीन की एक या दो डोज लग पाई थी। वहीं, 45 से 60 वर्ष के आयु वर्ग में 20% को एक या दो डोज वैक्सीन दी जा सकी। वहीं, 18 से 44 वर्ष के आयु वर्ग की 95% आबादी को वैक्सीन लगाना बाकी है।
यूके का उदाहरण
इंग्लैंड के स्वास्थ्य विभाग की तरफ से जुटाए गए आंकड़ों से पता चलता है कि कोविशील्ड की दो डोज के बीच 8 हफ्ते का अंतर रखा गया तो कोरोना वायरस के डेल्टा वेरियेंट से ग्रसित अस्पताल में भर्ती मरीजों पर 92% असर देखा गया। यूके ने जब अपनी स्टडी में टीकाकरण की तेज गति के असर के पहलू को भी शामिल किया तो इस परिणाम पर पहुंचा कि जल्दी से दूसरी डोज लगा देने से कोरोना मरीजों को अस्पताल जाने और जान गंवाने से बचाया जा सकता है।
किन-किन देशों में 12 हफ्ते से ज्यादा की गैप
दुनिया के सिर्फ तीन देशों में ही अभी कोविशील्ड की दो डोज के बीच 12 हफ्ते से ज्यादा का अंतर रखने का प्रावधान है। ये देश भारत, थाइलैंड और स्पेन हैं। देखें टेबल…
डेल्टा वेरियेंट और कोविशील्ड को लेकर कोई स्टडी तो नहीं हुई?
द लैंसेट में प्रकाशित एक हालिया स्टडी में कहा गया है कि डेल्टा वेरियेंट से संक्रमित मरीजों में अस्पताल जाने की दर ज्यादा है। युवा और समृद्ध लोगों में यह विशेष तौर पर देखा गया है। स्टडी कहती है कि कोविशील्ड की दो डोज लेने पर कोरोना वायरस से संक्रमण का खतरा घट जाता है और डेल्टा वेरियेंट से संक्रमित मरीजों में अस्पताल जाने की दर भी कम हो जाती है।
भारत के लिहाज से इसका क्या मायने है?
भारत में कोरोना वायरस का डेल्टा वेरियेंट ही सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हुआ है। इसी वेरियेंट के कारण देश के कई हिस्सों में आउटब्रेक्स हुए। यूके की तरह दुनिया के अन्य देशों में भी डेल्टा वेरियेंट पर स्टडी की जा रही है और परिणामों के अनुसार कदम उठाए जा रहे हैं। कनाडा के ऑन्टेरियो में पहले कोवीशिल्ड की दो डोज के बीच 13 हफ्ते का गैप रखा गया था, लेकिन स्टडी के बाद इसे घटाकर 8 हफ्ते कर दिया गया।
तो क्या सरकार को फिर से डोज पॉलिसी बदलनी चाहिए?
डॉ. एनके अरोड़ा ने तो इस बात का संकेत दे ही दिया है। वैसे भी, वैक्सीन कोविड-19 महामारी से मौतों पर लगाम लगाने का सबसे बढ़िया औजार है। जब वैक्सीन की पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पाती है तो दो डोज के बीच गैप बढ़ाना जरूरी हो जाता है। हालांकि, जब इसके सबूत मिल गए हैं कि कोविशील्ड डेल्टा वेरियेंट के खिलाफ असरदार है तो सरकार को पॉलिसी में बदलाव करना ही चाहिए।
तो कितना रहे दो डोज के बीच का गैप?
कोविशील्ड की दो डोज के बीच 4 से 8 हफ्ते का अंतर रहना चाहिए। कोरोना वायरस के मौजूदा सभी वेरियेंट्स और भविष्य में सामने आने वाले वेरियेंट्स से भी सुरक्षा सुनिश्चित करने का यही सबसे ज्यादा प्रभावी तरीका है। खासकर, को-मॉर्बिडिटी वाले कोरोना मरीजों की जान बचाने के लिहाज से तो दो डोज के बीच गैप घटाना काफी महत्वपूर्ण है।
लेखक बेंगलुरु स्थित पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया में इंडियन इस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ में एपिडेमियोलॉजी के प्रफेसर हैं।
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