सियाचिन समुद्र तल से 16-18 हजार फीट ऊंचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर के एक तरफ पाकिस्तान की सीमा है तो दूसरी तरफ चीना की सीमा अक्साई चीन इस इलाके में है. दोनों देशों पर नजर रखने के हिसाब से यह क्षेत्र भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है.वर्ष 1972 के शिमला समझौते में सियाचिन इलाके को बेज़ान और बंजर करार दिया गया था लेकिन इस समझौते में दोनों देशों के बीच सीमा का निर्धारण नहीं हुआ था.
वर्ष 1984 के आसपास भारत को खुफिया जानकारी मिली कि पाकिस्तान सियाचिन ग्लेशियर पर कब्ज़ा करने के लिए युरोप की किसी कंपनी से ‘गर्म सूट’ बनवा रहा है भारत ने तुरंत ही पाकिस्तान से पहले यही विशेष सूट बनवा कर सियाचिन ग्लेशियर (विलाफोड ला पास) पर 13 अप्रैल 1984 को अपनी सेना तैनात कर दिया इस कब्जे के लिए यहां पर सेना द्वारा ‘ऑपरेशन मेघदूत’ चलाया ध्यान रहे कि अगर पाकिस्तान को ये सूट पहले मिल जाता तो पाकिस्तान की सेना यहां पहले पहुच जाती.
पाकिस्तान की सेना ने भी 25 अप्रैल 1984 को इस जगह पर चढ़ने की कोशिश की लेकिन खराब मौसम और बिना तैयारी के उसको वापस लौटना पड़ा l अंततः जून 1987 को पाकिस्तान ने 21 हजार फुट की ऊचाई पर पोस्ट बनाने में सफलता प्राप्त कर ली क्योंकि भारत का गोला बारूद खत्म हो गया था चूंकि भारत की सेना यहां पहले से ही कब्जा कर चुकी है इसलिये इस ग्लेशियर के ऊपरी भाग पर भारत और निचले भाग पर पाकिस्तान का कब्जा है भारत यहां लाभदायक स्थिति में है.
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भारत के दस हजार सैनिक यहां तैनात रहते है और इनके रखरखाव पर करोड़ों रुपये का खर्च आता है सियाचिन ग्लेशियर को दुनिया में सबसे अधिक ऊचाई पर स्थित युद्धक्षेत्र के रूप में जाना जाता है सियाचिन ग्लेशियर का क्षेत्रफल 78 कि.मी है सियाचिन ग्लेशियर काराकोरम के पाँच बड़े ग्लेशियरों मे सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा बड़ा ग्लेशियर है समुद्रतल से 17770 फिट की ऊचाई पर स्थित सियाचिन के एक तरफ पाकिस्तान की सीमा तो दूसरी तरफ चीन की सीमा है सैनिकों की नियुक्ति 18000 फिट से लेकर 23000 फिट तक होती है जहां पर आक्सीजन की आपूर्ति ऊचाई के कारण 30% तक होती है यहां तापमान माइनस 55 तक गिर जाता है l