महाभियोग : सर्वोच्य न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पद से हटाने की प्रकिया

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महाभियोग
महाभियोग

भारत में न्यायपालिका का विशेष महत्व है. समाज के सभी लोगों को न्याय मिले इसके लिए विभिन्न स्तर पर भारत में कोर्ट की स्थापना की गई है. इसमें जो सबसे बड़ा कोर्ट है, वो सर्वोच्य न्यायालय है. जिसके मुख्य न्यायधीश को भारत का मुख्य न्यायधीश भी कहा जाता है. समाज के लोगों के अधिकारों की रक्षा का दारोमदार देश के संविधान निर्माताओं ने न्यायपालिका को ही दिया है. राजनीतिक दबाव से मुक्त रखने और स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए संविधान ने उनको कुछ विशेष अधिकार दिए हैं. मुख्य न्यायाधीश को पद से हटाने की प्रक्रिया को महाभियोग कहा जाता है.

सुप्रीम कोर्ट

महाभियोग के बारे में संविधान के अनुच्छेद 61, 124(4) व 124(5) , 2017 तथा 218 में उल्लेख किया गया है. मुख्य न्यायाधीश को सिर्फ संसद द्वारा ही हटाया जा सकता है. जज ( इन्क्वॅयरी ) एक्ट 1968 कहता है कि मुख्य न्यायाधीश या जज को सिर्फ अनाचार या अक्षमता के आधार पर ही हटाया जा सकता है.

राज्यसभा

महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा या राज्यसभा किसी भी सदन में लाया जा सकता है. लोकसभा में 100 सांसदों के हस्ताक्षर तथा यदि राज्यसभा में लाया जाता है तो 50 सदस्यों के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं. इसके बाद लोकसभा स्पीकर या राज्यसभा के चैयरमैन पर निर्भर करता है कि वह इस प्रस्ताव को मंजूरी देता है या नहीं. अगर इसको मंजरी मिल जाती है, तो एक तीन सदस्यों की समिति बनाई जाती है. जिसमें सर्वोच्य न्यायालय का एक सिटिंग जज, उच्च न्यायालय का एक मुख्य न्यायाधीश / न्यायाधीश और एक कानूनविद शामिल होते हैं.ये अपनी रिपोर्ट पेश करते हैं. जज को भी अपने बचाव में पक्ष रखने का मौका मिलता है. अगर दो-तिहाई बहुमत मिलता है, तो यह प्रस्ताव पास हो जाता है. उसके बाद राष्ट्रपति अपने अधिकार का प्रयोग करके मुख्य न्यायाधीश को हटाने का आदेश दे सकता है.

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भारत में अभी तक सिर्फ 2 न्यायाधीशों ( वी. रामास्वामी तथा सौमित्र सेन ) पर महाभियोग प्रस्ताव लाया गया है. लेकिन अभी तक किसी को हटाया नही गया है. कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पी.डी.दिनाकरन पर महाभियोग की कारवाई शुरू होने ने पहले ही इन्होनें इस्तीफा दे दिया था.