केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने ‘पद्मावती’ फिल्म की समीक्षा के लिए इतिहासकारों और पूर्व राजघराने की एक समिति गठित की है. इस समिति में 6 सदस्य होंगे. समिति के सभी सदस्य फिल्म की किस्मत को लेकर फैसला करेंगे. वो ये बताएंगे कि ‘पद्मावती’ को रिलीज किया जाना चाहिए या नहीं. उम्मीद की जा रही है इस फिल्म को अगले साल मार्च तक रिलीज़ किये जाने की संभावना है. सेंसर बोर्ड में मौजूद एक सूत्र ने कहा है कि ‘पद्मावती’ के निर्माताओं ने फिल्म के प्रमाणन के लिए भेजे अपने आवेदन के साथ अस्पष्ट दावापत्र लगाकर मामले को व्यर्थ में जटिल कर दिया. आवेदन में उन्होंने लिखा है कि फिल्म आंशिक रूप से ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है.
ये है परेशानी की जड़
आप को बता दें देश भर में अलग-अलग जगह पर विरोध प्रदर्शन और विवादों की वजह से 1 दिसंबर को रिलीज़ होने वाली ‘पद्मावती’ की रिलीज़ को टाल दिया गया था. एक न्यूज़ एजेंसी के सूत्रों के हवाले से पता चला है कि अब फिल्म की प्रामाणिकता के लिए सामग्री की छानबीन करनी होगी. इससे पहले फिल्म को निमार्ताओं के पास वापस भेज दिया गया था, क्योंकि उन्होंने उस कॉलम को खाली छोड़ दिया था, जिसमें यह लिखना था कि यह फिल्म काल्पनिक है या ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है.
अगले साल ही मिलेगा प्रमाण पत्र
सूत्रों का ये भी बताया है कि सीबीएफसी ने कहा, ‘पद्मावती’ को जनवरी में ही प्रमाणित किया जा सकता है, क्योंकि दिसंबर तो लगभग बीत ही चुका है. ‘पद्मावती’ से पहले विभिन्न भाषाओं की कम से कम 40 फीचर फिल्में कतार में हैं. साल का आखरी महीना होने की वजह से बोर्ड के कुछ सदस्य छुट्टी पर हैं और कुछ अन्य सदस्य बीमार हैं.
रिलीज़ पर अब भी तलवार
सेंसर बोर्ड से जुड़े एक शख्स ने कहा, ‘फिल्म के जनवरी के दूसरे सप्ताह में प्रमाणित होने की उम्मीद जताई जा रही है. मुझे नहीं लगता कि वे मार्च या अप्रैल से पहले फिल्म को रिलीज़ कर सकेंगे. और यह भी तब होगा, जब अगर सीबीएफसी फिल्म को बिना किसी आपत्ति के प्रमाणित कर देगी. हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव से ठीक पहले ‘पद्मावती’ पर राजपूत संगठनों ने इसके खिलाफ आंदोलन तेज कर दिया था. यह मुद्दा उठाने से राजपूत वोट मिलने की संभावना देख भाजपा भी इस आंदोलन में कूद पड़ी. हालांकि भाजपा दावा करती है कि वो जाति की राजनीति नहीं करती.