24 साल बाद RAS पद पर नियुक्ति के आदेश: हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को अनफिट करार देने वाले सरकार के आदेश को किया रद्द, 5 लाख का जुर्माना लगाया – Jaipur News h3>
राजस्थान हाईकोर्ट ने आरएएस भर्ती-1999 और 2003 की भर्ती में चयनित अभ्यर्थी को अनफिट करने को गलत माना है। इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता को 21 अप्रैल, 2006 से समस्त बकाया, वरिष्ठता और पदोन्नति के साथ आरएएस पद पर नियुक्ति देने को कहा है।
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अदालत ने कहा कि योग्यता की स्वीकृति के प्रतीकात्मक संकेत के रूप में याचिकाकर्ता की आरएएस पद पर नियुक्ति एक माह में राज्य के मुख्य सचिव की उपस्थिति में दी जाए। इसके साथ अदालत ने लंबे समय पर याचिकाकर्ता के साथ हुए भेदभाव को देखते हुए राज्य सरकार पर पांच लाख रुपए का हर्जाना लगाया है।
यह आदेश जस्टिस समीर जैन की एकलपीठ ने डॉ. देवाराम शिवरान की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए हैं।
आरएएस भर्ती में आई थी 21वीं रैंक अधिवक्ता शैलेष प्रकाश शर्मा ने बताया कि याचिकाकर्ता ने आरएएस भर्ती-1999 में भाग लेकर मेरिट में 360वां स्थान प्राप्त किया था। उसे आंखों का दोष बताकर मेडिकल अनफिट कर नियुक्ति से इनकार कर दिया। इसे चुनौती देने पर अदालत ने सितंबर, 2001 को याचिकाकर्ता के लिए एक पर रिक्त रखने को कहा।
इसके बाद साल 2003 की आरएएस भर्ती में याचिकाकर्ता ने 21वां स्थान प्राप्त किया। लेकिन उसे समान आधार पर अनफिट बताया गया। याचिकाकर्ता की प्रार्थना पर दूसरे मेडिकल बोर्ड ने परीक्षण किया और उसे अनफिट बता दिया। दूसरी ओर राज्य सरकार ने मेरिट में 22वां स्थान रखने वाली अभ्यर्थी को आरएएस पद पर नियुक्ति दे दी।
याचिकाकर्ता की प्रार्थना के बाद मुख्यमंत्री ने कमेटी गठित की और उसकी सिफारिश पर याचिकाकर्ता को लेखा सेवा में नियुक्ति दी गई। याचिका में कहा गया कि वह बीते दो दशक से लेखा सेवा में काम कर रहा है और शुरू से ही मेधावी छात्र रहा है। एकलपीठ ने उसके विधिक अधिकारों की रक्षा करते हुए उसके लिए एक पर रिक्त रखने को कहा था। ऐसे में उसे आरएएस कैडर में नियुक्ति दी जाए।
उस समय दिव्यांग आरक्षण नहीं था इसका विरोध करते हुए राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता दिव्यांग है और आरएएस व आईएएस भर्ती में साल 2005 व 2007 से दिव्यांग आरक्षण दिया जाने लगा है। इससे पूर्व की भर्तियों में दिव्यांग आरक्षण का प्रावधान नहीं था। इसके बावजूद उसके रिकॉर्ड को देखते हुए उसे राज्य सरकार ने शिथिलता देते हुए लेखा सेवा में नियुक्ति दी, लेकिन इसे अधिकार के तौर पर नहीं लिया जा सकता। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने याचिकाकर्ता को आरएएस पद पर नियुक्ति देने को कहा है।