देश में एक ऐसा मामला सामने आया है जिस पर पश्चताप के अलावा और कुछ भी नहीं किया जा सकता. एक बेगुनाह ने अपनी ज़िन्दगी के 14 साल जेल में गुज़ार दिए लेकिन जब रिहाई के आदेश आये तब तक वह इस दुनिया से जा चूके था.
हम सबने सुना है की भले ही सौ दोषी छूट जाएं लेकिन एक बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए. बिमलेंदु मोंडाल के मामले में यह महज एक विचार ही बनकर रह गया. उन्होंने अपनी जिंदगी के 14 साल जेल में गुजारे. पत्नी की हत्या के मामले में लगे आरोपों पर लोअर कोर्ट के फैसले पर कोलकाता हाई कोर्ट ने दखल दिया, जिसके बाद बिमलेंदु की रिहाई 30 जुलाई यानी सोमवार को होनी थी पर, जब तक फैसला आया तब तक वह मर चुके थे. रिहाई से दो वर्ष पहले ही उनकी बिमारी से मौत हो चुकी थी.
वकील को फीस देने के नहीं थे पैसे
कोलकाता हाई कोर्ट ने 14 साल पुरानी अपील पर सुनवाई तय की और फैसला आया की वह अपनी पत्त्नी की हत्या के मामले में अपराधी नहीं है. उससे पहले 2004 में पीड़ित बिमल को लोअर कोर्ट ने अपराधी मानते हुए उम्र केद की सजा दी गई थी.
उस वक्त बिमल ने बांकुरा कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए कोलकाता हाई कोर्ट में अपील दायर की थी. इस केस की कभी सुनवाई नहीं हो सकी क्योंकि वह गरीब शख्स खुद को निर्दोष साबित करने के लिए एक वकील कर पाने में भी असमर्थ था.
जज के आग्रह पर फिर से शुरू हुई थी मामले की सुनवाई
13 साल बाद हाई कोर्ट के जज के आग्रह के बाद केस को फिरसे खोला गया. जज ने एक वकील से यह आग्रह किया कि वह बिना फीस के इस केस को स्वीकार करें. लोअर कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ सुनवाई शुरू हुई लेकिन किसी को यह नहीं पता था कि बिमलेंदु की दो साल पहले मौत हो चुकी है.
बिमल की रिहाई जहा कुछ दिन पहले 30 जुलाई को होनी थी वही उसकी मौत 29 दिसम्बर 2016 में ही हो गई थी.