सभी संसाधनों पर कुछ पूंजीपतियों का कब्जा – Darbhanga News h3>
NEWS4SOCIALन्यूज|दरभंगा ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन (एआईडीएसओ) के 9वें बिहार राज्य छात्र सम्मेलन का दूसरा दिन शैक्षणिक सेमिनार और प्रतिनिधि अधिवेशन के नाम रहा। 13 अप्रैल को कार्यक्रम की शुरुआत शहीद वेदी पर माल्यार्पण और श्रद्धांजलि से ह
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इसका मकसद निजी संस्थानों को बढ़ावा देना है। इससे गरीब और कमजोर तबके के छात्र शिक्षा से बाहर हो रहे हैं। उन्होंने प्रतिनिधियों से अपील की कि वे सरकार की इस साजिश को उजागर करें और छात्रों को संगठित कर संघर्ष तेज करें। इसके बाद वामपंथी एकता सत्र हुआ। इसमें आइसा के राज्य उपाध्यक्ष मयंक यादव, एसएफआई के संयुक्त राज्य सचिव छोटू भारद्वाज और एआईएफएस के प्रतिनिधि शरद कुमार सिंह ने शिक्षा और जनहित के मुद्दों पर संयुक्त संघर्ष तेज करने की बात कही। सम्मेलन में संगठन का राजनीतिक प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया गया। विभिन्न जिलों से आए प्रतिनिधियों के सुझावों को शामिल कर इसे सर्वसम्मति से पारित किया गया। अधिवेशन के अंतिम चरण में 42 सदस्यीय राज्य काउंसिल का गठन हुआ। विजय कुमार को अध्यक्ष, शिव कुमार और राजू कुमार को उपाध्यक्ष, शिमला मौर्या को कार्यालय सचिव और आदित्य कुमार को कोषाध्यक्ष चुना गया।
इस मौके पर एआईडीएसओ के इंटरनेशनल अफेयर्स सेक्रेटरी मणिशंकर पटनायक, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष साधना मिश्रा, स्वागत समिति के सचिव अधिवक्ता विजय कुमार मंडल, डॉ. विनय कुमार मिश्रा, डॉ. हीरालाल सहनी, मुजाहिद आज़म, पूर्व राज्य अध्यक्ष रोशन कुमार रवि, पूर्व उपाध्यक्ष निकोलाई शर्मा, डॉ. अंशुमान और प्रणव भारद्वाज सहित कई गणमान्य अतिथि मौजूद रहे। अतिथि को सम्मानित करते और उपस्थित लोग। प्रतिनिधि अधिवेशन में एआईडीएसओ के राष्ट्रीय अध्यक्ष और एसयूसीआई (कम्युनिस्ट) के बिहार राज्य सचिव अरुण कुमार सिंह ने कहा कि शिक्षा की समस्या सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था से जुड़ी है। देश की पूंजीवादी व्यवस्था संकट में है। संसाधनों पर कुछ पूंजीपतियों का कब्जा है। जबकि 90 प्रतिशत जनता तंगहाली में जी रही है। शासक वर्ग नहीं चाहता कि आम जनता शिक्षित हो। ताकि उन्हें जाति, धर्म और अंधविश्वास में फंसा कर शोषण किया जा सके। एआईडीएसओ के केंद्रीय महासचिव शिवाशीष प्रहराज ने कहा कि शिक्षा पर हो रहे हमलों का जवाब संगठित छात्र आंदोलन से ही दिया जा सकता है। प्रतिनिधियों से आह्वान किया कि वे भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और नेताजी सुभाषचंद्र बोस से प्रेरणा लें और शिक्षा के अधिकार की रक्षा के लिए संघर्ष को व्यापक बनाएं।