संडे जज्बात-मेरी डॉक्टर बेटी को रेप के बाद मार डाला: आज भी लगता है इकलौती बेटी जिंदा है, शाम को ड्यूटी से लौट आएगी

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संडे जज्बात-मेरी डॉक्टर बेटी को रेप के बाद मार डाला:  आज भी लगता है इकलौती बेटी जिंदा है, शाम को ड्यूटी से लौट आएगी

संडे जज्बात-मेरी डॉक्टर बेटी को रेप के बाद मार डाला: आज भी लगता है इकलौती बेटी जिंदा है, शाम को ड्यूटी से लौट आएगी

आठ महीने पहले कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में जिस डॉक्टर की रेप के बाद हत्या कर दी गई थी, मैं उसका पिता हूं। उस वक्त तो देशभर में खूब हंगामा हुआ, लेकिन धीरे-धीरे सब भूल गए। न तो न्याय मिला और न ही अब कोई हमें पूछने वाला है। हमारे परिवा

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अब हमने बाहर आना-जाना भी बंद कर दिया है। किसी के घर भी नहीं जाते हैं। ज्यादा लोगों को देखकर घबराहट होती है। लोगों को देखकर लगता है कि सब कुछ पहले जैसा ही है, सब लोग चल-फिर रहे हैं सिर्फ मेरी बेटी जिंदा नहीं है। अब मैं और मेरी पत्नी भी आपस में कम ही बात करते हैं। बात करने को कुछ है ही नहीं, तो क्या बात करें। पड़ोसी भी हमसे केवल काम की बात करते हैं। रिश्तेदारों से भी हमने दूरी बना ली है। अकेले रहना अच्छा लगता है।

कोलकाता रेप विक्टिम के पिता कहते हैं कि उस घटना को आठ महीने बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक न्याय नहीं मिला।

बस न्यूज चैनल पर नजर बनाए रखते हैं कि हमारे केस पर कोई प्रोग्रेस है या नहीं। घर में मीडिया वाले आते-जाते रहते हैं।

ये सब जब सोचने के लिए बैठता हूं, तो सोचता ही रह जाता हूं कि सारी जिंदगी बेटी के लिए जो कुछ भी किया, वो सब एक झटके में खत्म हो गया। बेटी चाहती थी कि उसका बहुत नाम हो, लेकिन आज उसका नाम ही दुनिया से मिट गया। जब भी किसी दूसरे की बेटी को पिता के साथ घूमते हुए देखता हूं तो अपनी बेटी की याद आती है। लगता है कि मेरी बेटी दुनिया में क्यों नहीं है।

मेरी बेटी पढ़ने में बहुत तेज थी। हर दिन दस से बारह घंटे पढ़ती थी। जब भी उसे देखता वो पढ़ती ही रहती। बचपन से ही कहती थी कि डॉक्टर बनूंगी। तब मैं कह देता कि डॉक्टर बनने के लिए बहुत सारे पैसों की जरूरत होती है। तब वो खुश होकर कहती कि जितने भी पैसे लगें, मेरे बापी देंगे। वो मुझे बापी कहा करती थी।

धीरे-धीरे उसका सपना, मेरा सपना बन गया। मैं कभी ये नहीं कह पाता था कि इतना पैसा कहां से आएगा। मैं तो टेलर था। जब बेटी ने कहा कि उसे डॉक्टर बनना है, तब मैंने रेडिमेड गारमेंट्स का बिजनेस शुरू किया। 17-17 घंटे काम करता था। पत्नी भी काम करने लगी।

हम दोनों पति-पत्नी उसके सपने को पूरा करने में जुट गए। हमें न दिन का होश था न रात का। बेटी सिर्फ पढ़ती थी और हम लोग काम करते थे।

शुरुआत में तो बेटी घर के पास ही सरकारी बंगाली स्कूल में पढ़ती थी। साल 2006 में हमने नया घर बनाया। इससे पहले हम लोग दूसरी जगह रहते थे।

पढ़ने के अलावा वह संगीत सीखती थी। गाना गाने का शौक था। उसका हारमोनियम आज भी घर पर रखा है। 9वीं क्लास से उसने संगीत सीखना बंद कर दिया था। उसे सिर्फ किताबें चाहिए होती थीं। किताबों के अलावा कोई होश नहीं रहता था।

जब उसने NEET का एग्जाम पास कर लिया, तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। जब पता चला कि जाधवपुर कॉलेज में उसका नाम नहीं आया है, तो वह निराश हो गई। कहने लगी दोबारा एग्जाम दूंगी। फिर सेकेंड काउंसलिंग में आरजी कर मेडिकल कॉलेज में नाम आ गया। उसका एडमिशन हो गया।

वह मां के ज्यादा करीब थी। मेरा भी बहुत ख्याल रखती थी। उसे हमारी हेल्थ की बहुत चिंता रहती थी। बीपी चेक करना, समय से दवा देना, वह कभी नहीं भूलती थी। अगर मुझे कभी देर हो जाती, तो बेटी फोन करके कहती कि बापी अब तक घर क्यों नहीं आए हो।

पल भर के लिए भी उसकी नजर हमसे नहीं हटती। मुझे आज भी ऐसा लगता है कि बेटी ड्यूटी पर गई है, थोड़ी देर में आ जाएगी। आज भी ये नहीं सोच पाता हूं कि अब वह जिंदा नहीं है।

9 अगस्त 2024 की बात है। बेटी के कॉलेज से फोन आया। वह कहने लगे कि- असिस्टेंट सुपरवाइजर बोल रहा हूं, आपकी बेटी की तबीयत खराब है, उसे इमरजेंसी में ले जा रहे हैं, आप लोग जल्दी आ जाइए। मैंने हड़बड़ाकर पूछा कि क्या हो गया? जवाब मिला कि मैं डॉक्टर नहीं हूं, बस ट्रीटमेंट के लिए ले जा रहा हूं। इससे आगे कुछ नहीं बता पाऊंगा। बस आप लोग आ जाइए। हम दोनों पति-पत्नी घबरा गए। हमने पड़ोसियों को आवाज दी और उनके साथ तुरंत कॉलेज के लिए निकल गए।

रास्ते में ही थे, तभी दोबारा फोन आया कि बेटी ने सुसाइड किया है, शायद उसकी मौत हो गई है। हालांकि जब पहली बार फोन आया था तभी मुझे शक हो गया था।

हॉस्पिटल पहुंचे तो इमरजेंसी में बेटी नहीं मिली। एक सिक्योरिटी गार्ड से पूछा तो उसने थर्ड फ्लोर के सेमिनार हॉल में जाने के लिए कहा। वहां पहुंचे तो देखा बहुत भीड़ लगी थी। पुलिस भी थी। हमें अंदर जाने नहीं दिया गया। सब लोग जिस तरह की बातें कर रहे थे, पुलिस जिस तरह से अंदर-बाहर आ-जा रही थी, हम समझ गए थे कि हमारी बेटी तो अब जिंदा नहीं है।

दोपहर 3 बजकर 20 मिनट पर पुलिस हमारे पास आई। उसने कहा कि बेटी को देख लीजिए। बेटी की लाश देखते ही मैं समझ गया कि यह सुसाइड नहीं, हत्या है। मैंने पुलिस से कहा कि बेटी की डेड बॉडी का पोस्टमॉर्टम यहां नहीं करवाऊंगा।

मेरी ये बात सुनते ही सब चिल्लाने लगे। जबरदस्ती सभी ने उसका पोस्टमॉर्टम उसी कॉलेज के हॉस्पिटल में करवाया। मैं कहता रहा कि बाहर पोस्टमॉर्टम करवाऊंगा, लेकिन किसी ने नहीं सुनी। पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट से मैं आज भी संतुष्ट नहीं हूं। उसमें बेटी के साथ रेप की बात नहीं कही गई है। पोस्टमॉर्टम से 19 घंटे पहले ही बेटी की मौत हो चुकी थी।

बेटी की मौत दिन के 12 बजकर 44 मिनट पर डिक्लेयर की गई और FIR रात के 11 बजकर 45 मिनट पर दर्ज हुई। जबकि हम शाम 6 बजे से FIR के लिए पुलिस स्टेशन में बैठे थे। हमें आरोपी संजय रॉय के खिलाफ FIR की कॉपी मिली।

अपनी बेटी की डिग्री और अवॉर्ड दिखाते पिता।

बेशक सियालदाह लोअर कोर्ट ने संजय रॉय को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। उसके बाद राज्य सरकार ने कोलकाता हाईकोर्ट में अपील दायर कर संजय रॉय के लिए फांसी की मांग की। सीबीआई ने भी हाईकोर्ट से संजय रॉय के लिए फांसी की मांग की, लेकिन अभी तक इस मामले में सुनवाई ही नहीं हुई है। और तो और सीबीआई ने अभी तक सप्लीमेंट्री चार्जशीट भी दायर नहीं की है।

हमारी तरफ से यह मामला कोलकाता हाईकोर्ट में था। उसके बाद यह सुप्रीम कोर्ट में गया। सात महीने बाद ये मामला फिर से हाईकोर्ट में आया। सीबीआई के जांच अधिकारी ने जो बातें बताई हैं, उसके आधार पर मैंने हाईकोर्ट में 54 सवालों के साथ एक याचिका दायर की है। इस पर दो बार सुनवाई हो चुकी है। 23 अप्रैल को तीसरी सुनवाई होनी है।

शुरुआत से ही इस केस में बहुत सारी खामियां हैं। जिसने मुझे फोन पर बताया था कि बेटी ने सुसाइड किया है, उसे सुसाइड के बारे में कैसे पता चला। उस रात जिन चार डॉक्टरों ने मेरी बेटी के साथ बैठकर खाना खाया था, क्या उनसे सीबीआई ने पूछताछ की।

उस रात बेटी ने फोन पर बताया था कि उसने बाहर से खाना ऑर्डर किया है। जबकि एक डॉक्टर ने कहा कि खाना मेरी बेटी ने नहीं, उसने ऑर्डर किया था। खाने में कहीं नशे वाली कोई चीज तो नहीं मिलाई गई थी। बेटी की विसरा रिपोर्ट तक नहीं दी गई।

बेटी की मौत से हम पूरी तरह टूट चुके हैं। बस किसी भी कीमत पर उसे न्याय दिलवाना चाहते हैं। चाहे कुछ भी हो जाए, भले ही हमें भी मार दिया जाए, लेकिन बेटी को न्याय दिलाकर रहेंगे। हम मरने से नहीं डरते, न्याय की लड़ाई जारी रहेगी।

राष्ट्रपति को भी चार-चार लेटर लिख चुका हूं। एक ओपन लेटर भी लिखा था, जिसका जवाब आया कि उन्हें बहुत दुख है कि मेरी बेटी के साथ ऐसा हुआ। हालांकि मिलने का समय तब भी नहीं दिया।

ये जज्बात कोलकाता रेप विक्टिम के पिता ने NEWS4SOCIALरिपोर्टर मनीषा भल्ला से साझा किए।

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