विश्व अंगदान दिवस – 63 वर्षीय व्यक्ति बाेले, जिस ब​हन ने नया जीवन दिया, ​हर सांस में उसके लिए दुआ | An old man narrated story who saved his life from organ donation in 20 | Patrika News

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विश्व अंगदान दिवस – 63 वर्षीय व्यक्ति बाेले, जिस ब​हन ने नया जीवन दिया, ​हर सांस में उसके लिए दुआ | An old man narrated story who saved his life from organ donation in 20 | Patrika News

विश्व अंगदान दिवस – 63 वर्षीय व्यक्ति बाेले, जिस ब​हन ने नया जीवन दिया, ​हर सांस में उसके लिए दुआ | An old man narrated story who saved his life from organ donation in 20 | Patrika News

उनके बच्चों को भी कहा है कि जीवन में जब भी मेरी जरूरत होगी, मैं खड़ा रहूंगा। यह कहना है इंदौर के महालक्ष्मी नगर निवासी 63 वर्षीय वीरेंद्र जैन का। उनका 30 दिसंबर 2017 को इंदौर में लीवर ट्रांसप्लांट हुआ था। इंदौर में 7 अक्टूबर 2015 से शुरू हुआ कैडेवर ऑर्गन ट्रांसप्लांट का सफर जारी है।

अब तक शहर में 44 ऑर्गन ट्रांसप्लांट हो चुके हैं। खास बात यह है कि जितने भी मरीजों को अंग प्रत्यारोपित किए गए, वे सभी आज स्वस्थ्य जीवन जी रहे हैं।

वीरेंद्र जैन ने अंगदान के बाद पहली बार सार्वजनिक रूप से अपने अंग प्रत्यारोपण को लेकर पत्रिका से चर्चा की और जीवन के 17 वर्ष के संघर्ष की दास्तां सुनाई। उन्होंने कहा, तमाम कोशिशों के बाद थक-हार कर वापस इंदौर आ गए। यहां एक जुलाई 2017 को इंदौर ऑर्गन ट्रांसप्लांट सोसायटी में अपना रजिस्ट्रेशन करवाया और 6 माह के भीतर ही हमें दिसंबर 2017 में लीवर मिल गया। ट्रांसप्लांट के बाद मैं अब पूरी तरह ठीक हूं। पिछले वर्ष कोरोना भी हो गया था, लेकिन फिलहाल स्वस्थ हूं। जैन का कहना है कि मैं आज अपने परिवार के बीच हूं तो सिर्फ उस बहन की वजह से जिसका लीवर मुझे लगा है।

किडनी भोपाल में ही एक पेशेंट को डोनेट हुई, जो करीब 12 सालों से अच्छा जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहा था। इसी तरह लिवर दिल्ली भेजा गया। आंखें एमबीबीएस स्टूडेंट्स की एजुकेशन के लिए भेजी गईं। ये फैसला लेना आसान नहीं था, लेकिन हमारे उस निर्णय ने दो लोगों को नया जीवन दिया।

8 साल तक खाई पेनकिलर-
जैन ने बताया, उनका जन्म 15 जून 1960 को झाबुआ में हुआ था। 1979 में उन्हें पेट दर्द की समस्या होने लगी। इसके बाद इलाज शुरू हुआ। वह 1990 से 1995 तक अलीराजपुर में पदस्थ रहे। करीब 8 साल तक पेनकिलर ली।

दो मरीजों को मिला जीवन-
भोपाल के अमित चक्रवर्ती ने बताया कि मेरी मम्मी तापसी चक्रवर्ती स्कूल टीचर थी। उन्हें ब्रेन हेमरेज हो गया था। उनका ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया। मां की किडनी, लिवर और आई डोनेट की गई। किडनी भोपाल में ही एक पेशेंट को डोनेट हुई, जो करीब 12 सालों से अच्छा जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहा था। इसी तरह लिवर दिल्ली भेजा गया। आंखें एमबीबीएस स्टूडेंट्स की एजुकेशन के लिए भेजी गईं।

जब हालत बिगड़नेे लगी तो इंदौर के साथ बड़ौदा में डॉ. प्रशांत बुच के पास इलाज करवाया। पता चला कि अल्सेटिव कोलाइटिस और प्राइमरी स्कुंलनजाइटिस नाम की लीवर बीमारी है। इसमें लीवर के अंदर नसें चोक होने लगी थी और आखिर में कैंसर और लीवर सिरोसिस की आशंका बढ़ गई थी। हैदराबाद के एशियन इंस्टिटॺूट के डॉ. नागरेश्वर रेडड्ी से इलाज करवाया। उन्होंने बताया, अब लीवर ट्रांसप्लांट ही उपाय है, जिससे जीवन बचाया जा सकता है। इस पर गुड़गांव के मेदांता में इलाज करवाया।



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