विशुद्ध राजनीति : ‘हमने सहनी की पार्टी नहीं तोड़ा बल्कि उनके विधायकों ने घर वापसी की है’, शाहनवाज हुसैन का Exclusive इंटरव्यू

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विशुद्ध राजनीति : ‘हमने सहनी की पार्टी नहीं तोड़ा बल्कि उनके विधायकों ने घर वापसी की है’, शाहनवाज हुसैन का Exclusive इंटरव्यू

विशुद्ध राजनीति : ‘हमने सहनी की पार्टी नहीं तोड़ा बल्कि उनके विधायकों ने घर वापसी की है’, शाहनवाज हुसैन का Exclusive इंटरव्यू

बिहार की पॉलिटिक्स में गहमा-गहमी चल रही है। सरकार में शामिल विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के चीफ और नीतीश सरकार के मंत्री मुकेश सहनी ने पिछले हफ्ते तेजस्वी यादव को ढाई-ढाई साल सरकार चलाने का ऑफर देकर एनडीए को असहज कर दिया था। इसकी प्रतिक्रिया यह हुई कि बुधवार को वीआईपी के सभी तीन विधायकों ने बीजेपी जॉइन कर ली। राजनीतिक गलियारों में कहा जा रहा है कि देर-सबेर ऐसा ही जीतन राम मांझी की पार्टी में भी होना है। इसे नीतीश कुमार पर दबाव बढ़ाने के नजरिए से देखा जा रहा है, जो कि बीजेपी के मुकाबले सदन में कम संख्या बल होने के बावजूद मुख्यमंत्री हैं। बिहार में जो कुछ चल रहा है, उसकी वजह क्या है और आगे क्या हो सकता है, यह जानने के लिए एनबीटी के नेशनल पॉलिटिकल एडिटर नदीम ने बीजेपी के सीनियर लीडर और बिहार सरकार के मंत्री शाहनवाज हुसैन से बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश :

आप लोगों पर इल्जाम है कि आपने अपने एक सहयोगी की पार्टी तोड़ दी। उनके सारे विधायकों को अपने पाले में कर लिया। ऐसा करना क्यों जरूरी हुआ?

तोड़ना शब्द का इस्तेमाल गलत है। हमने मुकेश सहनी की पार्टी को तोड़ा नहीं है। उनके विधायकों ने घर वापसी की है। यह जो तीन विधायक विकासशील इंसान पार्टी को छोड़कर बीजेपी में आए हैं, वे मूल रूप से बीजेपी के ही हैं। विधानसभा चुनाव के समय जब सीटों का बंटवारा हुआ तो मुकेश सहनी के पास चुनाव जीतने वाले लोग ही नहीं थे तो कुछ सीटों पर हमने उन्हें अपने आदमी दिए थे। हमारे ही आदमी चुनाव जीते, उनके तो सब हार गए थे।

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बिहार में एक सीट के लिए उपचुनाव हो रहा है। वह सीट वीआईपी कोटे की है लेकिन बीजेपी ने उस पर अपना उम्मीदवार उतार दिया। यह अविश्वास क्यों?

मुकेश सहनी की पार्टी ऐसी है जिसके पास चुनाव लड़ने वाले लोग नहीं होते लेकिन उन्हें चुनाव के लिए सीट चाहिए होती है। उपचुनाव में भी वह जिसे उम्मीदवार बना रहे थे, वह आरजेडी में शामिल हो गया। चुनाव ऐसे नहीं लड़ा जाता है और न ही हम तमाशबीन बन कर बैठ सकते हैं। प्रतिष्ठा तो एनडीए की दांव पर लगी होगी। इसलिए हमने अपना उम्मीदवार दिया।

कहा जा रहा है कि यह जो विधायकों वाला घटनाक्रम है, उसकी वजह मुकेश सहनी का तेजस्वी यादव को ढाई साल का सीएम बनने के लिए दिया गया ऑफर है?

उनके ऑफर को आरजेडी ने भी गंभीरता से नहीं लिया तो हम क्यों लेने लग जाते। सबको पता है कि मुकेश सहनी बिहार की राजनीति में कितनी गंभीरता रखते हैं। सबेरे कुछ बोलते हैं, शाम को कुछ और हो जाते हैं। सरकार बनाने और बिगाड़ने की हैसियत तो उस व्यक्ति या पार्टी के पास होती है, जिसके पास विधायक होते हैं। तकनीकी रूप से अभी तक मुकेश सहनी की पार्टी में जो तीन विधायक थे भी, उनकी मुकेश सहनी से एक साल से बातचीत तक नहीं हो रही थी। वे मानसिक रूप से बीजेपी के साथ ही थे। ऐसे में यह किसको ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री बनवा पाते और कौन इन्हें ढाई साल का मुख्यमंत्री स्वीकार कर लेता? वैसे भी बिहार विधानसभा में सदस्यों का जो गणित है, उसमें एनडीए सरकार को किसी तरह का खतरा नहीं है।

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चर्चा है कि देर सबेर जीतन राम मांझी की पार्टी के साथ भी ऐसा हो सकता है…

ऐसा नहीं होने वाला है। जीतन राम मांझी गंभीर और बिहार की राजनीति को समझने वाले नेता हैं। वह हमारे बहुत विश्वसनीय सहयोगी हैं। मुकेश सहनी के साथ भी यह नौबत नहीं आती। उनके साथ ऐसा इसलिए हुआ कि उनके विधायक मूलरूप से बीजेपी के थे। खुद मुकेश सहनी सरकार में मंत्री हैं लेकिन मोदी पर टीका-टिप्पणी कर रहे थे, यूपी में योगी को हराने चले गए, तो ऐसे में कौन बीजेपी वाला उन्हें बर्दाश्त करेगा? एक साल मुकेश सहनी से बोलचाल न होने के बावजूद उनके विधायक पार्टी में बने हुए थे। जब उन लोगों को लगा कि पानी सिर के ऊपर चला गया है तो उन लोगों ने घरवापसी कर ली।

सदन में सदस्यों की संख्या के लिहाज से बीजेपी अब नंबर एक हो जाएगी। कहा जाता है कि इसके बाद मुख्यमंत्री पद पर उसका दावा बढ़ जाएगा?

चुनाव परिणाम जब आया उसी वक्त हम जेडीयू से सदस्य संख्या में आगे थे लेकिन पार्टी नेतृत्व ने अपने वादे को निभाया क्योंकि 2020 का बिहार चुनाव एनडीए ने नीतीश कुमार को चेहरा बना कर लड़ा था। हम अपने उस वादे पर कायम हैं। विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी हो जाने के बावजूद नीतीश कुमार ही 2025 तक एनडीए सरकार के मुख्यमंत्री रहेंगे। मुख्यमंत्री को लेकर एनडीए में किसी तरह का संशय नहीं है। बिहार सरकार जन आकांक्षाओं के अनुरूप काम कर रही है।

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बिहार का चुनाव आप लोग कानून-व्यवस्था और विकास के मुद्दे पर लड़े थे लेकिन इस दिशा में बहुत कुछ ठोस होता दिखा नहीं?

मैं बिहार सरकार का उद्योग मंत्री हूं। दावे के साथ कह सकता हूं कि बिहार में जितना निवेश हुआ है, वह पहले कभी नहीं हुआ। करीब 40 हजार करोड़ का निवेश आया है। केंद्र से बिहार को मेगा फूड पार्क मिला है। हम बिहार को टेक्सटाइल का हब बना रहे हैं। ये सारी बातें नए बिहार की ओर ही इशारा कर रही हैं, जिसका वादा हमने मतदाताओं से किया था।

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