विपक्षी एकता के दावों का दम भी परखेगा MLC चुनाव, अखिलेश की रणनीति से बढ़ी बसपा, कांग्रेस की समस्या

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विपक्षी एकता के दावों का दम भी परखेगा MLC चुनाव, अखिलेश की रणनीति से बढ़ी बसपा, कांग्रेस की समस्या

विपक्षी एकता के दावों का दम भी परखेगा MLC चुनाव, अखिलेश की रणनीति से बढ़ी बसपा, कांग्रेस की समस्या

लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में पूर्ण विपक्षी एकता के लिए कसरत तेज है। सपा मुखिया अखिलेश यादव के शुभचिंतकों में शुमार ममता बनर्जी तक का सुर कर्नाटक के नतीजों के बाद कांग्रेस पर नरम है। इससे पहले बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी लखनऊ आकर एका की वकालत कर चुके हैं। विपक्षी एकता के इन दावों में कितना दम है, यूपी में इसके पहले लिटमस टेस्ट का वक्त आ गया है। एमएलसी उपचुनाव में सत्ताधारी दल से सीधी लड़ाई में सपा का साथ कांग्रेस व बसपा देंगी या मूकदर्शक बनी रहेंगी, इस पर एका की आगे की राह के भी संकेत मिलेंगे।एमएलसी की विधायक कोटे की दो सीटों पर हो रहे उपचुनाव के लिए सोमवार को नाम वापसी का आखिरी दिन था। किसी ने पर्चा वापस नहीं लिया। लिहाजा, भाजपा व सपा सीधे तौर पर मुकाबिल हैं। बसपा के पास मात्र एक और कांग्रेस के पास दो विधायक हैं। ऐसे में उम्मीदवारी के लिए जरूरी दस प्रस्तावक भी दोनों दलों के पास नहीं हैं। ऐसे में इनकी दावेदारी थी भी नहीं।

नतीजों से अधिक ‘नीति’ का टेस्ट

फैसला सामान्य बहुमत यानी 202 वोट से होगा। सत्तारूढ़ भाजपा गठबंधन के पास 274 विधायक हैं, जबकि सपा गठबंधन के पास मात्र 118। हार तय दिखने के बाद भी सपा ने दावेदारी का दांव खेला है। दलित-अति पिछड़ा भागीदारी के संदेश के साथ ही बसपा, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के लिए असमंजस की स्थिति खड़ी कर दी है। सपा यह साबित करने में लगी है कि वह भाजपा के खिलाफ हर हाल में लड़ाई लड़ रही है, लेकिन बाकी विपक्षी दलों का रुख साफ नहीं है। हालांकि, सपा गठबंधन के सामने चुनौती मतदान में सेंधमारी रोकने की भी होगी। पिछली बार पार्टी झटका खा चुकी है।

आसान नहीं फैसला

बसपा और कांग्रेस चुनाव में सपा के खिलाफ रहते हैं या साथ, इससे नतीजों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन, विपक्षी एकता की कवायद पर उनका रुख क्या है, इसका इशारा जरूर मिलेगा। संख्याबल में प्रतीकात्मक ही सही विपक्ष के तौर पर कांग्रेस-बसपा को भूमिका तय करनी होगी। हालांकि, कांग्रेस से सपा की बेरुखी जारी है। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के शपथ ग्रहण में सपा का कोई प्रतिनिधि मौजूद नहीं था। इसलिए, साथ खड़ा होने का फैसला कांग्रेस के लिए भी आसान नहीं है। कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि समर्थन के लिए अभी सपा की ओर से कोई संपर्क भी नहीं किया गया है। वहीं, गठबंधन टूटने के बाद सपा को लेकर बसपा की सख्ती अभी बरकरार है। लिहाजा, समर्थन व एका दोनों की राह कठिन ही है।

क्या कह रहे हैं नेता

सपा के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि लोकतंत्र बचाने की लड़ाई है। बसपा, कांग्रेस के साथ ही भाजपा के उन विधायकों जिन्हें लोकतंत्र में विश्वास है, उनसे भी हम सहयोग मांग रहे हैं। इतिहास में ऐसे उदाहरण हैं जब सत्ता के आधिकारिक उम्मीदवार हार गए। वहीं, बसपा विधायक उमाशंकर सिंह ने पूरा मामला पार्टी सुप्रीमो मायावती पर छोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि समर्थन का फैसला राष्ट्रीय अध्यक्ष करेंगी। सपा को सस्ते पैतरों से बचना चाहिए। जहां हार तय है वहां दलितों-अति पिछड़ों को लड़ाने का ढोंग कर रहे हैं, जहां जीत तय होती है वहां खास लोगों को टिकट देते हैं।

कांग्रेस अभी तक इस पूरे मामले में कोई निर्णय नहीं होने की बात कर रही है। कांग्रेस विधायक दल की अध्यक्ष अनुराधा मिश्रा ने कहा कि अभी परिषद उपचुनाव में भूमिका को लेकर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। नेतृत्व का जैसा निर्देश होगा, उसका अनुपालन किया जाएगा।

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