रेवड़ी-ईमानदारी फेल, AAP को ओवरकॉन्फिडेंस ले डूबा: शराब घोटाले ने केजरीवाल की इमेज बिगाड़ी, फ्री स्कीम पर भारी पड़ीं टूटी सड़कें h3>
‘मैंने तय किया है कि मैं जनता की अदालत में जाऊंगा। जनता मुझे बताए कि मैं बेईमान हूं या नहीं। अगर आपको लगता है कि केजरीवाल ईमानदार है तो वोट देना। अगर लगता है कि केजरीवाल बेईमान है, तो मुझे कतई वोट मत देना।’
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शराब घोटाले के आरोप में तिहाड़ में बंद अरविंद केजरीवाल 13 सितंबर, 2024 को जमानत पर बाहर आए। 15 सितंबर को CM पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी ईमानदारी का फैसला ‘जनता की अदालत’ पर छोड़ दिया।
यही ईमानदारी अरविंद केजरीवाल की सबसे बड़ी ताकत थी। इसी के भरोसे उन्होंने डेवलपमेंट का दिल्ली मॉडल तैयार किया। इसी का वादा करके पंजाब में सरकार बनाई, लेकिन अन्ना आंदोलन से बनी क्लीन इमेज शराब घोटाले की वजह से बर्बाद हो गई। 10 साल से लगातार बहुमत वाली सरकार चला रही AAP इस बार सिर्फ 22 सीटें जीत पाई। 48 सीटें जीतने वाली BJP 26 साल बाद दिल्ली में सरकार बनाएगी।
दैनिक NEWS4SOCIALने AAP की हार की वजहों पर एक्सपर्ट्स से बात की। इससे समझ आया कि खराब सड़कों, एंटी इनकम्बेंसी, शराब घोटाले के आरोप और बड़े नेताओं के जेल जाने की वजह से AAP को बड़ा नुकसान हुआ।
पार्टी के नेता जीत के लिए ओवर कॉन्फिडेंट थे, ये भी उन्हें भारी पड़ा। अरविंद केजरीवाल ने वोटिंग से पहले दावा किया था कि आम आदमी पार्टी को 55 सीटें मिल रही हैं। अगर माताएं-बहनें जोर का धक्का लगाएं, तो पार्टी को 60 सीटें भी मिल सकती हैं।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इसलिए हारी AAP
1. करप्शन के आरोप में बड़े नेता जेल गए, ईमानदार वाली इमेज पर दाग केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में 17 नवंबर, 2021 को नई एक्साइज पॉलिसी लागू की थी। इसमें गड़बड़ी के आरोप लगे और AAP की लीडरशिप ED-CBI के रडार पर आ गई। अगस्त 2022 में ED और CBI ने केस दर्ज किए।
मई 2022 में कैबिनेट मंत्री सत्येंद्र जैन मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में गिरफ्तार कर लिए गए। इसके बाद शराब घोटाले में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह अरेस्ट हो गए। मनीष सिसोदिया करीब 17 महीने और केजरीवाल 6 महीने जेल में रहे।
केजरीवाल जेल गए, तो आतिशी को CM बनाना पड़ा। अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता को पॉलिटिक्स में एक्टिव करने की कोशिश की गई, लेकिन ये दांव नहीं चले। एक के बाद एक बड़े लीडर्स की गिरफ्तारी से लोगों का भरोसा टूटा।
2. संगठन में टूट और बगावत आतिशी को CM बनाने के तरीके से AAP के कई विधायक खुश नहीं थे। सोर्स के मुताबिक, 30 मिनट चली मीटिंग में न नए CM के नाम पर चर्चा हुई, न सलाह मशविरा किया गया, बस फैसला सुना दिया गया।
पार्टी से बड़े दलित नेता संदीप वाल्मीकि और राजेंद्र गौतम अलग हो गए। सीनियर लीडर कैलाश गहलोत BJP में चले गए। पार्टी का संगठन टूटने लगा। कार्यकर्ता पार्टी छोड़कर BJP में जाने लगे। वोटिंग के दिन भी कई बूथ पर AAP के कार्यकर्ता नहीं दिखे।
3. हमेशा केंद्र से लड़ने और काम न करने की इमेज बनी 2015 में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली को लंदन जैसा बनाने और यमुना को टेम्स जैसा साफ बनाने का वादा किया था। बीती 27 जनवरी को उन्होंने यमुना की सफाई न हो पाने पर माफी मांगी। कहा कि कोरोना और जेल जाने की वजह से मैं सफाई, पानी और अच्छी सड़कों का काम नहीं कर पाया। अगर फिर मौका मिला, तो ये वादे पूरे करूंगा।
ग्राउंड पर कवरेज के दौरान हमने देखा कि लोग सबसे ज्यादा शिकायतें खराब सड़कों की कर रहे हैं। 2020 में हुए दंगे के असर वाली ओखला सीट पर भी सड़क और सफाई ही बड़े मुद्दे दिखे। यहां के मोहम्मद शफीक बोले, ‘सरकार से सड़क, पढ़ाई, सफाई और अस्पताल की उम्मीदें थीं। अभी ये सब नहीं मिल रहा है।’
पालम में रहने वाले ऑटो ड्राइवर प्रेमचंद कहते हैं,
केजरीवाल सरकार ने सड़कें उतनी अच्छी नहीं कीं, जितनी शीला दीक्षित की सरकार में थीं। मैं पूरी दिल्ली घूमता हूं। शीला दीक्षित के वक्त बनी सड़कें ही अब तक चल रही हैं। कोई नई सड़क नहीं बनी।
AAP लीडर्स काम न होने की बात कर पहले LG नजीब जंग और फिर वीके सक्सेना से खींचतान में उलझे रहे।
4. शराब को बढ़ावा दिया, BJP ने महिलाओं की परेशानी को मुद्दा बनाया केजरीवाल सरकार की नई एक्साइज पॉलिसी से शराब कारोबार निजी हाथों में चला गया। पॉलिसी के तहत शराब स्टोर्स को अधिकार दिए गए कि वे ग्राहकों को डिस्काउंट दे सकते हैं। इससे पहले सरकार शराब के रेट तय करती थी। इसके बाद शराब के ठेके बढ़ गए। शराब दुकानों पर एक के साथ एक बोतल फ्री मिलने लगी।
अरविंद केजरीवाल समेत AAP नेताओं ने शराब नीति का सपोर्ट किया। BJP और RSS ने वोटर्स के बीच शराब और इससे लोअर मिडिल क्लास की महिलाओं को होने वाली परेशानी को मुद्दा बनाया।
कहा कि परिवार की महिलाओं के लिए सबसे बड़ी दुश्मन शराब है। पुरुष शराब पीकर घर की महिलाओं के साथ मारपीट करते हैं, काम-धंधा छोड़ देते हैं। घर की इकोनॉमी और शांति खतरे में पड़ जाती है। अरविंद केजरीवाल के दारूवाला अवतार की तस्वीर लोगों के बीच लाई गई।
अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक गुरु कहे जाने वाले अन्ना हजारे ने भी रिजल्ट के बाद कहा कि वे (केजरीवाल) शराब और पैसे में उलझ गए। इससे उनकी इमेज खराब हुई। लोगों ने देखा कि वे चरित्र की बात करते हैं, लेकिन शराब में लिप्त रहते हैं।
5. महिलाओं के मुद्दे नहीं समझ पाई AAP AAP महिलाओं के मुद्दे समझने में गलती कर गई। उसने सबसे ज्यादा फोकस फ्री बस और 2100 रुपए देने पर किया। महिलाओं के लिए इस बार शराब के ठेके और गंदा पानी ज्यादा बड़े मुद्दे थे। पटेल नगर में बूथ के बाहर मिली एक महिला ने कहा, ‘मैं झुग्गी में रहती हूं। वहां गंदा पानी आता है। हमें पानी भरने के लिए 1.5 किमी चलकर जाना पड़ता है। फ्री बस का क्या फायदा, जब घर में पानी नहीं होगा।’
6. ‘रेवड़ी’ पर ज्यादा भरोसा अरविंद केजरीवाल ने 22 नवंबर, 2024 को ‘रेवड़ी पर चर्चा’ कैंपेन शुरू किया था। BJP आम आदमी पार्टी की योजनाओं को मुफ्त की रेवड़ी बताकर अटैक कर रही थी। अरविंद केजरीवाल ने इसी पर चुनावी कैंपेन शुरू कर दिया।
इसके तहत ट्रेंड किए गए कार्यकर्ता गली-गली गए और पूरी दिल्ली में वोटर्स के साथ करीब 65 हजार मीटिंग कीं। सरकार की मुफ्त की 6 ‘रेवड़ियों’ यानी फ्री बिजली, फ्री पानी, फ्री इलाज, फ्री पढ़ाई, फ्री बस सफर और फ्री तीर्थ योजना के पर्चे बांटे गए।
हालांकि दैनिक NEWS4SOCIALग्राउंड पर पहुंचा तो लोगों ने कहा कि सरकार हमें काम दे दे, पानी-बिजली का खर्च हम खुद उठा लेंगे। पांडव नगर में रहने वाले नवीन कहते हैं, ‘गरीबों के लिए मुफ्त की योजनाएं हैं। अमीरों को ज्यादा जरूरत नहीं, वैसे भी उनके बड़े-बड़े लोन सरकार माफ कर देती है। मरता तो मिडिल क्लास है। दिल्ली सरकार के पास मिडिल क्लास के लिए कुछ नहीं।’
AAP ने 2100 रुपए देने की बात कही तो BJP ने महिलाओं को 2500 रुपए देने का वादा कर दिया। अरविंद केजरीवाल ने 23 जनवरी को कहा कि BJP फ्री वाली योजनाएं बंद करना चाहती है। इस पर PM मोदी ने 29 जनवरी को करतारपुर की रैली में कहा कि हम योजनाएं बंद करने वालों में से नहीं हैं।
7. जाट-गुर्जरों में केजरीवाल से नाराजगी दिल्ली के 364 गांवों में से 225 में जाटों की आबादी सबसे ज्यादा है। दूसरी बड़ी आबादी गुर्जर है, जिनका 70 गांवों में दबदबा है। जाट और गुर्जर वोटर दिल्ली की करीब 50 सीटों पर असर डालते हैं। 20 सीटों पर हार-जीत का फैसला करते हैं। जाट आबादी वाली सभी 10 सीटों पर BJP को जीत मिली है।
हम कवरेज के लिए जाट और गुर्जर आबादी वाले इलाकों में गए तो यहां अरविंद केजरीवाल के लिए गुस्सा दिखा। जाट नेता कैलाश गहलोत के AAP छोड़ने को समुदाय के लोगों ने उनके अपमान की तरह देखा।
मटियाला में रहने वाले पवन की बातों में ये गुस्सा दिखा। उन्होंने कहा, ‘कैलाश गहलोत ने बताया है कि पार्टी के नेताओं ने कई घोटाले किए। 10 साल काम नहीं किया, सिर्फ LG से लड़ते रहे। अगर AAP की सरकार आ भी गई तो उनके और LG के बीच लड़ाई होती रहेगी। हम इस लड़ाई से छुटकारा चाहते हैं।’
पालम सीट पर मिले सुखबीर कहते हैं, ‘बिजली और महंगाई का मुद्दा सबसे बड़ा है। बिजली का बिल बहुत बढ़ गया है। कॉमर्शियल बिजली के रेट 8 रुपए से 22 रुपए यूनिट हो गए। घरेलू बिजली भी 6 से 8 रुपए यूनिट हो गई। बिजली कंपनियों के साथ मिलकर लोगों को लूटा जा रहा है। मिडिल क्लास वाले परेशान हैं।’
8. टॉप लीडरशिप के लिए वोटर्स में गुस्सा दैनिक NEWS4SOCIALने अरविंद केजरीवाल की सीट नई दिल्ली और मनीष सिसोदिया की सीट जंगपुरा से कवरेज की थी। अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली सीट से लगातार 3 बार से जीत रहे थे। यहां रहने वाली 40% आबादी सरकारी कर्मचारियों की है, जो साफ पानी न मिलने और गंदगी से परेशान दिखी। यही बात AAP के खिलाफ गई।
यहां का बंगाली मार्केट सबसे पुराने और मशहूर बाजारों में से है। इसे बाबर रोड के नाम से भी जाना जाता है। आस-पास पॉश कॉलोनियां हैं, जहां लगभग 4000 परिवार रहते हैं।
कवरेज के दौरान मिले शंभू कुमार बोले, ‘यहां सफाई नहीं होती। कचरा सड़क पर पड़ा रहता है। घर के बाहर पानी भर जाता है। कई बार शिकायत की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। केजरीवाल का काम अच्छा नहीं है। वो सिर्फ घोषणाएं कर रहे हैं।’
मनीष सिसोदिया 2013 से पटपड़गंज से चुनाव लड़ रहे थे। यहां लोगों में उनके लिए नाराजगी थी। पटपड़गंज में मिले सुरजीत ने बताया, ‘सिसोदिया मेरे 25 साल पुराने दोस्त रहे हैं। पिछला चुनाव लड़ने के बाद एक बार भी नहीं आए। यहां नालियों की हालत बदतर है। सफाई का काम ठीक से नहीं हो रहा।‘
2020 में AAP ये सीट सिर्फ 3207 वोट से जीते थे। इस बार यहां से अवध ओझा को उतारा था। ओझा ने 2 दिसंबर को पार्टी जॉइन की थी। वे 28 हजार से ज्यादा वोटों से हारे।
9. 24 विधायकों के टिकट काटे, एंटी इनकम्बेंसी से निपटने का दांव उल्टा पड़ा दिल्ली में लगातार 10 साल से AAP की सरकार थी। एंटी इनकम्बेंसी से बचने के लिए पार्टी ने 24 विधायकों के टिकट काट दिए। इनमें मटियाला सीट से दो बार विधायक रहे गुलाब सिंह यादव और किराड़ी सीट से दो बार के विधायक ऋतुराज झा शामिल थे। इसके बाद पार्टी में बगावत हो गई। टिकट कटने से नाराज 8 विधायक BJP में शामिल हो गए।
इसके अलावा पूर्व डिप्टी CM मनीष सिसोदिया की सीट बदल दी गई। वे जंगपुरा से चुनाव लड़े और हार गए। इस बार अरविंद केजरीवाल के मन में चुनाव को लेकर शंका थी। पार्टी नेताओं पर करप्शन के आरोप थे, तो दूसरी तरफ हरियाणा और महाराष्ट्र में BJP को चौंकाने वाली जीत मिली थी। ऐसे में दिल्ली में एंटी इनकम्बेंसी का असर आम आदमी पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता था, और यही हुआ।
10. शीशमहल का मुद्दा भुना ले गई BJP CM रहते हुए अरविंद केजरीवाल दिल्ली के सिविल लाइंस इलाके में बने घर में रहते थे। BJP ने आरोप लगाया कि इस पर 45 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। इस घर को लग्जरी होटल की तरह बनाया गया। वोटिंग से पहले BJP ने 14 मिनट का एक वीडियो जारी किया। इसमें घर के अंदर एक-एक कोना दिखाया गया।
BJP के मुताबिक, घर में 4 से 5.6 करोड़ के बॉडी सेंसर और रिमोट वाले 80 पर्दे लगे हैं। 64 लाख रुपए के 16 टीवी और 10-12 लाख रुपए की टॉयलेट सीट हैं।
RSS और BJP ने लोगों के बीच शीशमहल का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। स्ट्रैटजी के बारे में बात करते हुए RSS के एक सोर्स ने हमें बताया था, ‘हम अरविंद केजरीवाल के सारे झूठे वादे जनता के बीच लाने की तैयारी कर रहे हैं। केजरीवाल ने कहा था कि गाड़ी, बंगला और सुरक्षा नहीं लेंगे। ईमानदार हैं, जनता से पूछकर ठेका खोलेंगे। इसकी चर्चा हम उनके शीशमहल के खर्च और गाड़ियों की कीमत के साथ करेंगे।’
11. कांग्रेस के साथ चुनाव न लड़ना पड़ा भारी एंटी इनकम्बेंसी के बीच आम आदमी पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लिया। लोकसभा चुनाव में उसने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कोई सीट नहीं जीत पाई, लेकिन मुस्लिम और दलित वोट काटने में कामयाब रही। इसका फायदा BJP को हुआ।
कांग्रेस को 6% और AAP को 43% वोट मिले हैं। इन्हें जोड़ दें तो ये BJP के वोट शेयर से 4% ज्यादा है। अगर AAP और कांग्रेस का गठबंधन हो जाता, तो BJP के लिए बड़ी चुनौती होती। इसके अलावा कांग्रेस ने AAP के खिलाफ प्रचार में कोई कमी नहीं छोड़ी। मुस्लिम आबादी वाली सीटों पर AAP के मुस्लिम उम्मीदवार के सामने कांग्रेस ने मुस्लिम चेहरा मैदान में उतारा। इसका फायदा BJP को मिला।
एक्सपर्ट बोले: केजरीवाल की गिरफ्तारी ने AAP को कमजोर किया सीनियर जर्नलिस्ट शेखर गुप्ता कहते हैं, ‘1984 के चुनावों में BJP को सिर्फ 2 सीटें मिली थीं, लेकिन कार्यकर्ता पार्टी से नहीं गए, क्योंकि विचारधारा मजबूत थी। AAP की कोई स्थायी विचारधारा नहीं थी। गुजरात, हिमाचल, गोवा जैसे राज्यों में AAP कांग्रेस का वोट काटने पर ज्यादा फोकस कर रही थी। इससे वह खुद कमजोर हो गई।’
‘कोई भी पार्टी लंबे समय तक बिना ठोस विचारधारा के नहीं टिक सकती। AAP की विचारधारा मुफ्त सुविधाओं तक सीमित रही, जो दूसरी पार्टियां उससे भी ज्यादा दे सकती हैं। सिर्फ यह कहना पर्याप्त नहीं होता कि हम ईमानदार हैं या हमारा नेता अच्छा है।’
‘पार्टी ने हिंदूवादी छवि बनाने की कोशिश की, लेकिन वह BJP और RSS से ज्यादा हिंदूवादी नहीं हो सकती थी। दूसरी ओर वह पूरी तरह से सेक्युलर भी नहीं हो पाई। दिल्ली दंगों के समय पार्टी ने मजबूत स्टैंड नहीं लिया।’
शेखर गुप्ता कहते हैं, ‘महिलों को फ्री बस का टिकट देना एक बात है, लेकिन दिल्ली में बसों की कमी है। शीला दीक्षित के समय जितनी बसे थीं, अब भी उतनी ही हैं। महिलाओं का वोट AAP को मिला है, लेकिन वोट परसेंटेज में कटौती हुई है।’
‘हनुमान चालीसा और तीर्थ यात्रा जैसे हिंदूवादी तरीके काम नहीं आए’ सीनियर जर्नलिस्ट पंकज पचौरी कहते हैं, ‘आम आदमी पार्टी को लग रहा था कि वे BJP की जेरॉक्स कॉपी बनकर चुनाव जीत जाएंगे। यह संभव नहीं है क्योंकि ओरिजिनल पार्टी सामने है। हनुमान चालीसा और बुजुर्गों को तीर्थ यात्रा पर भेजने जैसे हिंदूवादी तरीके इनके फेवर में नहीं गए। जनता ने उन्हें साफ राजनीति के लिए सत्ता में बिठाया था। जनता ने उसे वोट दिया, जो बड़ा हिंदूवादी नेता है।’
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