राजधानी और आसपास के औद्योगिक क्षेत्रों में करीब 1500 छोटे उद्योग संचालित | 90 thousand have got employment directly and indirectly | Patrika News h3>
इनसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर 90 हजार लोग जुड़े हैं। लेकिन तमाम इकाईयों में आज भी पीने के पानी संकट है। औद्योगिक पानी का अभाव तो है ही। भोपाल शहर के आसपास विकसित इंडस्ट्रियल एरिया में सार्वजनिक परिवहन की सुविधा नहीं है। इससे श्रमिकों को कार्यस्थल तक आने-जाने में परेशानी होती है। उद्यमियों का कहना है कि कोरोना के दौरान प्रोडक्शन क्षमता 20 फीसदी घट गई थी। श्रमिक और ट्रेंड कर्मचारी पलायन कर गए। अब भी कई उद्योग श्रम शक्ति की कमी से जूझ रहे हैं।
समय से नहीं मिलती राशि
वर्ष 2006 में स्माल स्केल इंडस्ट्री (एसएसआई) की नाम बदलकर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) हो गया। लेकिन सिर्फ नाम ही बदला। दुश्वारियां कम नहीं हुईं। उद्यमियों को बैंकों से ऋण, ज्यादा टैक्स और प्रोडक्ट की डिलीवरी के बाद भी समय से भुगतान नहीं मिल रहा।
ऑनलाइन सिस्टम होने के बाद भी फिजिकल वैरिफिकेशन का क्लॉज जारी है। उद्योगों से प्रॉपर्टी टैक्स लिया जा रहा है। टेक्नोलॉजी अपग्रेड नहीं हो पा रही। गोङ्क्षवदपुरा इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष अमरजीत ङ्क्षसह बताते हैं फैक्ट्री एरिया में अतिक्रमण है। पीने के पानी की समस्या है। उपाध्यक्ष मदन गुर्जर बताते हैं, भुगतान समय पर नहीं होने से छोटी इकाईयों के काम प्रभावित होता है।
एमएसएमई का योगदान
एमएसएमई की प्रोडक्शन में सहभागिता 45 प्रतिशत से अधिक है। भोपाल और आसपास की इकाइयों में करीब 90 हजार लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला है। पावर सेक्टर, मशीनरी, पैकेङ्क्षजग, इंजीनियङ्क्षरग, ऑटोमोबाइल, फार्मा और फूड प्रोसेङ्क्षसग से जुड़ी इकाइयां लगी हैं।
बैंकों से मिलता है 17.2 प्रतिशत लोन
उद्यमियों का कहना है कि जहां बड़ी इकाइयों को बैंक जहां 83 प्रतिशत तक लोन देते हैं वहीं छोटी इकाइयों को 17.2 प्रतिशत तक ही लोन मिलता है। इससे प्रोडक्शन पर असर पड़ता है।
कहानी संघर्ष की….
केस- 1 : कोरोना में भी काम किया
कोरोनाकॉल में सबसे बड़ा संकट देखा। कई उद्योगों में ताले लग गए। कच्चे माल (रॉ मटेरियल) की कमी हो गयी। भाड़ा बढ़ गया फिर भी वाहन नहीं थे। टेंरड लेबर चले गए जो अब तक नहीं लौटे।
– विपिन जैन, मप्र स्माल स्केल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन
केस-2 : लोन के लिए प्रॉपर्टी गिरवी
पहले भी बैंक लोन देने में आनाकानी करते थे। लोन के लिए प्रॉपर्टी गिरवी रखनी पड़ती थी। सर्टिफाइड ग्रीन केमिकल बनाने वाली कंपनी की मैं पहली भारतीय महिला इंटरप्रेन्योर हूं।
– अर्चना भटनागर, अध्यक्ष मप्र एसो. ऑफ वूमन एंटरप्रेन्योर
यह काम हों तो सुधरे हालात
– टैक्स रेट कम हो ताकि कच्चा माल सस्ता मिल सके।
– श्रमिकों की कमी दूर हो तो प्रोडॅक्शन बढ़े।
– उद्योगों में फिजिकल वैरिफिकेशन बंद हो।
– छत्तीसगढ़ की तरह उद्योगों को जमीनें फ्री होल्ड हों।
– शासकीय स्वामित्व के बावजूद प्रॉपर्टी टैक्स लेना बंद हो।
इनसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर 90 हजार लोग जुड़े हैं। लेकिन तमाम इकाईयों में आज भी पीने के पानी संकट है। औद्योगिक पानी का अभाव तो है ही। भोपाल शहर के आसपास विकसित इंडस्ट्रियल एरिया में सार्वजनिक परिवहन की सुविधा नहीं है। इससे श्रमिकों को कार्यस्थल तक आने-जाने में परेशानी होती है। उद्यमियों का कहना है कि कोरोना के दौरान प्रोडक्शन क्षमता 20 फीसदी घट गई थी। श्रमिक और ट्रेंड कर्मचारी पलायन कर गए। अब भी कई उद्योग श्रम शक्ति की कमी से जूझ रहे हैं।
समय से नहीं मिलती राशि
वर्ष 2006 में स्माल स्केल इंडस्ट्री (एसएसआई) की नाम बदलकर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) हो गया। लेकिन सिर्फ नाम ही बदला। दुश्वारियां कम नहीं हुईं। उद्यमियों को बैंकों से ऋण, ज्यादा टैक्स और प्रोडक्ट की डिलीवरी के बाद भी समय से भुगतान नहीं मिल रहा।
ऑनलाइन सिस्टम होने के बाद भी फिजिकल वैरिफिकेशन का क्लॉज जारी है। उद्योगों से प्रॉपर्टी टैक्स लिया जा रहा है। टेक्नोलॉजी अपग्रेड नहीं हो पा रही। गोङ्क्षवदपुरा इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष अमरजीत ङ्क्षसह बताते हैं फैक्ट्री एरिया में अतिक्रमण है। पीने के पानी की समस्या है। उपाध्यक्ष मदन गुर्जर बताते हैं, भुगतान समय पर नहीं होने से छोटी इकाईयों के काम प्रभावित होता है।
एमएसएमई का योगदान
एमएसएमई की प्रोडक्शन में सहभागिता 45 प्रतिशत से अधिक है। भोपाल और आसपास की इकाइयों में करीब 90 हजार लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला है। पावर सेक्टर, मशीनरी, पैकेङ्क्षजग, इंजीनियङ्क्षरग, ऑटोमोबाइल, फार्मा और फूड प्रोसेङ्क्षसग से जुड़ी इकाइयां लगी हैं।
बैंकों से मिलता है 17.2 प्रतिशत लोन
उद्यमियों का कहना है कि जहां बड़ी इकाइयों को बैंक जहां 83 प्रतिशत तक लोन देते हैं वहीं छोटी इकाइयों को 17.2 प्रतिशत तक ही लोन मिलता है। इससे प्रोडक्शन पर असर पड़ता है।
कहानी संघर्ष की….
केस- 1 : कोरोना में भी काम किया
कोरोनाकॉल में सबसे बड़ा संकट देखा। कई उद्योगों में ताले लग गए। कच्चे माल (रॉ मटेरियल) की कमी हो गयी। भाड़ा बढ़ गया फिर भी वाहन नहीं थे। टेंरड लेबर चले गए जो अब तक नहीं लौटे।
– विपिन जैन, मप्र स्माल स्केल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन
केस-2 : लोन के लिए प्रॉपर्टी गिरवी
पहले भी बैंक लोन देने में आनाकानी करते थे। लोन के लिए प्रॉपर्टी गिरवी रखनी पड़ती थी। सर्टिफाइड ग्रीन केमिकल बनाने वाली कंपनी की मैं पहली भारतीय महिला इंटरप्रेन्योर हूं।
– अर्चना भटनागर, अध्यक्ष मप्र एसो. ऑफ वूमन एंटरप्रेन्योर
यह काम हों तो सुधरे हालात
– टैक्स रेट कम हो ताकि कच्चा माल सस्ता मिल सके।
– श्रमिकों की कमी दूर हो तो प्रोडॅक्शन बढ़े।
– उद्योगों में फिजिकल वैरिफिकेशन बंद हो।
– छत्तीसगढ़ की तरह उद्योगों को जमीनें फ्री होल्ड हों।
– शासकीय स्वामित्व के बावजूद प्रॉपर्टी टैक्स लेना बंद हो।