मप्र के इस जिले में प्राकृतिक कॉरीडोर सिमटा, खतरे में तेंदुए | Natural corridor reduced in jabalpur district of MP, leopards in dange | Patrika News h3>
बदइंतजामी
वन्य जीवों की मौत के बाद शिकारियों तक पहुंचता है वन विभाग
हाल ही में तेंदुए का एक शावक मझौली के जंगल में घायल अवस्था में मिला था। उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से पता चला कि उसे कुत्तों से होने वाली घातक बीमारी केनाइन डिस्टेंपर थी। इस शावक जैसे अधिकतर तेंदुए खतरे की जद में हैं। जिले में वन्य प्राणियों के आवागमन का प्राकृतिक कॉरीडोर सिमटता जा रहा है। इनके क्षेत्र में शिकारियों की गतिविधियां बढ़ रही हैं। जिले में तेंदुओं के शिकार का ग्राफ भी बढ़ा है। बीते तीन साल में जिले में 6 तेंदुओं की मौत हुई है। इनमें से दो तेंदुए फंदा लगने व दो तेंदुए शिकार के लिए बिछाए गए करंट से मृत हुए। विशेषज्ञों के अनुसार जंगल में वन भूमि के आसपास वैध व अवैध खनन व शहर से लगे क्षेत्र में निर्माण से ये एक जगह बंध कर रह गए हैं।
जंगली हाथी का भी शिकार
जिले में मंडला से भटककर आए जंगली हाथी तक का शिकार हो चुका है। जंगल में शिकार के लिए बिछाए गए बिजली के नंगे तार में वह ऐसा फंसा कि फिर उठ नहीं सका। जबलपुर शहर में दो साल में जिन चार तेंदुओं की मौत हुई है। उनमें से दो फंदा व करंट लगने के कारण मारे गए थे। बरेला वन क्षेत्र व सिहोरा वन क्षेत्र में भी दो घटनाएं हुई थी। जिसमें करंट से तेंदुए की मौत हुई थी।
जिले में हैं 80 से ज्यादा तेंदुए
सूत्रों के अनुसार जिले में अभी 80 से 90 के बीच तेंदुए हो सकते हैं। हालांकि इसका अधिकृत रेकॉर्ड वन विभाग के अफसरों के पास नहीं है। जनवरी-फरवरी में राज्य वन अनुसंधान परिषद की निगरानी में जिले में वन्य प्राणियों की गणना हुई थी। इसका डेटा जांच के बाद अप्रेल माह में भारतीय वन्य जीव संगठन देहरादून को भेज दिया गया है। जहां से फाइनल रिपोर्ट आनी है।
यह था प्राकृतिक कॉरीडोर
सेवानिवृत्त वन अफसर रजनीश पांडे के अनुसार जबलपुर में तेंदुए बड़ी संख्या में है पंरतु अब संकट इनके प्राकृतिक रहवास क्षेत्र के सिमटने का है। ग्रामीण क्षेत्रों के जंगलों में खनन व शहर के जंगल व आसपास के क्षेत्रों में हुए निर्माण कार्यो के कारण यहां पर तेंदुओं का आवागमन बाधित हुआ है। जबकि शहरी क्षेत्र में डुमना नेचर रिजर्व, रक्षा संस्थानों ईडीके के घने जंगल, अमझर घाटी, तिलहरी के वन क्षेत्र में तेंदुए रहते हैं। पहले ये नेचर रिजर्व से खंदारी जलाशय के किनारे होते हुए ग्वारीघाट, भटौली, शाहनाला होते हुए बरगी हिल्स के पास नया गांव के जंगल होते हुए तिलवारा के जंगल तक भ्रमण करते थे।
तेंदुए सहित अन्य वन्य जीवों की निगरानी के लिए बीट प्राणाली कार्यरत है। बीट गार्ड इनके मूवमेंट पर नजर रखते हैं। ऐसे क्षेत्र जहां तेंदुओं का मूवमेंट बढ़ता है वहां पर ट्रैप कैमरे लगाकर निगरानी की जाती है।
– अखिलेश बंसल, वनमंडल अधिकारी
बदइंतजामी
वन्य जीवों की मौत के बाद शिकारियों तक पहुंचता है वन विभाग
हाल ही में तेंदुए का एक शावक मझौली के जंगल में घायल अवस्था में मिला था। उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से पता चला कि उसे कुत्तों से होने वाली घातक बीमारी केनाइन डिस्टेंपर थी। इस शावक जैसे अधिकतर तेंदुए खतरे की जद में हैं। जिले में वन्य प्राणियों के आवागमन का प्राकृतिक कॉरीडोर सिमटता जा रहा है। इनके क्षेत्र में शिकारियों की गतिविधियां बढ़ रही हैं। जिले में तेंदुओं के शिकार का ग्राफ भी बढ़ा है। बीते तीन साल में जिले में 6 तेंदुओं की मौत हुई है। इनमें से दो तेंदुए फंदा लगने व दो तेंदुए शिकार के लिए बिछाए गए करंट से मृत हुए। विशेषज्ञों के अनुसार जंगल में वन भूमि के आसपास वैध व अवैध खनन व शहर से लगे क्षेत्र में निर्माण से ये एक जगह बंध कर रह गए हैं।
जंगली हाथी का भी शिकार
जिले में मंडला से भटककर आए जंगली हाथी तक का शिकार हो चुका है। जंगल में शिकार के लिए बिछाए गए बिजली के नंगे तार में वह ऐसा फंसा कि फिर उठ नहीं सका। जबलपुर शहर में दो साल में जिन चार तेंदुओं की मौत हुई है। उनमें से दो फंदा व करंट लगने के कारण मारे गए थे। बरेला वन क्षेत्र व सिहोरा वन क्षेत्र में भी दो घटनाएं हुई थी। जिसमें करंट से तेंदुए की मौत हुई थी।
जिले में हैं 80 से ज्यादा तेंदुए
सूत्रों के अनुसार जिले में अभी 80 से 90 के बीच तेंदुए हो सकते हैं। हालांकि इसका अधिकृत रेकॉर्ड वन विभाग के अफसरों के पास नहीं है। जनवरी-फरवरी में राज्य वन अनुसंधान परिषद की निगरानी में जिले में वन्य प्राणियों की गणना हुई थी। इसका डेटा जांच के बाद अप्रेल माह में भारतीय वन्य जीव संगठन देहरादून को भेज दिया गया है। जहां से फाइनल रिपोर्ट आनी है।
यह था प्राकृतिक कॉरीडोर
सेवानिवृत्त वन अफसर रजनीश पांडे के अनुसार जबलपुर में तेंदुए बड़ी संख्या में है पंरतु अब संकट इनके प्राकृतिक रहवास क्षेत्र के सिमटने का है। ग्रामीण क्षेत्रों के जंगलों में खनन व शहर के जंगल व आसपास के क्षेत्रों में हुए निर्माण कार्यो के कारण यहां पर तेंदुओं का आवागमन बाधित हुआ है। जबकि शहरी क्षेत्र में डुमना नेचर रिजर्व, रक्षा संस्थानों ईडीके के घने जंगल, अमझर घाटी, तिलहरी के वन क्षेत्र में तेंदुए रहते हैं। पहले ये नेचर रिजर्व से खंदारी जलाशय के किनारे होते हुए ग्वारीघाट, भटौली, शाहनाला होते हुए बरगी हिल्स के पास नया गांव के जंगल होते हुए तिलवारा के जंगल तक भ्रमण करते थे।
तेंदुए सहित अन्य वन्य जीवों की निगरानी के लिए बीट प्राणाली कार्यरत है। बीट गार्ड इनके मूवमेंट पर नजर रखते हैं। ऐसे क्षेत्र जहां तेंदुओं का मूवमेंट बढ़ता है वहां पर ट्रैप कैमरे लगाकर निगरानी की जाती है।
– अखिलेश बंसल, वनमंडल अधिकारी