ब्लैकबोर्ड-महाकुंभ में दुकान का कर्ज बीवी के गहने बेचकर उतरेगा: प्रशासन ने कहा था बहुत सेल होगी, अब मार्केट का रास्ता ही बंद कर दिया

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ब्लैकबोर्ड-महाकुंभ में दुकान का कर्ज बीवी के गहने बेचकर उतरेगा:  प्रशासन ने कहा था बहुत सेल होगी, अब मार्केट का रास्ता ही बंद कर दिया

ब्लैकबोर्ड-महाकुंभ में दुकान का कर्ज बीवी के गहने बेचकर उतरेगा: प्रशासन ने कहा था बहुत सेल होगी, अब मार्केट का रास्ता ही बंद कर दिया

मेरी बेटी की अगले महीने मार्च में शादी है। महाकुंभ में इस आस से दुकान लगाई थी कि शादी का खर्च निकल जाएगा, लेकिन सारे सपने टूट गए। यहां दुकान लगाने के लिए 30 लाख का कर्ज लिया और 15 जनवरी से अब तक केवल 4 लाख की कमाई हुई है। शादी के लिए 20-25 लाख की डिम

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ये कहते ही सुरेश की आंखों से भरभराकर आंसू बहने लगते हैं। कुछ देर थमकर आंसू पोंछते हुए कहते हैं, अब तो लगता है घर-जमीन बेचकर ही शादी करनी पड़ेगी। शादी तो करनी है, चाहे और कर्ज सिर चढ़ जाए। एक ही बेटी है, सोचा था किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा। अब तो बस गंगा मइया ही सहारा हैं, उन्हीं के भरोसे आए हैं वही पार लगाएंगी।

ब्लैकबोर्ड में आज कहानी उन व्यापारियों की जो महाकुंभ के सबसे पॉश मार्केट त्रिवेणी बाजार में आते ही कंगाल हो गए…

इलाके का सबसे पॉश मार्केट त्रिवेणी बाजार में घुसते ही लगा कि कुंभ क्षेत्र का कोई इलाका इतना शांत कैसे हो सकता है। यहां लोगों की चहलकदमी सबसे कम है। ज्यादातर दुकानें खाली पड़ी हैं। कुछ दुकानों पर एक-दो ग्राहक दिख रहे हैं। मेरी नजर एक दुकानदार पर पड़ी जो गुमसुम बैठे थे। उनके पास जाकर यहां की स्थिति को समझना चाहा।

प्रयागराज के कुंभ क्षेत्र का पॉश मार्केट है त्रिवेणी बाजार।

महाकुंभ में दुकान लगाने के लिए बोली लगती है और व्यापारी अपनी सामर्थ्य के हिसाब से दुकान किराए पर लेते हैं। सुरेश बताते हैं कि दुकान नंबर 61,62,63 और 64 के लिए करीब 15 लाख रुपए दिए थे। जिसमें GST भी शामिल है। जिस तरह का प्रोटोकॉल बनाया गया, उसमें सारे रास्ते ब्लॉक कर दिए गए। पब्लिक के पास यहां आने का कोई रास्ता ही नहीं है।

सुरेश कहते हैं कि मैंने पिछले चार कुंभ में दुकान लगाई है। कुंभ में दो चार घंटे के लिए रास्ता बंद होता था, बाद में उसे खोल दिया जाता था। इस बार ऐसा नहीं है, जो रास्ता बंद है, वो बंद ही है। अगर सामान घट जाए तो माल लाने की भी कोई सुविधा नहीं है।

हरिद्वार के रहने वाले सुरेश कुमार गुप्ता की त्रिवेणी बाजार में गर्म कपड़े की चार दुकानें हैं।

मैंने पूछा-आप लोगों को कोई पास नहीं दिया गया? सुरेश कहते हैं सिर्फ बाइक का पास दिया गया है। भला बाइक पर माल कैसे आएगा। अगर दुकानदार इतनी महंगी दुकान ले रहा है तो सरकार को भी उनके लिए सोचना चाहिए। जैसे-तैसे 70 लाख का माल लेकर आया हूं, लेकिन यहां कुछ नहीं बिका। मुश्किल से 4 से 5 लाख का माल बिका है। ये कहते ही सुरेश का गला भर आता है।

कुछ देर रुककर सुरेश कहते हैं अभी तक सारा माल रखा हुआ है। 10 लोगों का स्टाफ है। किसी की सैलरी 20 हजार है तो किसी की 25 हजार। जब माल ही नहीं बिकेगा तो सैलरी कैसे दूंगा। इनके रहने-खाने का भी देखना है। मेरा एक दिन का खर्च लगभग 90 हजार है और कमाई 20-25 हजार। इस कमाई से खर्च कैसे निकालूंगा।

घर से फोन आता है तो कहता हूं सब बढ़िया है, लेकिन बेटी की शादी की फिक्र बहुत सताती है। अगले ही महीने उसकी शादी है, पता नहीं सब कैसे होगा। पब्लिक दुकान तक नहीं पहुंच पा रही है। जिस तरीके से ये रास्ता बंद कर रखा है, हमारा धंधा चौपट हो गया।

सुरेश कहते हैं त्रिवेणी बाजार के व्यापारियों के लिए अलग गाइडलाइन्स होनी चाहिए थी।

मेला व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए सुरेश कहते हैं कि योगी जी से कोई शिकायत नहीं है। बस यहां की व्यवस्था अच्छी होती तो व्यापारी खुश होते। जो गाइडलाइन तय हुई, वो व्यापार करने के लिए ठीक नहीं है।

कुछ दुकानों की तरफ इशारा करते हुए वो बताते हैं कि यही कारण है कि इस बार बहुत सी दुकानें खाली रह गईं। शौचालय में बहुत गंदगी है। नल में जो पानी आता है वही पीना है, उसी से नहाना है, खाना बनाना है। सरकार ने पैसे तो पूरे लिए, लेकिन व्यापारियों के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं है।

त्रिवेणी बाजार में जितनी दुकानें हैं, इससे कहीं ज्यादा यहां के व्यापारियों की कहानियां हैं। राकेश कुमार सोनी बुंदेलखंड से हैं। पिछले 30 साल यानी चार कुंभ से लगातार रत्न और रुद्राक्ष की दुकान लगा रहे हैं।

त्रिवेणी बाजार में राकेश कुमार सोनी ने कर्ज लेकर रत्न और रुद्राक्ष की दुकान लगाई है।

महाकुंभ में अपने व्यापार के बारे में वो कहते हैं कि इस बार मार्केट बहुत डाउन है। अभी तक जितना लगा है, उसका एक परसेंट भी नहीं निकल पाया। मैंने 2 लाख 85 हजार की बोली में ये दुकान ली है। हर कुंभ में कारोबार अच्छा होता था। इस बार तो महाकुंभ है, ये सोचकर लगा बहुत मुनाफा होगा। अब यहां जो हालात हैं उन्हें देखकर लगता है, घाटे में ही यहां से जाना होगा। मार्केट से कर्ज लेकर दुकान लगाई है।

इस बार कारोबार नहीं चलने की वजह क्या है? राकेश बताते हैं कि इस महाकुंभ में पब्लिक को सीधे रास्ते लाने की बजाय घुमाकर एंट्री दी गई। लोग चलकर इतना थक जाते हैं कि स्नान के बाद उनमें कहीं रुकने या दुकानदारी करने की हिम्मत नहीं बचती। मेला क्षेत्र से निकलकर लोग किसी ऐसी जगह जाना चाहते हैं, जहां आराम भी मिले और घर जाने में आसानी भी हो।

राकेश कहते हैं अब किसी भी तरह से लागत निकाल पाना नामुमकिन है।

हम तो गंगा मइया के भरोसे आए थे, लेकिन लगता है खाली हाथ ही घर जाना पड़ेगा। यहां से जाने के बाद बीवी के गहने बेचकर कर्ज उतारना पड़ेगा। एक महीना बीत गया, जब कुछ कमाई नहीं हुई तो बाकी बचे 15 दिन में क्या निकलेगा। अभी तक तो जो सरकार को यहां पर दुकान लगाने के पैसे दिए हैं, उतने पैसे की बिक्री भी नहीं हुई।

महाकुंभ में आ रही भीड़ पर राकेश कहते हैं कि इस बार भीड़ की कोई सीमा नहीं है। इससे पहले किसी कुंभ में इतने लोग नहीं आए। पहले तो विशेष दिन ही ज्यादा भीड़ होती थी, लेकिन इस बार हर दिन इतनी भीड़ है जिसकी कोई गिनती नहीं।

फिर भी दुकानों में रौनक नहीं है। ग्राहक दुकान की देहरी भी नहीं चढ़ते। लोग पैदल चलकर इतना थक जाते हैं कि उन्हें बस या रेलवे स्टेशन ही दिखता है। अगर मैं अपने साथ 10 किलो आटा न रखूं तो मुझे होटल में खाना पड़ेगा, क्योंकि आटा लाने में ही मेरा आधा दिन निकल जाएगा।

त्रिवेणी बाजार की दुकानों पर ग्राहक कम ही दिखाई देते हैं।

मेला क्षेत्र से दारागंज की दूरी महज 3 किलोमीटर है। वहां जाने के लिए मुझे अब 15 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। कुंभ से शहर जाने के लिए कोई साधन नहीं मिलता। जिस प्रकार से महाकुंभ मेले का महिमामंडन हुआ, प्रचार-प्रसार हुआ, लोग तो आए, लेकिन कारोबार के लिहाज से माघ मेले से भी बेकार है।

घरवालों को उम्मीद है कि घर से बाहर कमाने आया हूं तो बढ़िया पैसे कमाकर लौटूंगा। बीवी की कॉल आती है तो कह देता हूं काम बढ़िया चल रहा है। उन्हें टेंशन देना सही नहीं है। मेरी दुकान में दो स्टाफ हैं, उनका खाना-पीना और दुकान का किराया मिलाकर हर रोज 14-15 हजार खर्च हो रहे हैं।

त्रिवेणी बाजार में दुकान के सामने बने वॉशरूम।

30 साल में पहली बार मेरे आंसू निकल रहे हैं। गंगा मइया ने हर बार यहां से झोली भरकर ही भेजा है। पता नहीं ये मेरी नाकामी है या मेरी बदकिस्मती, पहली बार यहां से खाली हाथ वापस जा रहा हूं। अब बचे हुए दिन में मेरा कुछ नहीं निकलेगा, इतना कहते ही नरेश चश्मा उतारकर अपने आंसू पोंछते हैं।

31 साल के निष्कर्ष प्रयागराज के रहने वाले हैं। वो बताते हैं कि महाकुंभ के प्रचार-प्रसार में बताया गया कि यहां 40 करोड़ से ज्यादा लोग आने वाले हैं। हमने भी यहां बिजनेस करने का प्लान किया। बोली लगाकर हमने भी किराए की एक दुकान ले ली। जिसमें चाइनीज इलेक्ट्रॉनिक सामान बेचते हैं। यहां पहले दिन से हमें परेशानियां हो रही हैं।

निष्कर्ष कहते हैं कि हम शिकायत करके थक गए, लेकिन किसी ने नहीं सुनी।

सरकार ने जो मैप हमें दिखाया था, उसमें मेरी दुकान के सामने वॉशरूम नहीं थे। जब मार्केट सजा तो दुकान से महज 20 मीटर की दूरी पर वॉशरूम बना दिए। अब पूरा दिन बदबू आती है। हमें ये नहीं बताया गया था कि रोड भी बंद कर दिए जाएंगे।

मेला प्राधिकरण ने हमसे तमाम तरह के झूठे वादे किए। जैसे बिजली का बोर्ड दिया जाएगा, फ्लोर पर मैटिंग्स डाली जाएगी। यहां CCTV कैमरा नहीं है, सिक्योरिटी गार्ड्स नहीं हैं। हम ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। मेरी सरकार से ये विनती है कि हमने जो पैसा लगाया है, वो वापस किया जाए।

निष्कर्ष कहते हैं कि यहां दुकान लेने के बाद मैं 4 लाख के नुकसान में हूं। पैसे उधार लेकर ये बिजनेस किया। महीना बीत गया और अब तक 10 परसेंट कॉस्ट भी रिकवर नहीं हो पाई। यहां 70 की 70 दुकानें 100 परसेंट लॉस में हैं। अब तो यही समझ नहीं आ रहा कि मार्केट से उठाए पैसे कैसे वापस करूंगा।

निष्कर्ष कहते हैं कि जो मैप सरकार ने दिखाया था, उसमें दुकान के सामने वॉशरूम नहीं था।

मार्केट फेल क्यों हुआ, इस सवाल का जवाब देते हुए निष्कर्ष कहते हैं कि ये पॉश मार्केट है, हर साल मेले की सबसे ज्यादा फुटफॉल वाली जगह है। मेला प्राधिकरण ने इस मार्केट की तरफ आने वाले रास्ते बंद कर दिए। रही-सही कसर इस मार्केट को घेरकर रखने वाले इलीगल वेंडर्स ने पूरी कर दी। जिसकी वजह से ये मार्केट दिखता ही नहीं। मेला प्राधिकरण के मिस मैनेजमेंट के चलते मेरा बिजनेस फेल हो गया। हमने प्रोडक्ट के प्राइस बहुत ही रीजनेबल रखे हैं, लेकिन माल तभी बिकेगा जब कोई खरीदने वाला आएगा।

लखनऊ से आए वरुण कलवानी ने अपने दोस्त के साथ चिकनकारी सूट और बनारसी साड़ियों की दुकान लगाई। वरुण कहते हैं हम सितंबर से ही तैयारी में जुटे थे। हमने दोस्तों और मार्केट से 20-22 लाख लेकर इस कुंभ से ही स्टार्ट अप की शुरुआत की। अपनी लागत का अभी तक 10 परसेंट भी नहीं निकाल पाए हैं।

वरुण कलवानी कहते हैं मार्केट के सारे दुकानदार खाली बैठे हैं।

इस मार्केट का नाम पहले मीना बाजार हुआ करता था। ये माघ मेले में भी पॉश थी, अर्धकुंभ में भी पॉश थी, लेकिन महाकुंभ में करोड़ों श्रद्धालुओं के आने के बाद भी फेल हो गई।

हम 400 साल पुरानी लखनवी चिकनकारी को इंटरनेशनल मेले में लेकर आए, ताकि अपने ट्रेडिशन को आगे बढ़ा सकें। अगर पब्लिक का थोड़ा भी फुटफॉल होता तो इस बाजार की रौनक अलग ही होती है। अभी शाम के साढ़े सात बज रहे हैं, लेकिन मार्केट में ग्राहक ही नहीं हैं।

वरुण कलवानी कहते हैं- ये मार्केट पूरी तरह से फेल हो चुकी है।

35 साल के आशीष पांडेय ने भी त्रिवेणी बाजार में ढाई लाख लगाकर एक स्टॉल लिया। स्टॉल के इंटीरियर में 60 हजार लग गए। आशीष का एंटीक आइटम का बिजनेस है।

आशीष कहते हैं, मेला प्राधिकरण ने हमसे वादा किया था कि बाजार में भीड़ बहुत ज्यादा होगी, सेल अच्छी होगी, लेकिन पहले दिन से ही सन्नाटा है। मेला प्राधिकरण ने रोड ब्लॉक करके रूट डायवर्ट कर दिया। जिस वजह से लोग इस मार्केट तक पहुंच ही नहीं पाए। मेरी दुकान में 25 लाख का माल है, मुश्किल से 15 हजार की सेल हुई।

हाथ में टीशर्ट और कैप लेकर दिखाते हुए आशीष बताते हैं कि महाकुंभ की कस्टमाइज्ड टी-शर्ट और कैप दिल्ली से प्रिंट करवा कर लाया था। कुंभ में बिके नहीं, अब इनका क्या करूंगा। सामान लाने-ले जाने के लिए पर्सनल गाड़ियों के पास दिए थे, लेकिन वो भी वैलिड नहीं हैं।

आशीष कहते हैं हमारे पास कुंभ की ब्रांडिंग के साथ लाखों का सामान है, जो बेकार हो गया।

पुलिस वाले गाड़ियों की एंट्री रोक देते हैं। मार्केट की निगरानी के लिए पुलिस भी नहीं है। हमें कुछ भी होता है तो ज़िम्मेदारी हमारी है। प्रशासन का हमसे कोई लेना-देना नहीं। अभी कुछ दिनों पहले दो लड़के यहां से जीन्स चोरी कर भाग रहे थे, हम उन्हें पकड़ने भागे तो पीछे से एक और लड़का जीन्स लेकर चलता बना। अब तो आलम ये है कि मैं शॉप को बेचकर किराया निकालने की कोशिश कर रहा हूं।

जयपुर से आए जय ने बोली में इस मार्केट की सबसे महंगी दुकान खरीदी। कॉर्नर में गेट के पास होने की वजह से जय को लगा था कि अच्छी बिक्री होगी। इसलिए उन्होंने 6 लाख 30 हजार देकर ये जगह ली।

जय कहते हैं कि आज ऐसी शॉप बस 1 लाख में मिल रही है। हमारा पूरा माल बचा हुआ है, अभी तक 2 लाख का माल भी नहीं बिका। अभी तो ये सोच रहा हूं कि सारा माल कैसे वापस ले जाऊंगा। इसके ट्रांसपोर्टेशन के लिए भी 1 लाख चाहिए। मेरी सरकार से विनती है कि बेस प्राइस काटकर हमारा रिफंड दिया जाए।

महाकुंभ के पॉश मार्केट त्रिवेणी बाजार में कई दुकानें खाली हैं।

मैंने घर के कागज रखकर ये दुकान ली और अब लॉस में हूं। शॉप पर चार वर्कर हैं जिनकी 15 हजार सैलरी है। दो हजार रोज का खर्चा है और हमारे खाने-पीने-रहने की कोई व्यवस्था नहीं है। शौचालय इतने गंदे हैं कि इस्तेमाल भी नहीं कर सकते। जय कहते हैं कि अब जीवन में यहां कभी नहीं आऊंगा।

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