ब्लैकबोर्ड-कुंभ भगदड़ में मां मरीं, लेकिन लिस्ट में नाम नहीं: मुआवजा भी नहीं मिला; भगदड़ में फंसी तो कई लोग बदतमीजी भी करने लगे h3>
‘’मां कुंभ नहाने गई थी। भगदड़ में उनकी जान चली गई। सरकार की तरफ से डेड बॉडी मिली। उस पर 5 नंबर लिखा हुआ था। शव का पंचनामा किया गया। अंतिम संस्कार के वक्त एक पुलिस कॉन्स्टेबल भी साथ था। इसके बावजूद सरकार की तरफ से जारी 30 मृतकों की लिस्ट में मां का ना
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इतना कहते-कहते प्रयागराज की रहने वालीं सौम्या श्रीवास्तव बिलखने लगती हैं। 28 जनवरी को कुंभ में मची भगदड़ में उनकी मां की जान चली गई थी।
ब्लैकबोर्ड में आज कहानी उन परिवारों की, जिन्होंने कुंभ में मची भगदड़ में अपनों को खोया, लेकिन सरकारी लिस्ट में उनका नाम तक नहीं है…
भगदड़ से पहले श्रीवास्तव परिवार सेल्फी लेते हुए।
कुंभ भगदड़ में जान गंवाने वालीं नीलम श्रीवास्तव का परिवार प्रयागराज के प्रीतम नगर में रहता है। जब मैं उनके घर पहुंची, तो उनके पति केसी श्रीवास्तव का फोन लगातार बज रहा था। हर कोई उनसे उनकी पत्नी के बारे में ही पूछ रहा था।
उस मनहूस दिन को याद करते हुए केसी श्रीवास्तव कहते हैं- ‘परिवार के लोग संगम स्नान करने का प्लान बना रहे थे। मैंने कहा था कि 5 तारीख को अपने साथ ले जाकर स्नान करवा दूंगा, लेकिन वे लोग मेरी बात नहीं माने। उस रात मुझे नींद नहीं आ रही थी। बेचैनी हो रही थी। सुबह बेटे ने फोन पर बताया कि मम्मी नहीं मिल रही हैं। फिर एक घंटे बाद मैंने फोन किया, तो बेटे ने बताया कि मम्मी नहीं रहीं।’
आंखों में आंसू लिये वो थोड़ा ठहरकर कहते हैं- ‘जिस दिन उसका जन्मदिन था, उसी दिन उसकी डेथ हो गई। हम साथ में जन्मदिन भी नहीं मना पाए।’
केसी श्रीवास्तव को इस बात का अफसोस है कि उस भगदड़ वाली रात वो परिवार के साथ नहीं थे।
25 साल की सौम्या बताती हैं- ‘हम 7 लोग संगम स्नान करने के लिए जा रहे थे। सब बहुत खुश थे। रात 10 बजे हमलोगों ने खाना खाया। कुछ देर आराम करने के बाद 11.30 बजे संगम नोज की तरफ निकल गए। इस समय तक भीड़ बहुत ज्यादा बढ़ गई थी, लेकिन चलने में दिक्कत नहीं हो रही थी।
मम्मी, भैया और मौसी पहले स्नान करने गए। जब वो स्नान करके आए, भीड़ बहुत ज्यादा हो गई थी। हमें लगा कि यहां रुकना अब ठीक नहीं है। आने वाले लोगों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि इधर से निकलना मुश्किल हो रहा था। चलने की जगह नहीं बची थी।’
मां की मौत की खबर सुनने के बाद सौम्या बदहवास हो गई थीं। उनकी बुआ दीपाली ने उन्हें संभाला।
सौम्या कहती हैं- ‘हम भीड़ का हिस्सा बन चुके थे। लोग धक्का दे रहे थे और हमलोग खिसक रहे थे। हमें यह एहसास हो चुका था कि जरा भी पैर इधर-उधर हुआ, तो फिर उठना मुश्किल हो जाएगा। मैंने मम्मी से बोल रखा था कि कुछ भी हो जाए गिरना मत, खुद को संभाले रखना। सब एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए थे।
5 मिनट बाद ही भीड़ का इतना प्रेशर बढ़ा कि हमारा हाथ एक-दूसरे से छूट गया। मम्मी बेटू-बेटू आवाज लगा रही थीं। उनकी आवाज सुनाई पड़ रही थी, लेकिन वो दिखाई नहीं दे रही थीं। मुझे लगा कि भैया जरूर उनके साथ होंगे, लेकिन फिर पता चला कि वो उनके साथ भी नहीं हैं। हमें लगा कि मम्मी भीड़ में कहीं गुम हो गई हैं। कुछ देर बाद हम खोया-पाया केंद्र गए, लेकिन वहां भी मम्मी नहीं मिलीं।
कई घंटों तक हम एक हॉस्पिटल से दूसरे हॉस्पिटल तक घूमते रहे। फिर हमें पता चला कि मम्मी मेडिकल कॉलेज में हैं। वहां उनकी लाश रखी थी। पंचनामा के बाद एम्बुलेंस में एक कॉन्स्टेबल को साथ बैठाकर उनकी बॉडी हमें दे दी गई।’
एम्बुलेंस में नीलम श्रीवास्तव का शव ले जाया जा रहा है।
केसी श्रीवास्तव कहते हैं- ‘उस शाम जब सरकार ने मृतकों की लिस्ट जारी की, तो उसमें पत्नी का नाम नहीं था। मुझे बहुत दुख होता है कि भगदड़ में पत्नी की जान चली गई। प्रशासन ने शव का पंचनामा भी कराया, लेकिन अपने आंकड़े में शामिल नहीं किया। हम सबसे कहते हैं कि भगदड़ में पत्नी मारी गई, लेकिन सरकार उसे नहीं मानती।’
केसी श्रीवास्तव को अभी भी उम्मीद है कि मेला खत्म होने के बाद प्रशासन उनके पत्नी की नाम वाली मृतकों की दूसरी लिस्ट जारी करेगी। ऐसा नहीं हुआ तब वे इस बात को प्रशासन के सामने रखेंगे। शिकायत करेंगे।
जिस भीड़ से लोग निकलने और जान बचाने की सोच रहे थे, उसी भीड़ में कुछ लोग गंदी हरकतें भी कर रहे थे। इसका जिक्र करते हुए सौम्या कहती हैं- ‘लोग गलत तरीके से छू रहे थे, पकड़ रहे थे, गंदी आवाजें निकाल रहे थे। उनके मुंह से शराब की स्मेल आ रही थी।
मैं तो गाली दे रही थी, लेकिन गंदी हरकत करने वालों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। कोई कमर पर हाथ दबा रहा था, तो कोई सीने पर। बहुत गंदा सीन था। समझ नहीं आ रहा था कि लोग कुंभ में स्नान करने आए हैं या बदतमीजी करने।’
सौम्या को उनकी बुआ दीपाली ने बदतमीजी करने वाले लोगों के बीच से निकाला।
भगदड़ से पहले कुंभ क्षेत्र में मृतक नीलम (सबसे दाएं) और उनके परिवार के लोग।
उस मंजर को याद करते हुए सौम्या बताती हैं- ‘भीड़ से निकलने के बाद मेरा गला सूख गया था। लग रहा था किसी तरह एक बूंद पानी मिल जाए, लेकिन पानी बेचने वाला बिना पैसे पानी नहीं दे रहा था। वहां ऑनलाइन पेमेंट नहीं हो पा रही थी और हमारे पास कैश नहीं था। पास बैठी कुछ महिलाओं ने जब दुकानवाले को डांटा, तो उसने पानी दिया। उस दिन मुझे लगा कि सांस से बड़ी चीज पैसा है।’
वो कहती हैं- ‘भगदड़ के बाद जब हम लोग घर के लिए निकले, तो किसी के पैरों में चप्पल नहीं थी। हमने सोचा कि चप्पल खरीद लेते हैं। जब दुकान पर गई तो देखा कि किसी भी चप्पल का जोड़ा नहीं था। दुकान पर वही चप्पलें थीं, जो भगदड़ में छूट गई थीं। इसके लिए भी दुकानदार 100 रुपए मांग रहे थे। ये सब देखकर मेरे मन में बार-बार आ रहा था कि यहां आने से बेहतर होता हम घर पर ही नहा लेते।’
सौम्या, संगम नोज जाने से पहले की बात याद कर भावुक हो जाती हैं। वो कहती हैं- ‘मैने मां से पूछा था कि आपका जन्मदिन है, क्या खिलाओगी पार्टी में। तब मां ने कहा था कि 12 बजे स्नान करने के बाद हमलोग लड्डू और जलेबियां खाएंगे। मां उस दिन बहुत खुश थीं। घर से वो आलता, नेल पॉलिश लगाकर निकली थीं।’
सौम्या को बीच में टोकते हुए दीपाली कहती हैं- ‘शाम 4 बजे हमलोग हंसी खुशी घर से निकले थे। मेले में फोटो ले रहे थे। सोचा था उनका जन्मदिन मनाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।’
दीपाली, सौम्या का हाथ पकड़ लेती हैं। सिसक-सिसक कर रोने लगती हैं। खुद को संभालते हुए कहती हैं- ‘एक्सिडेंट हो जाता या चोट लग जाती तो कम से कम वो कुछ कह तो पातीं, लेकिन हमें तो पता ही नहीं चला कि आखिरी वक्त उनका कैसे गुजरा। किस कष्ट में उनके प्राण निकले।’
सौम्या की बुआ दीपाली श्रीवास्तव।
मैंने दीपाली से पूछा, क्या हुआ था उस रात…
दीपाली बताती हैं- ‘परिवार के 3 लोग स्नान कर चुके थे। 4 लोगों का अभी स्नान करना बाकी था। इतने में अचानक से भगदड़ मच गई। हर तरफ अफरा-तफरी का माहौल था। लोग बिना सोचे-समझे इधर-उधर भाग रहे थे। हम सभी बहुत डर गए थे। एक-दूसरे को पकड़कर वहां से निकलने लगे। हमें लग रहा था आज बचना मुश्किल है। भीड़ की वजह से हमारा हाथ छूट गया। सिर्फ छोटा बेटा मेरे साथ रह गया। वो बहुत ज्यादा डर गया था। रो-रोकर कह रहा था मम्मी कैसे भी बचा लो।
मैंने उसे कसकर पकड़ा हुआ था, लेकिन मन में डर था कि कहीं वो दब न जाए। मैं उसे हिम्मत दे रही थी, लेकिन अंदर से हार चुकी थी। किसी तरह से दो लोगों का हाथ पकड़कर मैं भीड़ से बाहर निकली। बेटे के तन पर कोई कपड़ा नहीं था, उसने बस अंडरवियर पहन रखी थी। पुलिस वालों ने बाहर उसे कपड़े पहनाए। जब मैंने बड़े बेटे को फोन किया, तो हमारे जान में जान आई।’
प्रीतम नगर से निकलने के बाद मैं झूंसी पहुंची। 28 जनवरी को कुंभ में हुई दूसरी भगदड़ में आवास विकास कॉलोनी की रहने वाली नगीना मिश्रा की मौत हो गई थी। पूरा मोहल्ला सुनसान पड़ा था।
उनके देवर गणेश चंद्र मिश्रा बताते हैं- ‘मौनी अमावस्या वाले दिन भैया घर पर नहीं थे, तो भाभी अपने साथ मुझे ले गईं। परिवार के कुछ और लोग साथ थे। भाभी थोड़ा आराम से चल रही थीं, इसलिए पीछे रह गईं। सेक्टर 21 के रास्ते हमलोग संगम की तरफ जा रहे थे। जैसे-जैसे हम आगे बढ़े भीड़ ज्यादा हो गई। ऐसा लग रहा था कि पुलिस लोगों को रोक-रोक कर भेज रही है। भीड़ ज्यादा हुई तो भाभी को भी दिक्कत होने लगी। वो बोलीं हमें साइड लेकर चलो।
थोड़ा साइड में ले जाते ही वो गिर गईं। हमने उठाने की कोशिश की पर वो उठ नहीं पाईं और उनके मुंह से झाग सा आ गाया। मैं मदद के लिए फोन मिलाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन फोन भी नहीं मिल रहा था। हमने भाभी का फोटो खींचकर वॉट्सएप पर अपने भतीजे को भेजा। उसे आने में 2 घंटे लग गए, तब तक हम भाभी के लाश के पास खड़े रहे, ताकि कोई उनकी बॉडी को नुकसान नहीं पहुंचा सके।’
झूंसी में हुई भगदड़ में मारी गईं नगीना मिश्रा के बेटे आशुतोष मिश्रा।
गणेश चंद्र मिश्रा कहते हैं- ‘7 घंटे बीत जाने के बाद भी हमारे पास कोई एम्बुलेंस नहीं पहुंच पाई। पुलिस वाले आते थे और देखकर चले जाते थे। इतनी भीड़ में कोई मदद करने वाला नहीं था। ऊपर से कई लोग बदतमीजी कर रहे थे। हमारे ऊपर जूते-चप्पल फेंक रहे थे।
शाम में सरकार ने भगदड़ में मारे गए लोगों की लिस्ट निकाली। ये लिस्ट संगम नोज में हुई भगदड़ में मारे गए लोगों की थी। झूंसी में हुई भगदड़ का तो सरकार ने संज्ञान ही नहीं लिया। सरकार मानती ही नहीं कि झूंसी में भी भगदड़ हुई थी। बहुत दुख होता है कि भाभी भगदड़ में मर गईं, लेकिन लिस्ट में उनका नाम तक नहीं है।’
आशुतोष, मृतक नगीना के बेटे हैं। वे कहते हैं- ‘4 लोग घर से मां की डेड बॉडी लेने गए थे। वहां मौजूद प्रशासन या पुलिस ने हमारी मदद नहीं की। बहुत मुश्किल से हमलोग उनकी डेड बॉडी लेकर आए।’
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