‘बिना लिए दिए CM कुछ नहीं करते’, मंत्री की चिट्ठी से MP की सियासत में मच गया था बवाल

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‘बिना लिए दिए CM कुछ नहीं करते’, मंत्री की चिट्ठी से MP की सियासत में मच गया था बवाल

‘बिना लिए दिए CM कुछ नहीं करते’, मंत्री की चिट्ठी से MP की सियासत में मच गया था बवाल


भोपालः 23 अगस्त 2004 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने बाबूलाल गौर का कार्यकाल कई मामलों में अनोखा था। एक तो उमा भारती ने उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए नामांकित किया था। वही उमा भारती जो उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट देने को तैयार नहीं थीं जबकि बाबूलाल गौर उस समय विपक्ष के नेता थे। जब उमा भारती की कुर्सी पर संकट आया तो उन्होंने बाबूलाल गौर को अपना प्रतिनिधि बनाया, लेकिन साथ में शपथ भी दिलाई। उमा ने सीएम हाउस के मंदिर में बाबूलाल गौर से शपथ दिलाई कि वे जब कहेंगी, वे तब अपने पद से इस्तीफा दे देंगी। बाबूलाल गौर राजधानी भोपाल में पार्टी के सबसे मजबूत नेताओं में से एक थे। उन्हें सीएम बनाना उमा भारती की मजबूरी थी। जब वह मुख्यमंत्री बन गए, उसके कुछ महीनों बाद ही उमा भारती से उनकी अनबन शुरू हो गई।

दरअसल उमा भारती को उम्मीद थी कि वे जब भी कहेंगी, बाबूलाल गौर सीएम पद से इस्तीफा दे देंगे लेकिन ऐसा संभव नहीं था। अब इसमें पार्टी के कारण रहे हों या बाबूलाल गौर की अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा, लेकिन ऐसा संभव नहीं हुआ। इसका नतीजा यह हुआ कि गौर के कार्यकाल में पार्टी के विधायक और मंत्री दो गुटों में बैठ गए। इसी दौरान एक ऐसा वाकया हुआ जो चर्चा का विषय बन गया।

दरअसल ब्यौहारी से विधायक और बाबूलाल गौर की कैबिनेट में राज्य मंत्री रहे लवकेश सिंह अपने इलाके के लोकप्रिय नेता थे। लवकेश सिंह अपने जिले शहडोल में विधायक छोटेलाल सरावगी से छत्तीस का आंकड़ा था। एक दिन लवकेश सिंह के लेटर पैड पर लिखा एक पत्र सरावगी ने जारी किया। इसमें कथित तौर पर मंत्री ने लिखा था कि सीएम बिना लिए दिए कुछ नहीं करते। इसमें सीएम का तात्पर्य बाबूलाल गौर से था।

यह पत्र जैसे ही सार्वजनिक हुआ, हंगामा मच गया। लवकेश सिंह ने स्पष्टीकरण दिया कि यह चिट्ठी जिस लेटर हेड पर लिखी गई है, वह 2002 की है। उस समय वह एक साधारण विधायक थे। उस समय उनका लिखा कोई पत्र राज्य मंत्री के लेटर हेड पर नहीं हो सकता। कुल मिलाकर उन्होंने यह सफाई दी कि यह पत्र फर्जी है। इसमें ना तो उनकी लिखावट है और ना ही उनके हस्ताक्षर।

लवकेश सिंह की सफाई से यह विवाद शांत नहीं हुआ। विवाद ने तूल पकड़ा तो भाजपा ने नंदकुमार सिंह चौहान के नेतृत्व में इसकी जांच के लिए एक समिति गठित कर दी। समिति के नतीजे के बारे में चर्चा तो दूर की बात है, इससे यह स्पष्ट हो गया कि पार्टी संगठन में गौर के खिलाफ माहौल बन रहा था।

इसी दौरान बाबूलाल गौर जब इंदौर में एक कार्यक्रम में गए तो उन्होंने कह दिया कि सरकार चलाना कोई भजन मंडली जैसा काम नहीं है। उनके इस एक बयान से कैबिनेट के कई मंत्री उनके खिलाफ हो गए। रूस्तम सिंह ने गौर के इस बयान का पुरजोर विरोध किया क्योंकि इसका संबंध कैलाश विजयवर्गीय से जोड़ा गया जो खुद एक भजन गायक हैं।

घोर के खिलाफ माहौल बनने का एक बड़ा कारण यह भी था कि उनके कांग्रेस नेताओं से भी अच्छे संबंध थे। वे अक्सर दिल्ली जाते और अर्जुन सिंह और कमलनाथ जैसे मंत्रियों से उनकी मुलाकात होती। वह राज्य की योजनाओं के लिए उनसे करोड़ों रुपये की सहायता मंजूर करवा लेते। गौर मुख्यमंत्री के तौर पर इतने मुस्तैद रहते थे कि जब उन्हें पता चला कि रिलायंस उद्योग के मुकेश अंबानी बांधवगढ़ नेशनल पार्क आए हैं तो उनसे मिलने वहीं पहुंच गए।

मतलब यह है कि गौर राजनीतिज्ञों ही नहीं, उद्योगपतियों से भी संबंध बनाने में उस्ताद थे। उमा भारती हों या बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व, इससे ज्यादा प्रभावित नहीं था। यही कारण था कि गौर ज्यादा दिन तक मुख्यमंत्री भी नहीं रह पाए। उनका कार्यकाल करीब 15 महीने का ही रहा। गौर गौर मध्य प्रदेश के पहले नेता थे जो 10 बार विधायक रहे थे।

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